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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
    ऋषिः - यमः देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
    46

    ताव॑द्वां॒ चक्षु॒स्तति॑ वी॒र्याणि॒ ताव॒त्तेज॑स्तति॒धा वाजि॑नानि। अ॒ग्निः शरी॑रं सचते य॒दैधो॑ऽधा प॒क्वान्मि॑थुना॒ सं भ॑वाथः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ताव॑त् । वा॒म् । चक्षु॑: । तति॑ । वी॒र्या᳡णि । ताव॑त् । तेज॑: । त॒ति॒ऽधा । वाजि॑नानि । अ॒ग्नि: । शरी॑रम् । स॒च॒ते॒ । य॒दा । एध॑: । अध॑ । प॒क्वात् । मि॒थु॒ना॒ । सम् । भ॒वा॒थ॒: ॥३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तावद्वां चक्षुस्तति वीर्याणि तावत्तेजस्ततिधा वाजिनानि। अग्निः शरीरं सचते यदैधोऽधा पक्वान्मिथुना सं भवाथः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तावत् । वाम् । चक्षु: । तति । वीर्याणि । तावत् । तेज: । ततिऽधा । वाजिनानि । अग्नि: । शरीरम् । सचते । यदा । एध: । अध । पक्वात् । मिथुना । सम् । भवाथ: ॥३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परस्पर उन्नति करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (वाम्) तुम दोनों की (तावत्) उतनी [पूर्व कर्म अनुसार] (चक्षुः) दृष्टि है, (तति) उतने (वीर्याणि) वीर कर्म हैं, (तावत्) उतना (तेजः) तेज और (ततिधा) उतने प्रकार से (वाजिनानि) पराक्रम हैं, (यदा) जिस समय में वह [जीव] (शरीरम्) शरीर को (सचते) मिलता है, [जैसे] (अग्निः) अग्नि (एधः) इन्धन को [मिलता है], (अध) सो, (मिथुना) हे तुम दोनों बुद्धिमानों ! (पक्वात्) परिपक्व [ज्ञान] से (सम् भवाथः) शक्तिमान् हो जाओ ॥२॥

    भावार्थ

    सब स्त्री-पुरुष जन्मसमय पर अपने-अपने पूर्वकृत कर्म के अनुसार उत्तम-उत्तम साधन पाते हैं, जैसे अग्नि इन्धन पाकर प्रज्वलित होता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(तावत्) तत्परिमाणम् (वाम्) युवयोः स्त्रीपुरुषयोः (चक्षुः) दर्शनसामर्थ्यम् (तति) तावन्ति (वीर्याणि) वीरकर्माणि (तावत्) (तेजः) प्रतापः (ततिधा) तावत्प्रकारेण (वाजिनानि) पराक्रमाः (अग्निः) पावको यथा (शरीरम्) देहम् (सचते) संगच्छते प्राणी (यदा) यस्मिन् काले (एधः) इन्धनं यथा (अध) अथ। तदनन्तरम् (पक्वात्) दृढाज् ज्ञानात् (मिथुना) क्षुधिपिशिमिथिभ्यः कित्। उ० ३।५५। मिथ वधे मेधायां च−उनन्। हे मेधाविनौ (सं भवाथः) लेटि रूपम्। युवां शक्तौ भवतम् ॥

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    विषय

    उतना 'ज्ञान, वीर्य, तेज व वाजिन [शक्ति]

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसर जितना-जितना [यावन्ती] पति-पत्नी ब्रह्मचर्याश्रम की भांति गृहस्थ में भी संयम से चलते हैं [यमराज्ये] (तावत्) = उतना ही (वाम्) = आप दोनों का (चक्षुः) = ज्ञान होता है, (तति वीर्याणि) = उतनी ही वीर्यशक्ति होती है। (तावत् तेजः) = उतनी ही आप तेजस्विता प्राप्त करते हो, (ततिधा) = उतने ही प्रकार के (वाजिनानि) = आपके बल होते हैं । २. ['अनिवै काम:' कौ० १९.२] परन्तु (यदा) = जब (अग्निः ) = कामाग्नि (शरीरं सचते) = शरीर में समवेत होती है, तब (एध:) = यह शरीर उसके लिए काष्ठ-सा हो जाता है। कामाग्नि शरीररूप काष्ठ को दग्ध कर देती है, अत: संयमपूर्वक जीवन बिताते हुए इस नियम का ध्यान रक्खो कि (अधा) = अब (पक्वात्) = परिपक्व वीर्य से मिथुना तुम दोनों स्त्री पुमान् (संभवाथ:) = मिलकर सन्तान को जन्म देनेवाले होओ। सन्तानोत्पत्ति के लिए ही परस्पर मेल इष्ट है, विलास के लिए नहीं। कामानि तो हमें दग्ध ही कर डालेगी। कामाग्रि से बचना नितान्त आवश्यक है।

    भावार्थ

    [घ] जितना हमारे जीवन में संयम होता है उतना ही हमें 'ज्ञान, वीर्य, तेज व वाजिन [शक्ति]' प्राप्त होता है। [ङ] कामाग्नि हमें दग्ध कर देती है, अत: कामाग्नि का शिकार न होते हुए हम परिपक्व वीर्य से सन्तान को जन्म देनेवाले हों। सन्तानोत्पत्ति के लिए ही पति पत्नी का परस्पर सम्पर्क हो।

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    भाषार्थ

    (वाम्) तुम दोनों की (चक्षुः) प्रेम दृष्टि (तावत्) उतनी या उसी प्रकार बनी रहे, (वीर्याणि) वीर्य शक्तियां (तति) उतनी ही बनी रहें, (तेजः) तेज (तावत्) उतना या उसी प्रकार का रहे, (वाजिनानि) बल (ततिधा) उतने ही प्रकार के बने रहें [जैसे कि ब्रह्मचर्याश्रम में थे]। (यदा) जब (शरीरम्) तुम्हारे प्रत्येक शरीर के साथ (अग्निः) ज्योति (सचते) संगत हो जाय, जैसे कि (अग्निः) अग्नि (एधः) इन्धन को प्राप्त कर उसे ज्योतिर्मय बना देती है, (अधा) तब (पक्वात्) तुम्हारे प्रत्येक के परिपक्व शरीर से (मिथुना) बाल-बालिकाएँ (संभवाथः) सम्भूत हों, पैदा हों।

    टिप्पणी

    [मनुस्मृति में कहा है कि ऋत्वनुसार सम्पर्क से गृहस्थी, ब्रह्मचारी सदृश ही रहते हैं, और उन के तेज आदि पूर्ववत् बने रहते है]

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    विषय

    स्वर्गौदन की साधना या गृहस्थ धर्म का उपदेश।

    भावार्थ

    हे स्त्री पुरुषो ! पति और पत्नी ! (वाम्) तुम दोनों को (तावत्) उतने अधिक सामर्थ्य वाली (चक्षुः) प्रेम से युक्त आंख है, और (तति वीर्याणि) तुम दोनों के उतने अधिक वीर्य, सामर्थ्य हैं कि कहा नहीं जा सकता। और इसी प्रकार तुम दोनों का (तावत् तेजः) उतना अधिक तेज है और (ततिधा) उतने नाना प्रकार के (वाजिनानि) बलयुक्त कार्य हैं कि जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता। परन्तु याद रखो। कि (यदा) जब (अग्निः) कामरूप अग्नि या वीर्यरूप या ब्रह्मचर्यरूप तप (एधः) काष्ठ को अग्नि के समान (शरीरम्) शरीर को (सचते) प्राप्त करता और प्रदीप्त करता और कान्तिमान करे। (अधा) सब (पक्वात्) परिपक्व वीर्य या परिपक्व शरीर के बल से (मिथुना) तुम दोनों पति पत्नी (संभवाथः) परस्पर मैथुन करके पुत्रोत्पन्न करो।

    टिप्पणी

    प्रजननं वा अग्निः। तै० १। ३। १। ४॥ तपो वा अग्निः। श० ३। ४। ३। २॥ अग्निवें कामः देवानामीश्वरः। कौ० १६। २॥ अग्निः प्रजानां प्रजनयिता। तै० १। ७। २। ३॥ अग्निर्वै मिथुनस्य कर्ती प्रजनयिता। श० ३। ४। ३। ४॥ अग्निर्वै रेतोधा ३। ७। ३। ७॥ वीर्यं या अग्निः। गो० उ० ६। ७॥ प्रजनन, तप, काम, वीर्य आदि अग्नि शब्द से कहे जाते हैं। उसके शरीर में ब्रह्मचर्य द्वारा पर्याप्त रूप में संचित होजाने पर स्त्री पुरुष मैथुन करके सन्तान उत्पन्न करें। ‘मैथुन’ करने को वेद ‘सम्-भवति’ धातु से प्रकट करता है। क्यों कि उस समय दोनों समान वीर्य होकर अपनी सृष्टि उत्पन्न करते हैं। और मैथुन द्वारा वे दोनों अपने ही समान सन्तान उत्पन्न करते हैं। (द्वि०) ‘अग्निं शरीरं सजतेऽथ’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यम ऋषिः। मन्त्रोक्तः स्वर्गौदनोऽग्निर्देवता। १, ४२, ४३, ४७ भुरिजः, ८, १२, २१, २२, २४ जगत्यः १३ [१] त्रिष्टुप, १७ स्वराट्, आर्षी पंक्तिः, ३.४ विराड्गर्भा पंक्तिः, ३९ अनुष्टुद्गर्भा पंक्तिः, ४४ परावृहती, ५५-६० व्यवसाना सप्तपदाऽतिजागतशाकरातिशाकरधार्त्यगर्भातिधृतयः [ ५५, ५७-६० कृतयः, ५६ विराट् कृतिः ]। षष्ट्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Svarga and Odana

    Meaning

    Thus as far well as you first met, thought, associated and agreed together without reservation, that far perfectly let your vision, that much your noble powers, that high your splendour, and to that very extent let your advancement and achievements be common together. And just as fire takes on the fuel and sets it ablaze, so let your love and passion for life inspire your conjugal body, matured, seasoned and united, and raise it to brilliance so that you become an ideal couple.

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    Translation

    So much (be) your sight, so many your powers, so great your brilliancy; so many-fold your energies; Agni fastens on the body when (it is his) fuel; then, O paired ones, shall ye come into being from what is cooked.

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    Translation

    O ye couple! so strong is your sight, so many are your powers and energies, so is vigor and bodily splendor and so many are your feats and deeds. When the heat of passion warmly stimulate your body as fire enkindles fuel, then, you both attain maturity (by producing progeny ).

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    Translation

    So strong your sight so may be your powers, so great your force, your energies so many. When the fire of Brahmcharya attends the body as its fuel, then may ye gain full strength of knowledge.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(तावत्) तत्परिमाणम् (वाम्) युवयोः स्त्रीपुरुषयोः (चक्षुः) दर्शनसामर्थ्यम् (तति) तावन्ति (वीर्याणि) वीरकर्माणि (तावत्) (तेजः) प्रतापः (ततिधा) तावत्प्रकारेण (वाजिनानि) पराक्रमाः (अग्निः) पावको यथा (शरीरम्) देहम् (सचते) संगच्छते प्राणी (यदा) यस्मिन् काले (एधः) इन्धनं यथा (अध) अथ। तदनन्तरम् (पक्वात्) दृढाज् ज्ञानात् (मिथुना) क्षुधिपिशिमिथिभ्यः कित्। उ० ३।५५। मिथ वधे मेधायां च−उनन्। हे मेधाविनौ (सं भवाथः) लेटि रूपम्। युवां शक्तौ भवतम् ॥

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