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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 5
    ऋषिः - यमः देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
    42

    यं वां॑ पि॒ता पच॑ति॒ यं च॑ मा॒ता रि॒प्रान्निर्मु॑क्त्यै॒ शम॑लाच्च वा॒चः। स ओ॑द॒नः श॒तधा॑रः स्व॒र्ग उ॒भे व्याप॒ नभ॑सी महि॒त्वा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । वा॒म् । पि॒ता । पच॑ति । यम् । च॒ । मा॒त । रि॒प्रात् । नि:ऽमु॑क्त्यै । शम॑लात् । च॒ । वा॒च: । स: । ओ॒द॒न: । श॒तऽधा॑र: । स्व॒:ऽग: । उ॒भे इति॑ । वि । आ॒प॒ । नभ॑सी॒ इति॑ । म॒हि॒ऽत्वा ॥३.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यं वां पिता पचति यं च माता रिप्रान्निर्मुक्त्यै शमलाच्च वाचः। स ओदनः शतधारः स्वर्ग उभे व्याप नभसी महित्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । वाम् । पिता । पचति । यम् । च । मात । रिप्रात् । नि:ऽमुक्त्यै । शमलात् । च । वाच: । स: । ओदन: । शतऽधार: । स्व:ऽग: । उभे इति । वि । आप । नभसी इति । महिऽत्वा ॥३.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परस्पर उन्नति करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यम्) जिस [परमेश्वर] को (वाम्) तुम दोनों का (पिता) पिता (च) और (यम्) जिस को (माता) तुम्हारी माता (रिप्रात्) पाप से (च) और (शमलात्) भ्रष्ट व्यवहार से (निर्मुक्त्यै) छूटने के लिये (वाचः) अपनी वाणियों द्वारा (पचति) पक्का [दृढ़] करती है। (सः) वह (शतधारः) सैकड़ों धारण शक्तियोंवाला, (स्वर्गः) सुख पहुँचानेवाला (ओदनः) ओदन [सुख बरसानेवाला परमेश्वर] (महित्वा) अपने महत्त्व से (उभे) दोनों (नभसी) सूर्य और पृथिवी [प्रकाशमान और अप्रकाशमान] लोकों में (वि आप) व्यापक हुआ है ॥५॥

    भावार्थ

    हे स्त्री-पुरुषो ! जिस परमात्मा को तुम्हारे विद्वान् माता-पिता ने पाप से छूटने के लिये साक्षात् किया है, वैसा ही तुम जानो ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(यम्) ओदनं परमेश्वरम् (वाम्) युवयोः (पिता) जनकः (पचति) अयं द्विकर्मकः। पक्वं करोति (यम्) (च) (माता) (रिप्रात्) पापात् (निर्मुक्त्यै) वियोजनाय (शमलात्) अ० १२।२।४०। भ्रष्टव्यवहारात् (च) (वाचः) अकथितं च। पा० १।४।५१। तृतीयार्थे द्वितीया। वाग्भिः (सः) (ओदनः) सुखवर्षकः परमेश्वरः (शतधारः) बहुधारणसामर्थ्योपेतः (स्वर्गः) सुखप्रापकः (उभे) (व्याप) व्याप्तवान् (नभसी) द्यावापृथिव्यौ। प्रकाशमानाप्रकाशमानौ लोकौ (महित्वा) महत्त्वेन ॥

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    विषय

    वानस्पतिक भोजन

    पदार्थ

    १. ['द्यौष्मिता पृथिवी माता'] धुलोक से वृष्टि होकर पृथिवी में अन्न उत्पन्न होता है। इस अन्नोत्पत्ति में धुलोक 'पिता' है तो पृथिवी 'माता' है। इस अन्न से ही हमारा जीवन धारित होता है। एवं धुलोक हमारा पिता है तो पृथिवी माता है। (यम्) = जिस अन्न को (वाम्) = दोनों (पिता) = वह लोकरूप पिता (पचति) = पकाता है, (च) = और (यं माता) = जिस ओदन को यह भूमिमाता उत्पन्न करती है, वह ओदन (रिप्रान् निर्मुक्त्यै) = सब रोगरूप दोषों से छुटकारे के लिए है, (च) = और यह अन्न (वाचः शमलात्) = [शम् अल-वारण] वाणी के अशान्त शब्दों के निवारण के लिए है। इन सात्विक अन्नों का सेवन करने पर-मांसाहार से दूर रहने पर हम नौरोग भी होंगे और क्रोध में अशान्त शब्दों का प्रयोग भी न करेंगे। २. (सः ओदन:) = वह धुलोक व पृथिवी से [पिता व माता से] दिया हुआ भोजन (शतधार:) = हमें सौ वर्ष तक धारण करनेवाला है, (स्वर्ग:) = हमें (सुखमय) = प्रकाशमयलोक में प्राप्त करानेवाला है। यह ओदन (महित्वा) = अपनी महिमा से (उभे नभसी व्याप) = दोनों लोकों को-पृथिवी व धुलोक को व्यास करनेवाला है। प्रथिवी शरीर' है, धुलोक 'मस्तिष्क' है। यह सात्विक वानस्पतिक अन्न ' शरीर व मस्तिष्क' दोनों को ही ठीक बनाता है। इससे शरीर नीरोग रहता है तथा मस्तिष्क दीप्त बनता है। मांसभोजन रोगों व क्रूर छल-कपटमयी प्रवृत्तियों को पैदा करता है।

    भावार्थ

    हम वानस्पतिक भोजनों का ही सेवन करें। यह भोजन हमारे जीवनों को निर्दोष बनाएगा, दीर्घजीवन का साधन बनेगा, जीवन को सुखी व प्रकाशमय करेगा तथा शरीर को शक्तिसम्पन्न करता हुआ मस्तिष्क को दीप्ति-सम्पन्न करेगा।

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    भाषार्थ

    (रिप्रात्) पाप से (च वाचः शमलात्) और वाणी के मल से (निर्मुक्त्यै) छुटकारे के लिये, हे पुत्र और पुत्री ! (वाम्) तुम दोनों का (पिता, यम्, पचति) पिता जिस ओदन नामक परमेश्वर को [निज जीवन में योगाभ्यास द्वारा] परिपक्व करता है, (यं च माता) और जिसे तुम्हारी माता परिपक्व करती है, (सः) वह ओदन नामक परमेश्वर (शतधारः) सैकड़ों का धारण-पोषण करता, या सैकड़ों आनन्द धाराओं को प्रवाहित करता (स्वर्गः) और विशिष्ट सुख प्राप्त कराता है। (महित्वा) निज महिमा से (उभे नभसी) वह दोनों भूलोक और द्युलोक में (व्याप) व्याप्त है।

    टिप्पणी

    [रिप्रम् = रीयते तद् रिप्रम, कुत्सितं "पापम्" (उणा० ५।५५, महर्षि दयानन्द)। शमलम् =शम + अलम्, सुखशान्ति को समाप्त करने वाला वाचिक मल, मिथ्या भाषण, दुर्भाषण, अति भाषण आदि। मन्त्र के वर्णन द्वारा स्पष्ट है कि मन्त्र ४ और ५ में ओदन द्वारा परमेश्वर का वर्णन है। यह दर्शाने के लिये कि हम जैसे शारीरिक भूख की शान्ति के लिये प्राकृतिक ओदन का सेवन करते हैं, वैसे अध्यात्मिक भूख की शान्ति के लिये, तथा मानसिक पाप और वाचिक मल से मुक्ति पाने के लिये अध्यात्मिक ओदन का भी सेवन प्रतिदिन करना चाहिये। गृहजीवन में जिन के माता पिता परमेश्वरोपासना में रत होंगे उन की सन्तानें भी आस्तिक बन जायेंगी]।

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    विषय

    स्वर्गौदन की साधना या गृहस्थ धर्म का उपदेश।

    भावार्थ

    हे स्त्री पुरुषो ! (यं) जिस ‘ओदन’ = वीर्य को (वां पिता) तुम दोनों के पिता और (माता च) माताएं भी (रिप्रात्) पितृऋण से ऋणी रहने रूप पाप से और (वाचः) वाणी के (शमलात् च) पाप से (निर्मुक्त्यै) सर्वथा मुक्त होने के लिये (पचति) पकाती है. परिपक्व करती है (सः) वह ओदन, वीर्य, ब्रह्मचर्य आदि का पवित्रव्रत ही (शतधारः स्वर्गः) शतवर्ष की आयु को धारण करने वाला स्वर्ग, अति सुखकारी आनन्द प्राप्त करने का उपाय है। वह (महित्वा) अपने महिमा से (उभे नभसी) दोनों लोकों को, द्यौ और पृथ्वी को या आत्मा को बांधने वाले इहलोक और परलोक या वर्तमान जीवन और सन्तानों का जीवन (उभे) दोनों को (व्याप) व्याप्त करता है। मां बाप स्वयं भी ब्रह्मचर्य का पालन करें पुत्र पुत्रियों को भी पालन करावें इससे इहलोक, परलोक, वर्तमान जीवन और सन्तानों के जीवन भी सुखमय होते हैं। वही सौ वर्ष की आयु देने वाला परम साधन है।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘यं वः पिता’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यम ऋषिः। मन्त्रोक्तः स्वर्गौदनोऽग्निर्देवता। १, ४२, ४३, ४७ भुरिजः, ८, १२, २१, २२, २४ जगत्यः १३ [१] त्रिष्टुप, १७ स्वराट्, आर्षी पंक्तिः, ३.४ विराड्गर्भा पंक्तिः, ३९ अनुष्टुद्गर्भा पंक्तिः, ४४ परावृहती, ५५-६० व्यवसाना सप्तपदाऽतिजागतशाकरातिशाकरधार्त्यगर्भातिधृतयः [ ५५, ५७-६० कृतयः, ५६ विराट् कृतिः ]। षष्ट्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Svarga and Odana

    Meaning

    Whatever food for life your father prepares and matures for you, whatever your mother prepares for you, whatever Mother Nature prepares, and whatever the Father Supreme perfects and releases from the Voice of Veda in order to release you from the stains and smears of earthly involvements and the colours and covers of existential fluctuations, that food of divinity and divine revelation in a thousand showers leads you both to the ecstasy of super joy and pervades both heaven and earth with its own splendour and majesty.

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    Translation

    What one your father cooks, and what one mother, in order to release from evil and from pollution of speech - that hundred-streamed, heaven-going rice-dish had permeated with greatness both firmaments.

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    Translation

    O Ye couple ! whatever - Odana, Yajna oblation cooks your mother, whatever Odana cooks your father cooks to vanish sin and uncleanliness from speech, is that hundred-streamed splendid Odana which by its effect pervade both the regions -the earth and heaven.

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    Translation

    O husband and wife, that God, Whom your mother and your sire, to banish sin and uncleanliness, remember fervently with their tongues, the Lord of myriad powers, the Bestower of joy, the Rainer of happiness, hath in His might pervaded earth and heaven!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(यम्) ओदनं परमेश्वरम् (वाम्) युवयोः (पिता) जनकः (पचति) अयं द्विकर्मकः। पक्वं करोति (यम्) (च) (माता) (रिप्रात्) पापात् (निर्मुक्त्यै) वियोजनाय (शमलात्) अ० १२।२।४०। भ्रष्टव्यवहारात् (च) (वाचः) अकथितं च। पा० १।४।५१। तृतीयार्थे द्वितीया। वाग्भिः (सः) (ओदनः) सुखवर्षकः परमेश्वरः (शतधारः) बहुधारणसामर्थ्योपेतः (स्वर्गः) सुखप्रापकः (उभे) (व्याप) व्याप्तवान् (नभसी) द्यावापृथिव्यौ। प्रकाशमानाप्रकाशमानौ लोकौ (महित्वा) महत्त्वेन ॥

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