अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 47
ऋषिः - यमः
देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
50
अ॒हं प॑चाम्य॒हं द॑दामि॒ ममे॑दु॒ कर्म॑न्क॒रुणेऽधि॑ जा॒या। कौमा॑रो लो॒को अ॑जनिष्ट पु॒त्रोन्वार॑भेथां॒ वय॑ उत्त॒राव॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम् । प॒चा॒मि॒ । अ॒हम् । द॒दा॒मि॒ । मम॑ । इत् । ऊं॒ इति॑ । कर्म॑न् । क॒रुणे॑ । अधि॑ । जा॒या॒ । कौमा॑र: । लो॒क: । अ॒ज॒नि॒ष्ट॒: । पु॒त्र: । अ॒नु॒ऽआर॑भेथाम् । वय॑: । उ॒त्त॒रऽव॑त् ॥३.४७॥
स्वर रहित मन्त्र
अहं पचाम्यहं ददामि ममेदु कर्मन्करुणेऽधि जाया। कौमारो लोको अजनिष्ट पुत्रोन्वारभेथां वय उत्तरावत् ॥
स्वर रहित पद पाठअहम् । पचामि । अहम् । ददामि । मम । इत् । ऊं इति । कर्मन् । करुणे । अधि । जाया । कौमार: । लोक: । अजनिष्ट: । पुत्र: । अनुऽआरभेथाम् । वय: । उत्तरऽवत् ॥३.४७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परस्पर उन्नति करने का उपदेश।
पदार्थ
(अहम्) मैं [आचार्य] [विद्याकोश को मन्त्र ४६] (पचामि) पक्का [दृढ़] करता हूँ, और (अहम्) मैं (ददामि) देता हूँ, (मम) मेरी (जाया) पत्नी (इत्) भी (उ) निश्चय करके (करुणे) करुणायुक्त (कर्मन्) कर्म में (अधि) अधिकृत है। (कौमारः) उत्तम कुमारियोंवाला और (पुत्रः) उत्तम पुत्रोंवाला (लोकः) यह लोक (अजनिष्ट) हुआ है, [हे कुमारी कुमारो !] तुम दोनों (उत्तरावत्) अधिक उत्तम गुणवाला (वयः) जीवन (अन्वारभेथाम्) निरन्तर आरम्भ करो ॥४७॥
भावार्थ
आचार्य और आचार्याणी विद्या का उपदेश दृढ़ता से करें, जिससे कुमारी और कुमार संसार में धर्म के उदाहरण बनकर सदा श्रेष्ठ जीवन बितावें ॥४७॥
टिप्पणी
४७−(अहम्) आचार्यः (पचामि) पक्कं दृढं करोमि, निधिम्−म० ४६ (अहम्) (ददामि) (मम) (इत्) एव (उ) निश्चयेन (कर्मन्) विहितकर्मणि (करुणे) करुणा−अर्शआद्यच्। करुणावति। दयावति (अधि) अधिकृता (जाया) पत्नी (कौमारः) कुमारी−अण्। श्रेष्ठकुमारीयुक्तः (लोकः) समाजः (अजनिष्ट) प्रादुरभवत् (पुत्रः) पुत्र−अर्शआद्यच्। श्रेष्ठपुत्रयुक्तः (अन्वारभेथाम्) निरन्तरमारम्भं कुरुतम् (वयः) जीवनम् (उत्तरावत्) म० १०। अधिकोत्तमगुणयुक्तम् ॥
विषय
पचामि----ददामि।
पदार्थ
१. (अहं पचामि, अहं ददामि) = घर में मैं जिस भी वस्तु का परिपाक करता हूँ, प्रथम उसे देता हूँ। अतिथियज्ञ में व बलिवैश्वदेवयज्ञ में उसका विनियोग करके यज्ञशेष का ही सेवन करता हूँ। वृद्ध माता-पिता को खिलाकर ही पीछे मैं खाता हूँ-इसप्रकार पितृयज्ञ को भी लुप्त नहीं होने देता। (मम) = मेरे (करुणे कर्मन्) = करुणात्मक कर्मों में (जाया अधि) = मेरी पत्नी अधिष्ठातृरूपेण कार्य करनेवाली है। आधार देने योग्य व्यक्तियों को [आनं चित्] आवश्यक पदार्थ प्राप्त कराना उसका कार्य है। २. (पुत्र:) = सन्तान भी (कौमार:) = क्रीड़क की मनोवृतिवाला [Sportsman like spirit] तथा (लोक:) = प्रकाशमय जीवनवाला (अजनष्ट) = हुआ है। हमारी पुत्रों व पुत्र-वधुओं के लिए एक ही प्रेरणा है कि तुम भी (अनु) = हमारे पीछे (उत्तरावत् वयः आरभेथाम्) = उत्कृष्ट जीवन को प्रारम्भ करो।
भावार्थ
उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप यह है कि हम [क] यज्ञशेष को खाएँ [ख] गृहिणी उपकार के कार्यों की अधिष्ठात्री हो [ग] सन्तानों को हम क्रीड़क की मनोवृत्तिवाला व प्रकाशमय जीवनवाला बनाएँ [घ] उन्हें एक ही प्रेरणा दें कि उन्होंने हमसे अधिक उत्कृष्ट जीवन बिताना है।
भाषार्थ
(अहं पचामि) मैं पकाता हूं, (अहं ददामि) मैं देता हूं, (मम इद् उ करुणे कर्मन् अधि) मेरे इस करुणामय कर्म में ही (जाया) मेरी पत्नी सम्मिलित है। (लोकः) सब लोग (कौमारः पुत्रः) हमारे लिए कुमार-पुत्र (अजनिष्ट) हो गया है। हे पति-पत्नी ! तुम दोनों (उत्तरावत् वयः) इस उत्तम जीवन को (अन्वारभेथाम्) अब से निरन्तर आरम्भ करो, या इस जीवन का आलम्बन करो।
टिप्पणी
[पति पत्नी जो कुछ पकाएं उस का दान भी अन्नाभिलाषियों को करें। सब मनुष्यों को निज पुत्रवत् जानें]।
विषय
स्वर्गौदन की साधना या गृहस्थ धर्म का उपदेश।
भावार्थ
(अहम्) मैं पुरुष के समान राजा (पचामि) अपने बल और वीर्य को खूब परिपक्व करूं, क्योंकि (मम इत्) मेरे ही (करुणे) क्रिया, और उत्साह से पूर्ण प्रयत्न और (कर्मन्) कर्म, कार्य व्यवहार के (अधि) ऊपर (जाया) स्त्री, उसके समान पृथ्वी का आश्रय है। वीर्य के परिपक्व होने पर ही जिस प्रकार (कौमारः) कुमार नवयुवक (पुत्रः) पुत्र उत्पन्न होता है उसी प्रकार (लोकः) यह लोक राजा के पुत्र के समान (अजनिष्ट) पृथ्वी पर खूब हृष्ट पुष्ट रूप से उत्पन्न होता है। हे स्त्री पुरुषो ! तुम दोनों (उत्तरावत्) उत्कृष्ट कर्मों से युक्त (वयः) अपना जीवन (अनु आरभेथाम्) पुत्रलाभ कर लेने के उपरान्त भी बराबर बनाये रक्खे।
टिप्पणी
(प्र०) ‘अहं पचाम्युद् वदामि’, (तृ०) ‘पुत्राः’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यम ऋषिः। मन्त्रोक्तः स्वर्गौदनोऽग्निर्देवता। १, ४२, ४३, ४७ भुरिजः, ८, १२, २१, २२, २४ जगत्यः १३ [१] त्रिष्टुप, १७ स्वराट्, आर्षी पंक्तिः, ३.४ विराड्गर्भा पंक्तिः, ३९ अनुष्टुद्गर्भा पंक्तिः, ४४ परावृहती, ५५-६० व्यवसाना सप्तपदाऽतिजागतशाकरातिशाकरधार्त्यगर्भातिधृतयः [ ५५, ५७-६० कृतयः, ५६ विराट् कृतिः ]। षष्ट्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Svarga and Odana
Meaning
I cook, I give, my wife is dedicated with me to acts of love and piety with sympathy and compassion. My bachelor son and virgin daughter is born and dedicated to society. Indeed the whole society is grown to be my own child. O men and women, O rising generation, begin your life enthusiastically, rise higher and higher.
Translation
I cook; I give; verily upon my action (and) deed the wife; a virgin world hath been born, a son; take you hold after vigor that hath what is superior.
Translation
I, the house-holding Yajna-performer cook oblation, I offer it to (in to the fire of) Yajna and only my wife attends this holy benevolent service. Youth full son has been be gotten for this Loka, work to be furthered. May he begin the life of success and triunph.
Translation
I strengthen the store of knowledge, and impart it to the pupils. My wife also is engaged in charitable deeds. Our society is full of nice daughters and sons. O girls and boys, begin a higher moral life!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४७−(अहम्) आचार्यः (पचामि) पक्कं दृढं करोमि, निधिम्−म० ४६ (अहम्) (ददामि) (मम) (इत्) एव (उ) निश्चयेन (कर्मन्) विहितकर्मणि (करुणे) करुणा−अर्शआद्यच्। करुणावति। दयावति (अधि) अधिकृता (जाया) पत्नी (कौमारः) कुमारी−अण्। श्रेष्ठकुमारीयुक्तः (लोकः) समाजः (अजनिष्ट) प्रादुरभवत् (पुत्रः) पुत्र−अर्शआद्यच्। श्रेष्ठपुत्रयुक्तः (अन्वारभेथाम्) निरन्तरमारम्भं कुरुतम् (वयः) जीवनम् (उत्तरावत्) म० १०। अधिकोत्तमगुणयुक्तम् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal