अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 49
ऋषिः - यमः
देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
44
प्रि॒यं प्रि॒याणां॑ कृणवाम॒ तम॒स्ते य॑न्तु यत॒मे द्वि॒षन्ति॑। धे॒नुर॑न॒ड्वान्वयो॑वय आ॒यदे॒व पौरु॑षेय॒मप॑ मृ॒त्युं नु॑दन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठप्रि॒यम् । प्रि॒याणा॑म् । कृ॒ण॒वा॒म॒ । तम॑: । ते । य॒न्तु॒ । य॒त॒मे । द्वि॒षन्ति॑ । धे॒नु: । अ॒न॒ड्वान् । वय॑:ऽवय: । आ॒ऽयत् । ए॒व । पौरु॑षेयम् । अप॑ । मृ॒त्युम् । नु॒द॒न्तु॒॥३.४९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रियं प्रियाणां कृणवाम तमस्ते यन्तु यतमे द्विषन्ति। धेनुरनड्वान्वयोवय आयदेव पौरुषेयमप मृत्युं नुदन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठप्रियम् । प्रियाणाम् । कृणवाम । तम: । ते । यन्तु । यतमे । द्विषन्ति । धेनु: । अनड्वान् । वय:ऽवय: । आऽयत् । एव । पौरुषेयम् । अप । मृत्युम् । नुदन्तु॥३.४९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परस्पर उन्नति करने का उपदेश।
पदार्थ
(प्रियाणाम्) अपने प्यारों का हम (प्रियम्) प्रिय [कर्म] (कृणवाम) करें (ते) वे [दुष्ट] (तमः) अन्धकार [कारागार] में (यन्तु) जावें (यतमे) जो कोई (द्विषन्ति) [हम से] वैर करते हैं। (धेनुः) दुधैल गाय, (अनड्वान्) छकड़ा ले चलनेवाला बैल और (आयत्) आता हुआ (वयोवयः) प्रत्येक अन्न (एव) निश्चय करके (पौरुषेयम्) पुरुष की (मृत्युम्) मृत्यु को (अप नुदन्तु) ढकेल देवें ॥४९॥
भावार्थ
धर्मात्मा लोग धर्मात्मा हितकारियों से प्रिय व्यवहार करें और दुष्टों को कष्ट देते रहें, जिससे गौ, बैल, अन्न आदि आवश्यक पदार्थ बढ़कर संसार की वृद्धि करें ॥४९॥
टिप्पणी
४९−(प्रियम्) प्रीतिकरं कर्म (प्रियाणाम्) स्वहितकारकाणाम् (कृणवाम) कुर्याम (तमः) अन्धकारम्। कारागारम् (ते) दुष्टाः (यन्तु) गच्छन्तु (यतमे) ये केचित् (द्विषन्ति) वैरायन्ते (धेनुः) दोग्ध्री गौः (अनड्वान्) शकटवाहको बलीवर्दः (वयोवयः) प्रत्येकप्रकारमन्नम् (आयत्) इण् गतौ−शतृ। आगच्छत् (एव) निश्चयेन (पौरुषेयम्) पुरुष−ढञ्। मानुषम् (अप) दूरे (मृत्युम्) मरणम् (नुदन्तु) प्रेरयन्तु ॥
विषय
धेनुः, अनड्वान्, वयः
पदार्थ
१. हम अपने व्यवहार में (प्रियाणां प्रियं कृणवाम्) = प्रिय व्यक्तियों का प्रिय ही करें। (यतमे द्विषन्ति) = जो भी द्वेष करते हैं, (ते तमः यन्तु) = वे अन्धकार को प्राप्त हों। द्वेष करनेवालों का जीवन अन्धकारमय हो। २. (धेनुः) = दुधारू गौ, (अनड्वान्) = हमारी गाड़ियों को खेंचनेवाला अथवा कृषि का साधनभूत बैल तथा (आयत् एव वय:) = [ Sacrificial food] सदा प्राप्त होता हुआ यज्ञिय भोजन (पौरुषेयं अपमृत्युम्) = पुरुष-सम्बन्धी अपमृत्यु को (नुदन्तु) = हमारे जीवन से दूर धकेल दे। उत्तम दूध को, कृषि से उत्पन्न अन्न को तथा यज्ञिय भोजन को प्राप्त करते हुए हम पूर्ण दीर्घजीवन को प्राप्त करें।
भावार्थ
हम अपने व्यवहार में प्रिय ही रहें-द्वेषभावना से दूर रहें। द्वेष जीवन को अन्धकारमय बना देता है। गोदुग्ध, कृषि से उत्पन्न अन्न और यज्ञिय भोजन का सेवन करते हुए हम अपमृत्यु से बचें और पूर्ण जीवन को प्राप्त करें।
भाषार्थ
(प्रियाणाम्) प्रियों का (प्रियं कृणवाम) हम प्रिय करें। (यतमे) जो (द्विषन्ति) हमारे साथ द्वेष करते हैं (ते) वे (तमः यन्तु) तमोगुण को प्राप्त रहें। (धेनुः) दूध देने वाली गौ (अनड्वान) तथा बैलगाड़ी चलाने वाला बैल (वयः वयः) प्रत्येक अन्नरूप है, अन्न प्रदाता है (आयत् एव) ये हमें प्राप्त होते ही रहें, और (पौरुषेयम्) पुरुष सम्बन्धी (अप मृत्युम्) बुरी मृत्यु को (नुदन्तु) धेनु और अनड्वान् दूर करते रहें।
टिप्पणी
[सद्गृहस्थी प्यारों के प्रिय अर्थात् अभीष्ट का सम्पादन करे, और द्वेषियों के साथ द्वेष न कर उन्हें इस तमोमयी वृत्ति में रहने दे कर, उन के सम्बन्ध में उपेक्षावृत्ति धारण करें। यथा "मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित्तप्रसादनम् (योग १।३३) में अपुण्यों के प्रति उपेक्षा करने को कहा है। मनुष्यों के उपकारार्थ सद्गृहस्थी दूधदायक गौओं, तथा खेती में सहायक बैलों का उपार्जन करता रहे, क्यों कि ये दोनों प्रकार के प्राणी दूध तथा कृष्यन्न देते हैं। इन अन्नों द्वारा मनुष्य मात्र की सेवा करके उन्हें अन्नाभाव के कारण होने वाली अपमृत्यु से बचाया जा सकता है]।
विषय
स्वर्गौदन की साधना या गृहस्थ धर्म का उपदेश।
भावार्थ
हे पुरुषो ! हम लोग (प्रियाणाम्) अपने प्रिय बन्धु, मित्र और माता, पिता, गुरु आदि को (प्रियम्) प्रिय लगने वाले कार्य ही (कृणवाम) करें। और (यतम) जो कोई लोग (द्विषन्ति) द्वेष करते हैं या परस्पर प्रेम नहीं करते (ते) वे (तमः यन्तु) सदा अन्धकार में पड़ें। (धेनुः अढ्-वान्) दुधार गाय और गाड़ी खैंचने में समर्थ मज़बूत बैल और (आयत् एव) आते हुए (वयः-वयः) नाना प्रकार अन्न और दीर्घ जीवन ही (पौरुषेयम् मृत्युम्) पुरुषों द्वारा या उस पर आने वाले मृत्यु को (अपनुदन्तु) दूर करने में समर्थ हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यम ऋषिः। मन्त्रोक्तः स्वर्गौदनोऽग्निर्देवता। १, ४२, ४३, ४७ भुरिजः, ८, १२, २१, २२, २४ जगत्यः १३ [१] त्रिष्टुप, १७ स्वराट्, आर्षी पंक्तिः, ३.४ विराड्गर्भा पंक्तिः, ३९ अनुष्टुद्गर्भा पंक्तिः, ४४ परावृहती, ५५-६० व्यवसाना सप्तपदाऽतिजागतशाकरातिशाकरधार्त्यगर्भातिधृतयः [ ५५, ५७-६० कृतयः, ५६ विराट् कृतिः ]। षष्ट्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Svarga and Odana
Meaning
We must do the dearest of the dear for the dear we love, because all those that hate fall into darkness. The milch cow, the burden bearing bull, and the food that comes to us again and again, let these push off the death of the kind we loathe to face.
Translation
May we do what is dear to them that are dear; whosoever hate (us), let them go to darkness; milch-cow, draft-ox, each coming vigor -- let them thrust away the death that comes from men.
Translation
Let us do good for our friends, those who hate this our generosity, go to darkness cow, Ox and bring strength in deed and strength drive away death of human-being.
Translation
To those we love may we do acts that please them. Away to darkness go all those who hate us! May cow, ox, corn and longevity approach us! Thus let them banish death of human beings.
Footnote
Cow prolongs our life with her milk. Ox tills the land that grows corn, which sustains our life.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४९−(प्रियम्) प्रीतिकरं कर्म (प्रियाणाम्) स्वहितकारकाणाम् (कृणवाम) कुर्याम (तमः) अन्धकारम्। कारागारम् (ते) दुष्टाः (यन्तु) गच्छन्तु (यतमे) ये केचित् (द्विषन्ति) वैरायन्ते (धेनुः) दोग्ध्री गौः (अनड्वान्) शकटवाहको बलीवर्दः (वयोवयः) प्रत्येकप्रकारमन्नम् (आयत्) इण् गतौ−शतृ। आगच्छत् (एव) निश्चयेन (पौरुषेयम्) पुरुष−ढञ्। मानुषम् (अप) दूरे (मृत्युम्) मरणम् (नुदन्तु) प्रेरयन्तु ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal