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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 19
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - निचृदतिजगती स्वरः - निषादः
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    स॒मु॒द्रे ते॒ हृद॑यम॒प्स्वन्तः सं त्वा॑ विश॒न्त्वोष॑धीरु॒तापः॑। सु॒मि॒त्रि॒या न॒ऽआप॒ऽओष॑धयः सन्तु दुर्मित्रि॒यास्तस्मै॑ सन्तु॒ योऽस्मान् द्वेष्टि॒ यं च॑ व॒यं द्वि॒ष्मः॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मु॒द्रे। ते॒। हृद॑यम्। अ॒प्स्वित्य॒प्सु। अ॒न्तरित्य॒न्तः। सम्। त्वा॒। वि॒श॒न्तु॒। ओष॑धीः। उ॒त। आपः॑। सु॒मि॒त्रि॒या इति॑ सुऽमित्रि॒याः। नः॒। आपः॑। ओष॑धयः। स॒न्तु॒। दु॒र्मि॒त्रि॒या इति॑ दुःऽमित्रि॒याः। तस्मै॑। स॒न्तु॒। यः। अ॒स्मान्। द्वेष्टि॑। यम्। च॒। व॒यम्। द्वि॒ष्मः ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समुद्रे ते हृदयमप्स्वन्तः सन्त्वा विशन्त्वोषधीरुतापः । सुमित्रिया नऽआप ओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु यो स्मान्द्वेष्टि यञ्च वयन्द्विष्मः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    समुद्रे। ते। हृदयम्। अप्स्वित्यप्सु। अन्तरित्यन्तः। सम्। त्वा। विशन्तु। ओषधीः। उत। आपः। सुमित्रिया इति सुऽमित्रियाः। नः। आपः। ओषधयः। सन्तु। दुर्मित्रिया इति दुःऽमित्रियाः। तस्मै। सन्तु। यः। अस्मान्। द्वेष्टि। यम्। च। वयम्। द्विष्मः॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 19
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে শিষ্য ! (তে) তোমার (হৃদয়ম্) হৃদয় (সমুদ্রে) আকাশস্থ (অপ্সু) প্রাণসকলের (অন্তঃ) মধ্যে হউক (ত্বা) তোমাকে (ওষধীঃ) ওষধিসমূহ (সং, বিশন্তু) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হউক (উত) এবং (আপঃ) প্রাণ বা জল উত্তম প্রকার প্রবিষ্ট হউক যাহাতে (নঃ) আমাদের জন্য (আপঃ) জল এবং (ওষধয়ঃ) ওষধি (সুমিত্রিয়াঃ) উত্তম মিত্র সমান সুখদায়ক (সন্তু) হউক (য়ঃ) যে (অস্মান্) আমাদের (দ্বেষ্টি) দ্বেষ করে (য়ং, চ) এবং যাহার (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) দ্বেষ করি (তস্মৈ) তাহার জন্য এই সমস্ত (দুর্মিত্রিয়াঃ) শত্রুসমান (সন্তু) হউক ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- অধ্যাপকগণের এই প্রকার করার ইচ্ছা রাখা উচিত যাহাতে শিক্ষা করিবার যোগ্য মনুষ্য অবকাশসহিত প্রাণ তথা ওষধি সমূহের বিদ্যা জ্ঞাতা হউক । ওষধি, জল ও প্রাণ উত্তম প্রকার সেবাকৃত মিত্রের সমান বিদ্বান্দিগের পালন করিবে এবং অবিদ্বান্ দিগকে শত্রুর সমান পীড়া প্রদান করিবে, তাহাদের সেবন এবং তাহাদের ত্যাগ অবশ্য করিবে ॥ ১ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - স॒মু॒দ্রে তে॒ হৃদ॑য়ম॒প্স্ব᳕ন্তঃ সং ত্বা॑ বিশ॒ন্ত্বোষ॑ধীরু॒তাপঃ॑ । সু॒মি॒ত্রি॒য়া ন॒ऽআপ॒ऽওষ॑ধয়ঃ সন্তু দুর্মিত্রি॒য়াস্তস্মৈ॑ সন্তু॒ য়ো᳕ऽস্মান্ দ্বেষ্টি॒ য়ং চ॑ ব॒য়ং দ্বি॒ষ্মঃ ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - সমুদ্র ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । আপো দেবতাঃ । নিচৃদতিজগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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