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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 71
    ऋषिः - विदर्भिर्ऋषिः देवता - इन्द्रसवितृवरुणा देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    स॒वि॒ता वरु॑णो॒ दध॒द् यज॑मानाय दा॒शुषे॑।आद॑त्त॒ नमु॑चे॒र्वसु॑ सु॒त्रामा॒ बल॑मिन्द्रि॒यम्॥७१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒वि॒ता। वरु॑णः। दध॑त्। यज॑मानाय। दा॒शुषे। आ। अ॒द॒त्त॒। नमुचेः। वसु॑। सु॒त्रामेति॑ सु॒ऽत्रामा॑। बल॑म्। इ॒न्द्रि॒यम् ॥७१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सविता वरुणो दधद्यजमानाय दाशुषे । आदत्त नमुचेर्वसु सुत्रामा बलमिन्द्रियम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सविता। वरुणः। दधत्। यजमानाय। दाशुषे। आ। अदत्त। नमुचेः। वसु। सुत्रामेति सुऽत्रामा। बलम्। इन्द्रियम्॥७१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 71
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- (বরুণঃ) উত্তম (সবিতা) প্রেরণাদাতা (সুত্রাত্মা) এবং সুষ্ঠুরক্ষক (দাশুষে) দাতা (য়জমানায়) যজমানের জন্য (বসু) দ্রব্যকে (দধৎ) ধারণ করতঃ (নমুচে) ধর্মকে না ত্যাগকারীর (বলম্) বল ও (ইন্দ্রিয়ম্) সুশিক্ষিত মনের (আ, প্রদত্ত) উত্তম প্রকারে গ্রহণ করুক ॥ ৭১ ॥

    भावार्थ - ভাষার্থঃ- দাতা পুরুষকে ভাল মত সেবা করিয়া উহা দ্বারা উত্তম পদার্থসমূহ প্রাপ্ত হইয়া যে সকলের বলকে বৃদ্ধি করে সে বলবান হয় ॥ ৭১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - স॒বি॒তা বর॑ুণো॒ দধ॒দ্ য়জ॑মানায় দা॒শুষে॑ ।
    আऽদ॑ত্ত॒ নমু॑চে॒র্বসু॑ সু॒ত্রামা॒ বল॑মিন্দ্রি॒য়ম্ ॥ ৭১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - সবিতেত্যস্য বিদর্ভির্ঋষিঃ । ইন্দ্রসবিতৃবরুণা দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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