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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 53
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रष्टा देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    का स्वि॑दासीत् पू॒र्वचि॑त्तिः॒ कि॑स्वि॑दासीद् बृ॒हद्वयः॑।का स्वि॑दासीत् पिलिप्पि॒ला का स्वि॑दासीत् पिशङ्गि॒ला॥५३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    का। स्वि॒त्। आ॒सी॒त्। पू॒र्वचि॑त्ति॒रिति॑ पू॒र्वऽचि॑त्तिः। किम्। स्वि॒त्। आ॒सी॒त्। बृ॒हत्। वयः॑। का। स्वि॒त्। आ॒सी॒त्। पि॒लि॒प्पि॒ला। का। स्वि॒त्। आ॒सी॒त्। पि॒श॒ङ्गि॒ला ॥५३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    का स्विदासीत्पूर्वचित्तिः किँ स्विदासीद्बृहद्वयः । का स्विदासीत्पिलिप्पिला का स्विदासीत्पिशङ्गिला ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    का। स्वित्। आसीत्। पूर्वचित्तिरिति पूर्वऽचित्तिः। किम्। स्वित्। आसीत्। बृहत्। वयः। का। स्वित्। आसीत्। पिलिप्पिला। का। स्वित्। आसीत्। पिशङ्गिला॥५३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 53
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে বিদ্বন্! এই জগতে (কা, স্বিৎ) কে (পূর্বচিত্তিঃ) পূর্ব অনাদি সময়ে সঞ্চিত হওয়ার (আসীৎ) আছে? (কিং, স্বিৎ) কী (বৃহৎ) বৃহৎ (বয়ঃ) উৎপন্ন স্বরূপ (আসীৎ) আছে? (কা, স্বিৎ) কে (পিলিপ্পিলা) আদ্রীভূত চিক্কন (আসীৎ) আছে এবং (কা, স্বিৎ) কে (পিশঙ্গিলা) অবয়বগুলি কে ভিতরে করিয়া (আসীৎ) আছে, ইহা আপনার নিকট জিজ্ঞাসা করি ॥ ৫৩ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে চারটি প্রশ্ন, তাহার সমাধান পরবর্ত্তী মন্ত্রে দেখা উচিত ॥ ৫৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - কা স্বি॑দাসীৎ পূ॒র্বচি॑ত্তিঃ॒ কিᳬंস্বি॑দাসীদ্ বৃ॒হদ্বয়ঃ॑ ।
    কা স্বি॑দাসীৎ পিলিপ্পি॒লা কা স্বি॑দাসীৎ পিশঙ্গি॒লা ॥ ৫৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - কা স্বিদিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । প্রষ্টা দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ।

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