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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 46
    ऋषिः - शास ऋषिः देवता - विश्वकर्मेन्द्रो देवता छन्दः - निचृत् आर्षी त्रिष्टुप्,विराट आर्षी अनुष्टुप्, स्वरः - धैवतः, गान्धारः
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    विश्व॑कर्मन् ह॒विषा॒ वर्ध॑नेन त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मकृणोरव॒ध्यम्। तस्मै॒ विशः॒ सम॑नमन्त पू॒र्वीर॒यमुग्रो वि॒हव्यो॒ यथास॑त्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतो॒ऽसीन्द्रा॑य त्वा विश्व॒क॑र्मणऽए॒ष ते॒ योनि॒रिन्द्रा॑य त्वा वि॒श्वक॑र्मणे॥४६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्व॑कर्म॒न्निति॒ विश्व॑ऽकर्मन्। ह॒विषा॑। वर्द्ध॑नेन। त्रा॒तार॑म्। इन्द्र॑म्। अ॒कृ॒णोः॒। अ॒व॒ध्यम्। तस्मै॑। विशः॑। सम्। अ॒न॒म॒न्त॒। पू॒र्वीः। अ॒यम्। उ॒ग्रः। वि॒हव्य॒ इति॑ वि॒ऽहव्यः॑। यथा॑। अस॑त्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। इन्द्रा॑य। त्वा॒। वि॒श्वक॑र्मण॒ इति॑ वि॒श्वऽक॑र्मणे। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। इन्द्रा॑य। त्वा॒। वि॒श्वक॑र्मण॒ इति॑ वि॒श्वऽक॑र्मणे ॥४६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वकर्मन्हविषा वर्धनेन त्रातारमिन्द्रमकृणोरवध्यम् । तस्मै विशः समनमन्त पूर्वीरयमुग्रो विहव्यो यथासत् । उपयामगृहीतो सीन्द्राय त्वा विश्वकर्मणे ऽएष ते योनिरिन्द्राय त्वा विश्वकर्मणे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वकर्मन्निति विश्वऽकर्मन्। हविषा। वर्द्धनेन। त्रातारम्। इन्द्रम्। अकृणोः। अवध्यम्। तस्मै। विशः। सम्। अनमन्त। पूर्वीः। अयम्। उग्रः। विहव्य इति विऽहव्यः। यथा। असत्। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। इन्द्राय। त्वा। विश्वकर्मण इति विश्वऽकर्मणे। एषः। ते। योनिः। इन्द्राय। त्वा। विश्वकर्मण इति विश्वऽकर्मणे॥४६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 46
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    भावार्थ -

    हे (विश्वकर्मन् ) समस्त कला कौशल के कार्यों को भली प्रकार से सम्पादन करने में समर्थ विद्वान् क्रिया कुशल पुरुष ! तू ( वर्धनेन हविषा ) वृद्धि करने वाले उपाय या साधन से या काष्ठ, लोह आदि पदार्थों के छेदन भेदन की ( हविषा ) उचित साधन से सामग्री से ( त्रातारम् राष्ट्र के रक्षक इन्द्र को ( अवध्यम् अकृणोः ) अवध्य बना देता है । अर्थात् तेरे कौशलों से सुरक्षित राजा को कोई भी युद्ध में मारने में समर्थ नहीं होता है । ( तस्मै ) उस रक्षक राजा के आगे ( पूर्वी ) शिक्षामें पूर्णा, ( विशः ) समस्त प्रजाएं ( सम् अनमन्त ) भली प्रकार झुकती हैं । तेरे हो कारण ( अयम् ) यह राजा ( विहव्यः ) विशेष साधनों से सम्पन्न ( यथा असत्) जिस प्रकार हो तू ऐसा प्रयत्न कर। हे योग्य पुरुष (उपनाम गृहीतः असि० ) इत्यादि पूर्ववत् ॥ शत० ४ । ५ ॥ ४ ॥ ६ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    शासो भारद्वाज ऋषिः । विश्वकर्मा इन्द्रो देवता । पूर्ववत् छन्दःस्वरौ ॥  

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