Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 30
    ऋषिः - अत्रिर्ऋषिः देवता - दम्पती देवते छन्दः - आर्षी जगती स्वरः - मध्यमः
    1

    पु॒रु॒द॒स्मो विषु॑रूप॒ऽइन्दु॑र॒न्तर्म॑हि॒मान॑मानञ्ज॒ धीरः॑। एक॑पदीं द्वि॒पदीं॑ त्रि॒पदीं॒ चतु॑ष्पदीम॒ष्टाप॑दीं॒ भुव॒नानु॑ प्रथन्ता॒ स्वाहा॑॥३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒रु॒द॒स्म इति॑ पुरुऽद॒स्मः। वि॑षुरूप॒ इति॒ विषु॑ऽरूपः। इन्दुः॑। अ॒न्तः। म॒हि॒मान॑म्। आ॒न॒ञ्ज॒। धीरः॑। एक॑पदी॒मित्येक॑ऽपदीम्। द्वि॒पदी॒मिति॑ द्वि॒ऽपदीम्॑। त्रि॒पदी॒मिति॒ त्रि॒ऽपदी॑म्। चतु॑ष्पदीम्। चतुः॑पदी॒मिति॒ चतुः॑ऽपदीम्। अ॒ष्टाप॑दी॒मित्य॒ष्टाऽप॑दीम्। भुव॑ना। अनु॒। प्र॒थ॒न्ता॒म्। स्वाहा॑ ॥३०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुरुदस्मो विषुरूप ऽइन्दुरन्तर्महिमानमानञ्ज धीरः । एकपदीन्द्विपदीन्त्रिपदीञ्चतुष्पदीमष्टापदीम्भुवनानु प्रथन्ताँ स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पुरुदस्म इति पुरुऽदस्मः। विषुरूप इति विषुऽरूपः। इन्दुः। अन्तः। महिमानम्। आनञ्ज। धीरः। एकपदीमित्येकऽपदीम्। द्विपदीमिति द्विऽपदीम्। त्रिपदीमिति त्रिऽपदीम्। चतुष्पदीम्। चतुःपदीमिति चतुःऽपदीम्। अष्टापदीमित्यष्टाऽपदीम्। भुवना। अनु। प्रथन्ताम्। स्वाहा॥३०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 30
    Acknowledgment

    भावार्थ -

     ( पुरुदस्मः ) अति अधिक दानशील, अथवा बहुतसे प्रजाजनों के बीच दर्शनीय, अथवा बहुत से दुखों का नाशक (विषुरूपः ) राष्ट्र में व्यापक बहुत से रूपों में प्रकट होनेवाला ( इन्दुः ) ऐश्वर्यवान् ( धीरः )धीर, बुद्धिमान् सर्व व्यवहारों में कुशल होकर ( अन्तः ) प्रजाओं के बीच ( महिमानम् ) अपने महान् सामर्थ्य को आनञ्ज ) प्रकट करता है । है विद्वान् पुरुषो ! आप लोग एकपदीम् ) राजा रूप एकमात्र चरण अर्थात् आश्रयवाली ( द्विपदीम् ) राजा और राजाङ्गरूप से चरणचाली, ( त्रिपदीम् । राजा, राज्याङ्ग और राजसभा इम तीन से तीन चरणवाली, चतुष्पदी चारों वर्णों से चतुष्पदी, चार चरणोंवाली अथवा सेना के चार अंगों द्वारा चतुष्पदी और ( अष्टापदीम् ) चार वर्ण और चार आश्रम द्वारा अष्टापदी अथवा राज्य के सात अङ्ग और पुरोहित इनसे अष्टापदी, 'वशा' अर्थात् राज्य की वशकारिणी शक्ति को ( भुवना अनु ) समस्त भुवनों में ( स्वाहा उत्तम रीति से ( प्रथन्ताम् ) विस्तृत करो ॥ शत० ४ । ५। २ । १२ ।। 

    गृहस्थ पक्ष में – दुःखों का नाशक ऐश्वर्यवान् धीर, गृहस्थ पुरुष अपने सामर्थरूप वीर्य को स्त्री के भीतर स्थापित करें | सब लोग एकपदी, द्विपदी आदि विशेषण युक्त वेदवाणी को सर्वत्र विस्तृत करें। 'ओम्' यह एक पद । अभ्युदय और निःश्रेयस दो पद । वाचिक, मानस, शरीर-सुख ये तीन पद । धर्म, अर्थ, काम मोक्ष चार पद । ४ व ४ आश्रम येआठ् पद । अर्थात् इनको प्राप्त करानेवाली । 
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    गर्भो देवता आर्षी जगती । मध्यमः ॥ 

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top