यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 28
ऋषिः - अत्रिर्ऋषिः
देवता - दम्पती देवते
छन्दः - भूरिक् साम्नी उष्णिक्,प्राजापत्या अनुष्टुप्,
स्वरः - ऋषभः, गान्धारः
0
एज॑तु॒ दश॑मास्यो॒ गर्भो॑ ज॒रायु॑णा स॒ह। यथा॒यं वा॒युरेज॑ति॒ यथा॑ समु॒द्रऽएज॑ति। ए॒वायं दश॑मास्यो॒ऽअस्र॑ज्ज॒रायु॑णा स॒ह॥२८॥
स्वर सहित पद पाठएज॑तु। दश॑मास्य॒ इति॒ दश॑ऽमास्यः। गर्भः॑। ज॒रायु॑णा। स॒ह। यथा॑। अ॒यम्। वा॒युः। एज॑ति। यथा॑। स॒मु॒द्रः। एज॑ति। ए॒व। अ॒यम्। दश॑मास्य॒ इति॒ दश॑ऽमास्यः। अस्र॑त्। ज॒रायु॑णा। स॒ह ॥२८॥
स्वर रहित मन्त्र
एजतु दशमास्यो गर्भा जरायुणा सह । यथायँवायुरेजति यथा समुद्र एजति । एवायन्दशमास्यो ऽअस्रज्जरायुणा सह ॥
स्वर रहित पद पाठ
एजतु। दशमास्य इति दशऽमास्यः। गर्भः। जरायुणा। सह। यथा। अयम्। वायुः। एजति। यथा। समुद्रः। एजति। एव। अयम्। दशमास्य इति दशऽमास्यः। अस्रत्। जरायुणा। सह॥२८॥
विषय - राजा की गर्भ से उपमा।
भावार्थ -
मं० २६ में राजा को गर्भ से उपमा दी है। उसी का पुनः निर्वाह करते हैं । ( दशमास्यः गर्भः ) दश मास का गर्भ जिस प्रकार ( जरायुण ) जेर के साथ शनैः २ बाहर आता है और माता को प्रसवकाल में पीड़ा देता है । उसी प्रकार दश मास के परिपक्क गर्भ के समान अच्युत, दृढ़ ( गर्भः ) राष्ट्र को पूर्ण प्रकार से ग्रहण करने में समर्थ राजा ( जरायुणा ) अपने जरायु अर्थात् चारों ओर से घेरनेवाले, अपनी स्तुति करनेवाले, अपने सपक्षी दल के साथ ( एजतु ) चले । और ( यथा ) जिस प्रकार ( अयं वायुः ) यह वायु बड़े वेग से समस्त वृक्ष आदि को कंपाता हुआ (एजति ) चलता है और ( यथा समुद्रः एजति ) जिस प्रकार समुद्र गर्जता हुआ तरङ्गों द्वारा कांपता है ( एवा ) उसी प्रकार ( अयम् ) यह दशमास्यः ) दशों दिशाओं में मास अर्थात् चन्द्रमा के समान आह्लादक दशमास्य गर्भ के बालक के समान स्वयं उत्पन्न होनेहारा और प्रजाओं को प्रसन्न करने हारा राजा ( जरायुणा सह ) अपने स्तुति करनेहारे दल के साथ (असत्) बाहर आता है, स्पष्टरूप में प्रकट होता है ॥ शत० ४ । ५ ॥ २ । ४, ५ ॥
`` जरायु' - शणा जरायु ॥ श० ६ । ६ । २ । १५ ॥ यत्र वा प्रजा- पतिरजायत गर्भो भूत्वा एतस्मात् यज्ञात् । तस्य यन्नेदिष्ठमुल्वमासीत् ते शरणः ॥ श० ३।२।१।११।।
गर्भपत्र में --- दस मास का गर्भ जरायु के साथ चले । जिस वेग से वायु और समुद्र चलता है उस प्रकार विना बाधा के जरायु सहित गर्भ बाहर आवे | इस मन्त्र को महीधर आदि ने गर्भणी गाय के गर्भ कर्तन मैं लगाया है, सो असंगत है ।
टिप्पणी -
१ एजत दशमास्य २ यथायंवायुरेजति ३ एवायंदशमास्योऽअराज्जरायुणा । २८ - दम्पती देवते ।द० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
गर्भो देवता । व्यवसाना महापंक्तिः । अथवा ( १ ) साम्न्यासुरी उष्णिक् । ऋषभः ( २ ) प्राजापत्यानुष्टुप् । गांधारः ॥
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal