ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 45/ मन्त्र 10
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तमु॑ त्वा सत्य सोमपा॒ इन्द्र॑ वाजानां पते। अहू॑महि श्रव॒स्यवः॑ ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । स॒त्य॒ । सो॒म॒ऽपाः॒ । इन्द्र॑ । वा॒जा॒ना॒म् । प॒ते॒ । अहू॑महि । श्र॒व॒स्यवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमु त्वा सत्य सोमपा इन्द्र वाजानां पते। अहूमहि श्रवस्यवः ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठतम्। ऊँ इति। त्वा। सत्य। सोमऽपाः। इन्द्र। वाजानाम्। पते। अहूमहि। श्रवस्यवः ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 45; मन्त्र » 10
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्तेयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे सत्य सोमपा वाजानां पत इन्द्र ! श्रवस्यवो वयं त्वाऽहूमहि तथा तमु सर्व आह्वयन्तु ॥१०॥
पदार्थः
(तम्) (उ) (त्वा) त्वाम् (सत्य) सत्सु साधो (सोमपाः) यः सोममैश्वर्यं पाति तत्सम्बुद्धौ (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (वाजानाम्) विज्ञानान्नादीनाम् (पते) पालक स्वामिन् (अहूमहि) प्रशंसेम (श्रवस्यवः) य आत्मनः श्रवोऽन्नादिकमिच्छवः ॥१०॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् वा विद्वन् ! भवाञ्छुभगुणकर्मस्वभावः प्रजापालनतत्परः सुशीलो जितेन्द्रियो यावद् भविष्यति तावद्वयं त्वां मंस्यामहे ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा और प्रजाजन परस्पर कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (सत्य) श्रेष्ठों में श्रेष्ठ (सोमपाः) ऐश्वर्यकी रक्षा करने तथा (वाजानाम्) विज्ञान और अन्न आदिकों के (पते) पालने और (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य के देनेवाले ! (श्रवस्यवः) अपने अन्न आदि की इच्छा करनेवाले हम लोग (त्वा) आपकी (अहूमहि) प्रशंसा करें, वैसे (तम्, उ) उन्हीं को सब लोग पुकारें ॥१०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् वा विद्वन् ! आप श्रेष्ठ गुण, कर्म्म और स्वभाव से युक्त होकर प्रजा के पालन में तत्पर सुशील और इन्द्रियों के जीतनेवाले जब तक होंगे, तबतक हम लोग आपको मानेंगे ॥१०॥
विषय
वाजपति गुरु, का राजावत् वर्णन ।
भावार्थ
हे ( सत्य ) सज्जनों में सर्वश्रेष्ठ, सत्यभाषण आदि व्यवहार करने हारे ! हे ( सोमपाः ) ओषधिरस का पान करनेवाले, ऐश्वर्य,राष्ट्र प्रजा को प्रजा वा शिष्यवत् पालन करने वाले ! हे ( वाजानां पते ) बलों, ज्ञानों, अन्नों और संग्रामों के पालक ! हे ( इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! शत्रुहन्तः ! हम लोग ( श्रवस्यवः ) यश, अन्न, उपदेश आदि के इच्छुक जन (त्वा तम् उ) उस तुझ को ही ( अहूमहि ) पुकारते हैं, तुझ से विनय करते, तेरी स्तुति करते हैं । इति द्वाविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ १-३० इन्द्रः । ३१-३३ बृबुस्तक्षा देवता ।। छन्दः—१, २, ३, ८, १४, २०, २१, २२, २३, २४, २८, ३०, ३२ गायत्री । ४, ७, ९, १०, ११, १२, १३, १५, १६, १७, १८, १९, २५, २६, २९ निचृद् गायत्री । ५, ६, २७ विराड् गायत्री । ३१ आर्च्यु-ष्णिक । ३३ अनुष्टुप् ॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
'सत्य सोमपा' प्रभु
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! (तं त्वा उ) = उन आपको ही (श्रवस्यवः) = ज्ञान की कामनावाले हम (अहूमहि) = पुकारते हैं। आप ही तो हमें सब सत्य ज्ञानों की प्राप्ति होती है । [२] हे प्रभो! आप ही (सत्य) = सत्यस्वरूप हैं। (सोमपा:) = हमारे सोम का रक्षण करनेवाले हैं। इन्द्र शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले हैं। (वाजानां पते) = सब शक्तियों के स्वामी हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु को पुकारें, प्रभु ही हमें सत्यज्ञान की प्रेरणा देंगे। वे सत्यस्वरूप हैं, सोम का रक्षण करनेवाले हैं, शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले व शक्तियों के पति हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा किंवा विद्वाना ! तू जोपर्यंत श्रेष्ठ गुण, कर्म, स्वभावाने युक्त होऊन प्रजापालनात तत्पर, सुशील व जितेंद्रिय राहशील तोपर्यंत आम्ही तुला मानू. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord ever true and redoubtable, protector of the spirit and culture of the good life, ruler and promoter of food, energy and progressive advancement of the people, we invoke and call upon you to lead us in our pursuit of sustenance, progress, honour and excellence and immortal fame.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should the kings and their subjects deal with one another is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O truthful good protector of the wealth and preserver of true knowledge and food-grains! we desirous of food, knowledge and glory admire you. O giver of great wealth! let others also praise you.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king or scholar, we shall honor you, only so long as, you will remain endowed with noble virtues, actions and temperament, engaged in sustaining the people, self controlled and good charactered.
Foot Notes
(सोमयाः) वः सोमैश्वर्य पाति तत्संबुद्धौ।(सोम:) षु-प्रसवैश्वर्ययोः (अदा.) अत्र ऐश्वयर्थिग्रहणम्। = He who protects wealth. (वाधनाम् ) विज्ञानाम्नादीनाम् । बाज इति अन्ननाम (NG 2, 7) बाज इति बलनाम (NG 2, 9) बाज:- बज- गतौ (भ्वा.) गतेस्त्रिष्वर्थेष्वत्न ज्ञानार्थं ग्रहणम्। = Of true knowledge, food grains etc. (श्रवस्यवः) य आत्मनः श्रवो अदिकमिच्छवः । श्रवः इत्वरम्ननाम (NG 2, 7) श्रवः इति धननाम (NG 2,10) श्रव प्रशंसाम् इति (NKT 4, 4, 24)। = Desirous of food grains and other things.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal