ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 45/ मन्त्र 22
तद्वो॑ गाय सु॒ते सचा॑ पुरुहू॒ताय॒ सत्व॑ने। शं यद्गवे॒ न शा॒किने॑ ॥२२॥
स्वर सहित पद पाठतत् । वः॒ । गा॒य॒ । सु॒ते । सचा॑ । पु॒रु॒ऽहू॒ताय॑ । सत्व॑ने । शम् । यत् । गवे॑ । न । शा॒किने॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने। शं यद्गवे न शाकिने ॥२२॥
स्वर रहित पद पाठतत्। वः। गाय। सुते। सचा। पुरुऽहूताय। सत्वने। शम्। यत्। गवे। न। शाकिने ॥२२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 45; मन्त्र » 22
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः कस्मै किं कुर्य्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यद्वः प्रशंसन्ति तच्छाकिने गवे न सुते सचा पुरुहूताय सत्वने स्युस्तान् हे इन्द्र ! त्वं शं गाय ॥२२॥
पदार्थः
(तत्) ते (वः) युष्मभ्यम् (गाय) स्तुहि (सुते) उत्पन्नेऽस्मिञ्जगति (सचा) समवेतेन सत्येन (पुरुहूताय) बहुभिः प्रशंसिताय (सत्वने) शुद्धान्तःकरणाय (शम्) (यत्) ये (गवे) स्तावकाय (न) इव (शाकिने) शक्तिमते ॥२२॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यथा सर्वविद्यापारगस्याऽध्यापनोपदेशेन कर्मणा सर्वेषां मङ्गलं वर्धते तथैवोत्तमेन राज्ञा प्रजासुखमुन्नतं भवति ॥२२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य किसके लिये क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (यत्) जो (वः) आप लोगों के लिये प्रशंसा करते हैं (तत्) वे (शाकिने) सामर्थ्ययुक्त (गवे) स्तुति करनेवाले के लिये (न) जैसे वैसे (सुते) उत्पन्न हुए इस संसार में (सचा) संयुक्त सत्य से (पुरुहूताय) बहुतों से प्रशंसित (सत्वने) शुद्ध अन्तःकरणवाले के लिये हों, उनकी हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्य से युक्त ! आप (शम्) सुखपूर्वक (गाय) स्तुति कीजिये ॥२२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सम्पूर्ण विद्याओं के पार जानेवाले के अध्यापन और उपदेशरूप कर्म्म से सब का मङ्गल बढ़ता है, वैसे ही उत्तम राजा से प्रजा का सुख उन्नत होता है ॥२२॥
विषय
missing
भावार्थ
हे विद्वान् लोगो ! ( वः सुते ) आप लोगों के उत्पन्न इस जगत् में वा अन्न, धन, पुत्र, ऐश्वर्यादि के प्राप्त होने पर आप ( सचा) सब एक साथ मिलकर ( तत् ) उस ( सत्वने ) सत्ववान्, बलवान्, शुद्ध अन्तःकरण वाले ( पुरुहूताय ) बहुतों से प्रशंसित, (गवेन शाकिने ) बड़े बैल के समान शक्तिमान् सर्वव्यापक, ज्ञानी की ( गाय ) स्तुति करो। ( यत् ) जो ( शं ) तुम्हें शान्ति प्रदान करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ १-३० इन्द्रः । ३१-३३ बृबुस्तक्षा देवता ।। छन्दः—१, २, ३, ८, १४, २०, २१, २२, २३, २४, २८, ३०, ३२ गायत्री । ४, ७, ९, १०, ११, १२, १३, १५, १६, १७, १८, १९, २५, २६, २९ निचृद् गायत्री । ५, ६, २७ विराड् गायत्री । ३१ आर्च्यु-ष्णिक । ३३ अनुष्टुप् ॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
मिलकर प्रभु का गुणगान
पदार्थ
[१] (वः) = तुम (सुते) = शरीर में सोम का सम्पादन करने पर (सचा) = मिलकर (पुरुहूताय) = पालक व पूरक पुकारवाले, जिसकी प्रार्थना हमारा पालन व पूरण करती है, उस (सत्वने) = शत्रुओं के (सादयिता) = [नाशक] व धनों के दाता प्रभु के लिये (तद्) = गाय- उन स्तोत्रों का गायन करो। [२] (यत् गवे न) = [गमयति] अर्थात् सब अर्थों के ज्ञापक के (न) = समान (शाकिने) = सर्वशक्तिमान् प्रभु के लिये उस स्तोत्र का गायन करो (यत्) = जो (शम्) = शान्ति का देनेवाला हो । वस्तुतः प्रभु को सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान् के रूप में सोचते हुए हम भी ज्ञान व शक्ति को प्राप्त करने की प्रेरणा लेते हैं और इस प्रकार जीवन में शान्ति को पाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हम सोम का रक्षण करते हुए मिलकर घरों में प्रभु का गायन करें। यह गायन हमें ज्ञान व शक्ति को प्राप्त करने की प्रेरणा देगा और हमारे जीवन को शान्त बनायेगा।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे संपूर्ण विद्येत पारंगत असलेल्या लोकांच्या अध्यापन व उपदेशरूपी कर्माने सर्वांचे मंगल होते. तसेच उत्तम राजामुळे प्रजेचे सुख वाढते. ॥ २२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
In your soma yajna in the business of the world of the lord’s creation, sing together songs of homage in honour of the universally adored, ever true and eternal almighty Indra, songs which may be as pleasing to the mighty lord as to the seeker and the celebrant.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men do and for whom-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! what praise is offered to you in this world, let that be for the truthful, man of pure heart, admired by many, like the mighty devotee, who sings the glory of God. O king ! you should also praise their glory.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As by the teaching and preaching and actions of an enlightened person, who is well-versed in all sciences, the welfare of all is accomplished, in the same way, the happiness of the subjects, ever grows by the best king.
Foot Notes
(सुते ) उत्पन्नेऽस्मिञ्जगति । षु-प्रसर्वश्वयोः (स्वा.) । उत्पन्न जगत्सुतम् ।=In this world created by God. (सत्वने) शुद्धान्तकरणाय। = For a man who is of pure mind, intellect and heart. (गवे) स्तावकाय गौरिति स्तोतृनाम (NG 3, 16 )। = For a devotee of God, who sings the glory of God.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal