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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 45 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 45/ मन्त्र 19
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र॒त्नं र॑यी॒णां युजं॒ सखा॑यं कीरि॒चोद॑नम्। ब्रह्म॑वाहस्तमं हुवे ॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒त्नम् । र॒यी॒णाम् । युज॑म् । सखा॑यम् । की॒रि॒ऽचोद॑नम् । ब्रह्म॑ऽवाहःऽतमम् । हु॒वे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रत्नं रयीणां युजं सखायं कीरिचोदनम्। ब्रह्मवाहस्तमं हुवे ॥१९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रत्नम्। रयीणाम्। युजम्। सखायम्। कीरिऽचोदनम्। ब्रह्मऽवाहःऽतमम्। हुवे ॥१९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 45; मन्त्र » 19
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्याः कीदृशं जनं प्रशंसेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यथाऽहं रयीणां युजं कीरिचोदनं ब्रह्मवाहस्तमं प्रत्नं सखायं हुवे तथैनं यूयमपि प्रशंसत ॥१९॥

    पदार्थः

    (प्रत्नम्) प्राचीनम् (रयीणाम्) धनानाम् (युजम्) योजकम् (सखायम्) सर्वसुहृदम् (कीरिचोदनम्) कीरीणां विद्यार्थिनां प्रेरकम् (ब्रह्मवाहस्तमम्) अतिशयेन वेदेश्वरविद्याप्रापकम् (हुवे) स्तौमि ॥१९॥

    भावार्थः

    ये सार्वजनहितसम्पादकं विद्वत्तमं सत्यग्रहणायाऽसत्यत्यागायऽध्यापनोपदेशाभ्यां प्रेरकं स्थिरमित्रं सत्कृत्य प्रशंसन्ति त एव गुणग्राहका भवन्ति ॥१९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य कैसे जन की प्रशंसा करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे मैं (रयीणाम्) धनों के (युजम्) युक्त करानेवाले (कीरिचोदनम्) विद्यार्थियों के प्रेरक (ब्रह्मवाहस्तमम्) अतिशय वेद और ईश्वर की जो विद्या उसके प्राप्त करानेवाले (प्रत्नम्) प्राचीन (सखायम्) सब के मित्र की (हुवे) स्तुति करता हूँ, वैसे इसकी आप लोग भी प्रशंसा करो ॥१९॥

    भावार्थ

    जो सम्पूर्ण जनों के हितकारक, अत्यन्त विद्वान्, सत्य के ग्रहण और असत्य के त्याग के लिये अध्यापन और उपदेश से प्रेरणा करनेवाले, स्थिर मित्र का सत्कार करके प्रशंसा करते हैं, वे ही गुणग्राहक होते हैं ॥१९॥

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    विषय

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    भावार्थ

    मैं ( रयीणां युजं ) धनों और बलों के दाता, (प्रत्नं) पुराने, वृद्ध, ( सखायं ) मित्र, (कीरि-चोदनम् ) विद्यार्थियों और स्तुतिकर्त्ताओं को उपदेश करने वाले (ब्रह्मवाहः-तमम् ) सबसे उत्तम वेद विज्ञान वा धन को धारण एवं प्राप्त कराने वाले आप की ( हुवे ) आदरपूर्वक प्रार्थना करूं ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ १-३० इन्द्रः । ३१-३३ बृबुस्तक्षा देवता ।। छन्दः—१, २, ३, ८, १४, २०, २१, २२, २३, २४, २८, ३०, ३२ गायत्री । ४, ७, ९, १०, ११, १२, १३, १५, १६, १७, १८, १९, २५, २६, २९ निचृद् गायत्री । ५, ६, २७ विराड् गायत्री । ३१ आर्च्यु-ष्णिक । ३३ अनुष्टुप् ॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सखायं

    पदार्थ

    (१) मैं (ब्रह्मवाहस्तमम्) = अतिशयेन ज्ञानों का धारण करनेवाले उस प्रभु को हुवे पुकारता हूँ। प्रभु का ज्ञान नितिशय है। प्रभु का उपासक बनकर मैं भी ज्ञान को प्राप्त करता हूँ। (२) उस प्रभु को मैं पुकारता हूँ, जो (प्रत्नं सखायम्) = सनातन सखा हैं, सदा से हमारे मित्र हैं। (रयीणां युजम्) = धनों का हमारे साथ सम्पर्क करनेवाले हैं और (कीरिचोदनम्) = स्तोताओं को सदा सत्प्रेरणा देनेवाले हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की आराधना मुझे उस सनातन सखा से 'ज्ञान, धन व उत्तम प्रेरणा' को प्राप्त करायेगी।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे संपूर्ण लोकांचे हितकर्ते, अत्यंत विद्वान, सत्याचे ग्रहण व असत्याचा त्याग करण्यासाठी अध्यापन व उपदेश याद्वारे प्रेरणा करणारे असतात, स्थिर असलेल्या मित्राचा सत्कार करून प्रशंसा करतात तेच गुणग्राहक असतात. ॥ १९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    I invoke and celebrate that most eminent sage and scholar of universal Vedic knowledge who is great as ancient seers, friend, and inspirer of dedicated disciples to win the wealth of life both spiritual and material.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What kind of man should be admired by men is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! as I praise a man, who is the proper utilizer of wealth of all kinds, is inspirer of students and is the best conveyor of the knowledge of Veda and God and an old (trust-worthy) friend, so you should also do.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons only, are the true accepters of virtues, who admire firm friend, who is the accomplisher of public good- is the greatest scholar and by teaching and preaching, urge upon all to accept truth and to renounce untruth.

    Foot Notes

    (कीरिचोदनम् ) कीरीणां विद्याधिनां प्र ेरकम् । (कीरिः) कीरिरिति स्तोतृनाम (NG 3, 16 ) । अत्र विद्यायांविदुषां च स्नोता विद्यार्थी गृहणते । चुद संचोदने । संचोदन । प्रेरण्यम् | = Impeller or inspirer of students. (ब्रह्मवाहस्तमम्) अतिशयेन बेदेश्वर विद्याप्रापकम् । = The best conveyor of the knowledge of Vedas and God. वह प्रापणे (भ्वा.) । =

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