ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 45/ मन्त्र 7
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ब्र॒ह्माणं॒ ब्रह्म॑वाहसं गी॒र्भिः सखा॑यमृ॒ग्मिय॑म्। गां न दो॒हसे॑ हुवे ॥७॥
स्वर सहित पद पाठब्र॒ह्माण॑म् । ब्रह्म॑ऽवाहसम् । गीः॒ऽभिः । सखा॑यम् । ऋ॒ग्मिय॑म् । गाम् । न । दो॒हसे॑ । हु॒वे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्माणं ब्रह्मवाहसं गीर्भिः सखायमृग्मियम्। गां न दोहसे हुवे ॥७॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्माणम्। ब्रह्मऽवाहसम्। गीःऽभिः। सखायम्। ऋग्मियम्। गाम्। न। दोहसे। हुवे ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 45; मन्त्र » 7
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! यथाहं गीर्भिर्दोहसे गां न सखायमृग्मियं ब्रह्मवाहसं ब्रह्माणं हुवे तथैनं भवानाह्वयतु ॥७॥
पदार्थः
(ब्रह्माणम्) चतुर्वेदविदम् (ब्रह्मवाहसम्) वेदानां शब्दार्थसम्बन्धस्वराणां प्रापकम् (गीर्भिः) सुशिक्षिताभिर्मधुराभिः सत्याभिर्वाग्भिः (सखायम्) सर्वेषां मित्रम् (ऋग्मियम्) स्तुतिभिः स्तवनीयम् (गाम्) दुग्धदात्रीं धेनुम् (न) इव (दोहसे) दोग्धुम् (हुवे) आह्वयामि प्रशंसामि च ॥७॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा विद्वांसो वेदपारमाप्तं विद्वांसमाश्रित्य सभ्या विपश्चितो जायन्ते तथैतेषां सङ्गेन यूयमपि विद्वांसश्चतुरा वा भवत ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! जैसे मैं (गीर्भिः) सुशिक्षायुक्त, मधुर, सत्यवाणियों से (दोहसे) दोहने पूरण करने को (गाम्) गौ के (न) समान (सखायम्) सब के मित्र (ऋग्मियम्) स्तुतियों से स्तुति करने योग्य (ब्रह्मवाहसम्) वेदों के शब्दार्थ सम्बन्ध और स्वरों के करानेवाले (ब्रह्माणम्) चतुर्वेदवेत्ता विद्वान् को (हुवे) बुलाता और उसकी प्रशंसा करता हूँ, वैसे इसको आप बुला और उसकी प्रशंसा करो ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् जन वेदपारगन्ता, आप्त, विद्वान् का आश्रय लेकर सभ्य विपश्चित् होते हैं, वैसे इनके सङ्ग से तुम भी विद्वान् वा चतुर होओ ॥७॥
विषय
missing
भावार्थ
( दोहसे गां न ) दूध दोहने के लिये जिस प्रकार गौ को प्रेम से बुलाते हैं उसी प्रकार मैं (ब्रह्म-वाहसं ) वेद ज्ञान को धारण करने वाले (ऋग्मियं) ऋचाओं के वेत्ता, स्तुतियों के योग्य पात्र, (सखायं) सब के मित्र रूप, ( ब्रह्माणं ) बड़े वेदज्ञ विद्वान् पुरुष को ( दोहसे ) ज्ञान रस प्राप्त करने के लिये ( हुवे ) आदर से बुलाऊं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ १-३० इन्द्रः । ३१-३३ बृबुस्तक्षा देवता ।। छन्दः—१, २, ३, ८, १४, २०, २१, २२, २३, २४, २८, ३०, ३२ गायत्री । ४, ७, ९, १०, ११, १२, १३, १५, १६, १७, १८, १९, २५, २६, २९ निचृद् गायत्री । ५, ६, २७ विराड् गायत्री । ३१ आर्च्यु-ष्णिक । ३३ अनुष्टुप् ॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
ब्रह्म- दोहन
पदार्थ
[१] मैं (दोहसे) = दोहन के लिये (न) = जैसे (गाम्) = गौ को पुकारते हैं, इसी प्रकार ज्ञानदुग्ध का दोहन करने के लिये (गीर्भिः) = स्तुति-वाणियों के द्वारा (ऋग्मियम्) = स्तुति के योग्य प्रभु को (हुवे) = पुकारता हूँ। गौ से दूध को प्राप्त करते हैं, प्रभु से ज्ञानदुग्ध को। [२] उस प्रभु को हम पुकारते हैं जो कि (ब्रह्माणम्) = [परिबृढं] खूब बढ़े हुए हैं। (ब्रह्मवाहसम्) = सम्पूर्ण ज्ञानों का धारण करने व करानेवाले हैं। (सखायम्) = हम सबके सखा हैं । वस्तुत: 'इस प्रभु से ज्ञान का दोहन' ही जीवन का सर्वमहान् ध्येय होना चाहिए ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु से प्रार्थना के द्वारा इस प्रकार ज्ञानदुग्ध को प्राप्त करें जैसे कि गौ से दूध को प्राप्त करते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे विद्वान लोक वेदपारंगत, विद्वानांचा आश्रय घेऊन सभ्य विद्वान होतात तसे त्यांच्या संगतीने तुम्हीही विद्वान किंवा चतुर व्हा. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
I invoke and celebrate in holy words the seer and scholar of the universal knowledge of the Vedas, adorable friend and exponent of divine knowledge as one would serve and milk the cow for living energy or study and meditate on the holy Word for living light.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of king's duties-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! as with well-trained sweet and true words, I invite and admire the knower of the four Vedas, who is conveyor of the Vedic words, their meanings, their relation and accents and who is friend of all, praise worthy with lands, like a milch cow is for milking, so you should also do.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! as learned persons by, the association of an absolutely truthful person, who is well-versed in the Vedas becomes cultured, civilized and enlightened, so you should also become scholar and skillful by their association.
Foot Notes
(ब्रह्माणम्) चतुर्वेदविदम् । अथकेन ब्रह्मत्वं क्रियत इति त्रय्या विद्ययेति। (ऐतरेय ब्रह्मणे 5,33)। य मेवा मुत्रय्यै विद्यायै तेजोरसं प्रावृहत् तेन ब्रह्मा ब्रह्मा भवति (कौषितकी) ब्रा० 6,11)। तस्माद् यो ब्रह्मनिष्ठः स्यात्त ब्राह्मणं कुर्वीता ब्रह्मा सर्वविधः सर्वं ( गोपथ उ. 1, 3 ) परिवृढः श्रुततः (NKT 1, 3, 8) वेदो ब्रह्म (जैमिनीयोप 4, 25, 3 ) । = The knower of all the four Vedas. (ब्रह्मवाहसम् ) वेदानां शब्दार्थ सम्बन्धस्वरार्णा प्रापकम् । = The conveyor of the Vedic words, their meanings, relation of the words and meanings and their accents.
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