ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 45/ मन्त्र 8
यस्य॒ विश्वा॑नि॒ हस्त॑योरू॒चुर्वसू॑नि॒ नि द्वि॒ता। वी॒रस्य॑ पृतना॒षहः॑ ॥८॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । विश्वा॑नि । हस्त॑योः । ऊ॒चुः । वसू॑नि । नि । द्वि॒ता । वी॒रस्य॑ । पृ॒त॒ना॒ऽसहः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्य विश्वानि हस्तयोरूचुर्वसूनि नि द्विता। वीरस्य पृतनाषहः ॥८॥
स्वर रहित पद पाठयस्य। विश्वानि। हस्तयोः। ऊचुः। वसूनि। नि। द्विता। वीरस्य। पृतनाऽसहः ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 45; मन्त्र » 8
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः किं कृत्वा राजैश्वर्यं प्राप्नुयादित्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसो ! यस्य वीरस्य हस्तयोर्विश्वानि वसूनि पृतनाषहो न्यूचुस्तेन सह द्विता रक्षताम् ॥८॥
पदार्थः
(यस्य) राजादेर्विदुषः (विश्वानि) सर्वाणि (हस्तयोः) (ऊचुः) वदन्ति (वसूनि) द्रव्याणि (नि) निश्चितम् (द्विता) द्वयो राजप्रजयोरुपदेशकोपदेश्योर्वा भावः (वीरस्य) शत्रुबलमभिव्याप्तुं शीलस्य (पृतनाषहः) ये पृतनां शत्रुसेनां सहन्ते ते ॥८॥
भावार्थः
यदि राजा विद्याविनयाभ्यां पुत्रवत्प्रजाः पालयेत्तर्हि सर्वमैश्वर्यमखिलं सुखं च तदधीनमेव भवेद्येनोत्तमानमात्यान् प्रशंसितां सेनां प्राप्य राजा प्रजाजनानां कल्याणं कर्तुं शक्नोति ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर क्या करके राजा ऐश्वर्य्य को प्राप्त होवे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वान् जनो ! (यस्य) जिस राजादि विद्वान् (वीरस्य) शत्रु के बल को दबानेवाले के (हस्तयोः) हाथों में (विश्वानि) सम्पूर्ण (वसूनि) द्रव्यों को (पृतनाषहः) शत्रुओं की सेना को सहनेवाले (नि) निश्चित (उचुः) कहते हैं उसके साथ (द्विता) दोनों-राजा और प्रजा तथा उपदेश देनेवाले और उपदेश देने योग्यपने की रक्षा करो ॥८॥
भावार्थ
जो राजा विद्या और विनय से पुत्र के सदृश प्रजाओं की पालना करे तो सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य और सम्पूर्ण सुख उसके आधीन ही होवे, जिससे उत्तम मन्त्री और प्रशंसित सेना को प्राप्त होकर राजा प्रजाजनों के कल्याण को कर सकता है ॥८॥
विषय
missing
भावार्थ
( यस्य ) जिस (वीरस्य) विविध विद्या के उपदेष्टा तथा विविध प्रजाओं के आज्ञापक ( पृतनासह ) शत्रुओं को पराजय करने वाले वीर के ( हस्तयोः ) हाथों में ( विश्वानि वसूनि ) समस्त ऐश्वर्य ( नि ऊचुः ) बतलाते हैं ( तस्य द्विता ) उस पुरुष के प्रति माता पिता, और गुरु दोनों प्रकार का भाव विद्यमान रहे ।
टिप्पणी
प्रजानां विनयाधानाद् रक्षणाद् भरणादपि स पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः ॥ रघु० ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ १-३० इन्द्रः । ३१-३३ बृबुस्तक्षा देवता ।। छन्दः—१, २, ३, ८, १४, २०, २१, २२, २३, २४, २८, ३०, ३२ गायत्री । ४, ७, ९, १०, ११, १२, १३, १५, १६, १७, १८, १९, २५, २६, २९ निचृद् गायत्री । ५, ६, २७ विराड् गायत्री । ३१ आर्च्यु-ष्णिक । ३३ अनुष्टुप् ॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
वसु प्राप्ति
पदार्थ
[१] गतमन्त्र के अनुसार हम उस प्रभु को [हुवे] पुकारते हैं (यस्य) = जिसके (हस्तयोः) = हाथों में (द्विता) = दो प्रकार से वर्तमान, द्युलोक व पृथिवी में वर्तमान शरीर रूप पृथिवी में व मस्तिष्क रूप द्युलोक में क्षत्र व ब्रह्म के रूप में वर्तमान (विश्वानि वसूनि) सब वसुओं को (न्यूचुः) = निश्चय से कहते हैं। प्रभु के ही हाथों में सब वसु हैं । [२] वे प्रभु (वीरस्य) = शत्रुओं को कम्पित करके दूर करनेवाले हैं तथा (पृतनासहः) = शत्रु- सैन्यों का मर्षण करनेवाले हैं। वस्तुतः इन शत्रुओं का संहार करके ही हम वसुओं को प्राप्त करते हैं। द्युलोक का वसु ज्ञान है तो पृथिवी लोक का वसु बल है। वेद में बल व ज्ञान का साधन प्राप्त करने का उल्लेख है। 'इदं मे ब्रह्म च क्षत्रञ्च उभे श्रेयमश्रुताम्' । इसी में शोभा है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु के हाथों में सब वसुओं का स्थापन है। प्रभु हमें इन वसुओं को प्राप्त करायें।
मराठी (1)
भावार्थ
जर राजाने विद्या व विनयाने प्रजेचे पुत्राप्रमाणे पालन केले तर त्याला संपूर्ण ऐश्वर्य व सुख मिळते. ज्यामुळे त्याला उत्तम मंत्री व प्रशंसित सेना प्राप्त होऊन प्रजेचे कल्याण होते. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Seers and scholars say that in the hands of the heroic leader and ruler, brave challenger and subduer of all forces, lie and abide all treasures of the world both material and spiritual. (The real scholar too is one who commands the knowledge of nature as well as of the spirit, of this world and of the world beyond.)
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
By doing what a king can get prosperity-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned persons! he in whose hands the conquerors in the battle all, things (riches) are stored he who himself is the subduer of the enemies' forces; should protect both the officers of the State and subjects or the preachers and preached (the audience).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
That king, who protects his people with knowledge and wisdom, like his own son, begets all riches and pleasures. He can also provide welfare for his subjects, with the help of his good, able and praiseworthy ministers.
Foot Notes
(वसूनि) द्रव्याणि । यद् वे किन्च विन्दते तद्वसु ( काठक सं● 10, 6 ) । तेन बसूनी द्रव्याणी । = Articles, riches. (द्विता) द्वयो राजमोपदेशकोपदेश्ययोर्वा भावः । = Of both the officers of the State and subjects or the preachers and the preached (audience).
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