ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 45/ मन्त्र 11
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तमु॑ त्वा॒ यः पु॒रासि॑थ॒ यो वा॑ नू॒नं हि॒ते धने॑। हव्यः॒ स श्रु॑धी॒ हव॑म् ॥११॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । यः । पु॒रा । आसि॑थ । यः । वा॒ । नू॒नम् । हि॒ते । धने॑ । हव्यः॑ । सः । श्रु॒धि॒ । हव॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमु त्वा यः पुरासिथ यो वा नूनं हिते धने। हव्यः स श्रुधी हवम् ॥११॥
स्वर रहित पद पाठतम्। ऊँ इति। त्वा। यः। पुरा। आसिथ। यः। वा। नूनम्। हिते। धने। हव्यः। सः। श्रुधि। हवम् ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 45; मन्त्र » 11
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! यस्त्वं हिते धने पुराऽऽसिथ यो वा नूनं हिते धने हव्योऽसि तमु त्वा वयं श्रावयेम स त्वमस्माकं हवं श्रुधी ॥११॥
पदार्थः
(तम्) (उ) (त्वा) त्वाम् (यः) (पुरा) प्रथमतः (आसिथ) (यः) (वा) (नूनम्) निश्चितम् (हिते) सुखकरे (धने) (हव्यः) आह्वयितुं योग्यः (सः) (श्रुधी) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (हवम्) वार्त्ताम् ॥११॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यो राजा सर्वेषां हितमिच्छेत् सर्वान् धनैश्वर्य्ययुक्तान् करोति स सबलनिर्बलानां वार्त्ताः प्रीत्या श्रुत्वा यथार्थं न्यायं करोति तमेव सर्वे सततं सत्कुर्वन्तु ॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा और प्रजाजन परस्पर कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! (यः) जो आप (हिते) सुखकारक (धने) धन में (पुरा) प्रथम से (आसिथ) थे और (यः) जो (वा) वा (नूनम्) निश्चित सुखकारक धन में (हव्यः) पुकारने के योग्य हो (तम्, उ) उन्हीं (त्वा) आपको हम लोग सुनावें (सः) वह आप हम लोगों की (हवम्) बात को (श्रुधी) सुनिये ॥११॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो राजा सब के हित की इच्छा करे और सब को धन और ऐश्वर्य्य से युक्त करता है, वह बलिष्ठ और निर्बलों की बातों की प्रीति से सुन कर यथार्थ न्याय करता है, उसी का सब लोग निरन्तर सत्कार करें ॥११॥
विषय
उसके कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( यः ) जो तू ( पुरा ) पहले भी ( हव्यः आसिथ ) स्तुति योग्य रहा, (य: वा ) और जो तू ( नूनं ) अब भी ( हिते धने ) हितकारी धन, ऐश्वर्य के प्राप्त होने पर भी ( हव्यः ) प्रजाओं के स्तुति योग्य है ( सः) वह तू ( हवं श्रुधि ) हमारी स्तुति प्रार्थना को सुन ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ १-३० इन्द्रः । ३१-३३ बृबुस्तक्षा देवता ।। छन्दः—१, २, ३, ८, १४, २०, २१, २२, २३, २४, २८, ३०, ३२ गायत्री । ४, ७, ९, १०, ११, १२, १३, १५, १६, १७, १८, १९, २५, २६, २९ निचृद् गायत्री । ५, ६, २७ विराड् गायत्री । ३१ आर्च्यु-ष्णिक । ३३ अनुष्टुप् ॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
हव्य प्रभु
पदार्थ
[१] हे इन्द्र ! (तं त्वा उ) = उन आपको ही हम स्तुत करते हैं (यः) = जो आप (पुरा) = पहले भी (हव्यः) = पुकारने योग्य आसिथ थे (यः वा) = और जो (नूनम्) = आज भी (हिते धने) = हितकर धन के निमित्त (हव्यः) = पुकारने योग्य हैं। आप से ही हमें हितकर धन प्राप्त कराया जाता है । [२] (सः) = वे आप (हवं श्रुधि) = हमारी पुकार को सुनिये । प्रभु से हम सुनी जानेवाली पुकार के योग्य बनेंगे तो हमारी सभी कामनाएँ पूर्ण हो जायेगी ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ही पुकारने योग्य हैं, प्रभु ही हितकर धन को प्राप्त कराते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जो राजा सर्वांच्या हिताची इच्छा करतो व सर्वांना धन व ऐश्वर्याने युक्त करतो, बलवान व निर्बलांच्या समस्या प्रेमाने ऐकून यथार्थ न्याय करतो त्याचाच सर्व लोकांनी सत्कार करावा. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
You who have ever been with us and for us since eternity, who surely are with us in our best of prosperity and ever at the call of action, the same, O lord adorable, we invoke and pray listen to our call and come and bless.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should the kings and their subjects deal with one another is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king! listen to us, you who have been worthy of invocation and conferring wealth with certainty. We put our request before you.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! that king alone should always be respected, who desires for the welfare of all, who makes all endowed with wealth and prosperity and who administers true justice after listening to both strong and weak.
Foot Notes
(हिते) सुखकरे। = Giver of happiness. (हवम्) वार्ताम्। = Talk, Call.
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