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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 45 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 45/ मन्त्र 21
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स नो॑ नि॒युद्भि॒रा पृ॑ण॒ कामं॒ वाजे॑भिर॒श्विभिः॑। गोम॑द्भिर्गोपते धृ॒षत् ॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । नि॒युत्ऽभिः॑ । आ । पृ॒ण॒ । काम॑म् । वाजे॑ऽभिः । अ॒श्विऽभिः॑ । गोम॑त्ऽभिः । गो॒ऽप॒ते॒ । धृ॒षत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नो नियुद्भिरा पृण कामं वाजेभिरश्विभिः। गोमद्भिर्गोपते धृषत् ॥२१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। नः। नियुत्ऽभिः। आ। पृण। कामम्। वाजेऽभिः। अश्विऽभिः। गोमत्ऽभिः। गोऽपते। धृषत् ॥२१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 45; मन्त्र » 21
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजप्रजाजना परस्परं किमलङ्कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे गोपते ! स धृषत्त्वं वाजेभिर्नियुद्भिर्गोमद्भिरश्विभिर्नः काममा पृण ॥२१॥

    पदार्थः

    (सः) (नः) अस्माकम् (नियुद्भिः) निश्चितहेतुभिः (आ) समन्तात् (पृण) पूरय (कामम्) (वाजेभिः) विज्ञानान्नादिकारिभिः (अश्विभिः) सूर्य्याचन्द्रमआदिभिः (गोमद्भिः) प्रशस्तभूमिधेनुवाग्युक्तैः (गोपते) गवां स्वामिन् (धृषत्) प्रगल्भः सन् ॥२१॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! यदि त्वमस्माकं कामनां पूरयेस्तर्हि वयमपि तवेच्छां पूरयेम ॥२१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजा और प्रजाजन परस्पर किसकी शोभा करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (गोपते) इन्द्रियों के स्वामिन् ! (सः) वह (धृषत्) ढीठ, धर्षण करनेवाले आप (वाजेभिः) विज्ञान और अन्न आदि के करनेवाले (नियुद्भिः) निश्चित कारण तथा (गोमद्भिः) प्रशंसित भूमि, गौ और वाणी से युक्त (अश्वभिः) सूर्य्य और चन्द्रमा आदिकों से (नः) हम लोगों के (कामम्) मनोरथ की (आ) सब प्रकार से (पृण) पूर्त्ति करिये ॥२१॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! जो आप हम लोगों के मनोरथ की पूर्त्ति करिये तो हम लोग भी आपकी इच्छा की पूर्त्ति करें ॥२१॥

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    विषय

    तीनों वर्णों के राजा के प्रति कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (गोपते ) वाणियों के पालक विद्वन् ! पृथ्वी के पालक राजन् ! इन्द्रियों के पालक जिवेन्द्रिय ! गवादि पशुओं के पालक वैश्य वर्ग ! तुम ( धृषत् ) प्रगल्भ होकर ( नियुद्भिः ) अपने अधीन नियुक्त अश्वादि सैन्यों से, ( वाजेभिः ) बलों, वीर्यों, वेगयुक्त संग्रामों और ज्ञान अन्नादि से और ( अश्विभिः ) बलवान् वीरों से ( गोमद्भिः ) वाणी और भूमि के स्वामी विद्वानों और भूमि वालों से (सः ) वह तू ( नः ) हमारे ( कामम् आपृण ) मनोरथ को पूर्ण कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ १-३० इन्द्रः । ३१-३३ बृबुस्तक्षा देवता ।। छन्दः—१, २, ३, ८, १४, २०, २१, २२, २३, २४, २८, ३०, ३२ गायत्री । ४, ७, ९, १०, ११, १२, १३, १५, १६, १७, १८, १९, २५, २६, २९ निचृद् गायत्री । ५, ६, २७ विराड् गायत्री । ३१ आर्च्यु-ष्णिक । ३३ अनुष्टुप् ॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'गोमद्धिः अश्विभिः' वाजेभिः

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! (सः) = वे आप (धृषत्) = शत्रुओं के धर्षण होते हुए (नः कामम्) = हमारी कामना को (नियुद्धिः) = निश्चय से कार्यों में व्याप्त होनेवाले इन्द्रियाश्वों से (आपृण) = पूरित करिये । कार्यव्यापृति ही कामनापूर्ति का साधन है। [२] हे (गोपते) = इन ज्ञान की वाणियों के स्वामिन् प्रभो ! आप (गोमद्भिः) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाले व (अश्विभिः) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाले (वाजेभिः) = बलों से हमारी कामनाओं को पूर्ण करिये, हमें वह शक्ति प्राप्त कराइये जिससे कि हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ ठीक बनी रहें । यही सुख प्राप्ति का साधन है, वस्तुतः यही 'सुख' है, उत्तम इन्द्रियों का होना ।

    भावार्थ

    भावार्थ— प्रभु हमारे शत्रुओं का धर्षण करते हुए हमें प्रशस्त इन्द्रियोंवाले बल को प्राप्त करायें। यह बल हमारे सब इष्टों का साधक हो ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा ! जर तू आमचे मनोरथ पूर्ण करशील तर आम्हीही तुझ्या इच्छा पूर्ण करू. ॥ २१ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O lord of land with controlled mind and senses, bold and resolute, come to us with your teams of harnessed services and commissioned forces commanding speed and movement, warriors of horse and armour, managers of lands and cattle wealth, controllers of information and communication, and with all this infrastructure fulfil our desires and ambitions for the good life of success and progress.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should authorities of the State and the people do to adorn one another is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O lord of the land ! you being bold, fulfil our noble desires, with the help of the givers of knowledge and: food-grains etc.; with reasonable acts with men, who are possessors of good land, cows and admirable speech and with the co-operation of the benevolent men, who are like the sun and the moon.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O king ! if you fulfil our noble desires, we will also fulfil your desires.

    Foot Notes

    (नियुदिभि:) निश्चितहेतुभिः =With reasonable acts. (वाजेभि:) विज्ञानान्नादि कारिभिः । वाज इति अन्ननाम (NG 2, 7) बाज इति बल नाम (NG 2, 9 ) । वाज: वज-गतौ (भ्वा०.) गतेस्विष्वर्थेष्वत्न ज्ञानार्थं ग्रहणम् । = With men who are givers of knowledge and food etc. (अश्विभि:) सूर्याचन्द्रम आदिभिः । तस्कावश्विनौ ? द्यावापृथिव्या वित्येके । अहोरात्रावित्येके । सूर्याचन्द्रमसावित्येके ।) (NKT 12, 1, 1) । अत्र सूर्यचन्द्रवत् परोपकारीणामध्यापकोपदेशको गृहीतु शक्येते । = With the benevolent men like the sun and moon or teachers and preachers.

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