ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 45/ मन्त्र 2
अ॒वि॒प्रे चि॒द्वयो॒ दध॑दना॒शुना॑ चि॒दर्व॑ता। इन्द्रो॒ जेता॑ हि॒तं धन॑म् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठअ॒वि॒प्रे । चि॒त् । वयः॑ । दध॑त् । अ॒ना॒शुना॑ । चि॒त् । अर्व॑ता । इन्द्रः॑ । जेता॑ । हि॒तम् । धन॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अविप्रे चिद्वयो दधदनाशुना चिदर्वता। इन्द्रो जेता हितं धनम् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठअविप्रे। चित्। वयः। दधत्। अनाशुना। चित्। अर्वता। इन्द्रः। जेता। हितम्। धनम् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 45; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! य इन्द्रोऽविप्रे चिद्वयो दधदनाशुनाऽर्वता चिद्धितं धनं जेता दधत्स कीर्त्तिमान् जायत इति वेद्यम् ॥२॥
पदार्थः
(अविप्रे) अमेधाविनि (चित्) अपि (वयः) कमनीयं जीवनं विज्ञानं वा (दधत्) दधाति (अनाशुना) अनश्वेनाचिरेण गन्त्रा (चित्) (अर्वता) अश्वेन (इन्द्रः) शत्रुविदारकः (जेता) जयशीलः (हितम्) सुखकारि (धनम्) द्रव्यम् ॥२॥
भावार्थः
यो विद्वान् राजा बालकेष्वज्ञेषु चाध्यापनोपदेशप्रचारेण विद्यां दधाति स कीर्तिमान् भूत्वाऽसेनोऽपि राज्यं लभते ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (इन्द्रः) शत्रुओं का नाश करनेवाला (अविप्रे) बुद्धिरहित में (चित्) भी (वयः) सुन्दर जीवन वा विज्ञान को (दधत्) धारण करता है तथा (अनाशुना) घोड़े से रहित शीघ्र जानेवाले वाहन से (अर्वता) घोड़े से (चित्) भी (हितम्) सुखकारक (धनम्) द्रव्य को (जेता) जीतनेवाला धारण करता है, वह यशस्वी होता है, यह जानना चाहिये ॥२॥
भावार्थ
जो विद्वान् राजा बालकों और अज्ञों में अध्यापन और उपदेश के प्रचार से विद्या को धारण करता है, वह यशस्वी होकर विना सेना के भी राज्य को प्राप्त होता है ॥२॥
विषय
उसके गुण ।
भावार्थ
जो राजा ( अविप्रे चित् ) अविद्वान्, बालक आदि में भी ( वयः चित् ) उत्तम जीवन और ज्ञान ( दधात् ) धारण कराता, और ( अनाशुना अर्वता चित्) वेग से न जाने वाले अश्व सैन्य से भी ( हितं धनं जेता ) सुखकारी धन को विजय कर लेता है वह ( इन्द्रः ) ऐश्वर्य वान् राजा होने योग्य है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ १-३० इन्द्रः । ३१-३३ बृबुस्तक्षा देवता ।। छन्दः—१, २, ३, ८, १४, २०, २१, २२, २३, २४, २८, ३०, ३२ गायत्री । ४, ७, ९, १०, ११, १२, १३, १५, १६, १७, १८, १९, २५, २६, २९ निचृद् गायत्री । ५, ६, २७ विराड् गायत्री । ३१ आर्च्यु-ष्णिक । ३३ अनुष्टुप् ॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
इन्द्रो जेता हितं धनम्
पदार्थ
[१] (अ-विप्रे चित्) = 'जो बहुत उत्कृष्ट ज्ञानी नहीं है' उसमें भी (वयः दधत्) = दीर्घजीवन को धारण करते हैं। जो व्यक्ति बहुत ज्ञान को नहीं भी प्राप्त करता, परन्तु प्रभु का कुछ भक्त बनता है उस अल्पज्ञ भक्त को भी लम्बा जीवन देते हैं। प्रभु भक्ति के कारण यह बहुत अनियमित जीवनवाला नहीं बनता दीर्घ जीवन को प्राप्त करता है । [२] (अनाशुना चित्) = बहुत शीघ्रता से कर्मों में न व्याप्त हुआ (अर्वता) = इन्द्रियाश्वों से (इन्द्रः) = वे परमैश्वर्यशाली प्रभु इस अविप्र [अल्पज्ञ] भक्त के लिये भी हितकर धन को (जेता) = जीतनेवाले होते हैं । वस्तुतः धनों का विजय प्रभु ही करते हैं। सो हमारे लिये बहुत चुस्त न भी हुए तो भी कोई बहुत हानि नहीं। प्रभु-भक्ति चाहिए, फिर कल्याण ही होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- अल्पज्ञ होते हुए भी एक प्रभु-भक्त दीर्घजीवन को प्राप्त करता है और प्रभु उसके लिये हितकर धनों का विजय करते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
जो विद्वान राजा, बालक व अशिक्षित यांच्यामध्ये अध्यापन व उपदेश करून विद्येचा प्रसार करतो तो यशस्वी होऊन सेनेशिवाय राज्य प्राप्त करतो. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
He brings food, health and age, life and light of knowledge for the innocent and for the ignorant and unintelligent too and wins wealth and honour for the good life at the fastest without haste and impatience.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should a king do - is again told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! you should know that king-the destroyer of his enemies, who becomes glorious, who puts good and desirable life or knowledge even in a man- who is not a genius and who wins beneficent wealth with a swift going vehicle-with or without a horse.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
That enlightened king, who puts knowledge in even ignorant boys, through teaching and sermons, attains, kingdom even without a strong army.
Foot Notes
(वय:) कमनीयं जीवनं विज्ञानं वा (वयः) बी-गति व्याप्तिप्रजन काम्यसनखादनेषु (प्र.) अत्र गति कान्त्यर्थं ग्रहणम् । गतेस्त्रिस्वर्थेषु ज्ञानार्थ ग्रहणम् ।= Desirable good life or knowledge. (अनाशुना) अनश्येनाचिरेण = With a swift going vehicle even without a horse.
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