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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 43/ मन्त्र 24
    ऋषिः - विरूप आङ्गिरसः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वि॒शां राजा॑न॒मद्भु॑त॒मध्य॑क्षं॒ धर्म॑णामि॒मम् । अ॒ग्निमी॑ळे॒ स उ॑ श्रवत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒शाम् । राजा॑नम् । अद्भु॑तम् । अधि॑ऽअक्षम् । धर्म॑णाम् । इ॒मम् । अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । सः । ऊँ॒ इति॑ । श्र॒व॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विशां राजानमद्भुतमध्यक्षं धर्मणामिमम् । अग्निमीळे स उ श्रवत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विशाम् । राजानम् । अद्भुतम् । अधिऽअक्षम् । धर्मणाम् । इमम् । अग्निम् । ईळे । सः । ऊँ इति । श्रवत् ॥ ८.४३.२४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 43; मन्त्र » 24
    अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 33; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    I adore and worship the ruler of the people, wonderful power, lord protector and controller of Dharma and laws of the earth. May the lord listen to our prayer.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सर्वांचा अधिपती व अध्यक्ष तोच परमात्मा आहे. तेव्हा विद्वान काय, मूर्ख काय, राजा काय व प्रजा काय, सर्वांचा पूज्य तोच देव आहे. ॥२४॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    अहमुपासकः । विशां=प्रजानां । राजानं=स्वामिनम् । अद्भुतम् । धर्मणां=कर्मणाम् । अध्यक्षम्=इममग्निम् । ईळे=स्तौमि । सः उ=स एव । श्रवत्=अस्माकं स्तुतिं शृणोति ॥२४ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    मैं उपासक (विशाम्+राजानम्) प्रजाओं के स्वामी (अद्भुतम्) महाश्चर्य्य और (धर्मणाम्) निखिल कर्मों के (अध्यक्षम्) अध्यक्ष (इमम्+अग्निम्) इस अग्निवाच्य परमात्मा की (ईळे) स्तुति करता हूँ (सः+उ) वही (श्रवत्) हमारी प्रार्थना और स्तुति को सुनता है ॥२४ ॥

    भावार्थ

    सबका अधिपति और अध्यक्ष वही परमात्मा है, अतः क्या विद्वान् क्या मूर्ख क्या राजा और प्रजा, सबका वही पूज्य देव है ॥२४ ॥

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    पदार्थ

    पदार्थ = ( विशाम् ) = सब राजाओं के ( अद्भुतम् राजानम् ) = आश्चर्यकारक राजा ( धर्मणाम् ) = धर्म कार्यों के ( अध्यक्षम् ) = अधिष्ठाता अर्थात् फलप्रदाता ( इमम् अग्निम् ) = इस अग्निदेव की ( ईडे ) = मैं स्तुति करता हूँ, ( सः ) = वह देव ( उ श्रवत् ) = अवश्य सुने।

     

    भावार्थ

    भावार्थ = परमात्मदेव राजा और धार्मिक कामों के फलप्रदाता हैं, अपने पुत्रों की प्रेमपूर्वक की हुई स्तुति प्रार्थना को बड़े प्रेम से सुनते हैं । हे जगत् पिता परमात्मन् ! मेरी टूटे-फूटे शब्दों से की हुई प्रार्थना को आप अवश्य सुनें । जैसे तोतली वाणी से की हुई बालक पुत्र की प्रार्थना को सुनकर पिता प्रसन्न होता है, वैसे आप भी हम पर प्रसन्न होवें ।

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    विषय

    साक्षी, अध्यक्ष प्रभु।

    भावार्थ

    ( विशां राजानम् ) प्रजाओं के बीच राजा के तुल्य, देह में प्रविष्ट आत्माओं के बीच प्रकाशित होने वाले ( धर्मणाम् ) समस्त धर्मो के ( अद्भुतम् अध्यक्षं ) अद्भुत अध्यक्ष, साक्षी द्रष्टा, ( अग्निम् ) उस तेजस्वी प्रभु की मैं ( ईडे ) स्तुति करूं, (सः उ श्रवत् ) वह ही वस्तुतः सब कुछ सुनने वाला है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विरूप आङ्गिरस ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१, ९—१२, २२, २६, २८, २९, ३३ निचृद् गायत्री। १४ ककुम्मती गायत्री। ३० पादनिचृद् गायत्री॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    धर्मणाम् अध्यक्षम्

    पदार्थ

    [१] (इमम् अग्निम्) = इस अग्रणी प्रभु को (ईडे) = मैं स्तुत करता हूँ । (सः उ) = वे ही (श्रवत्) = मेरी प्रार्थना को सुनते हैं। [२] उस प्रभु का मैं ईडन करता हूँ जो (विशां राजानम्) = सब प्रजाओं के राजा [शासक] हैं। (अद्भुतम्) = अनुपम हैं। (धर्मणाम्) = सब धर्म कार्यों के अथवा धारणात्मक कर्मों के (अध्यक्षम्) = अध्यक्ष हैं। सब धर्मकार्य प्रभु की अध्यक्षता में ही सम्पन्न होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु का उपासन करें। प्रभु ही सबके शासक, अनुपम व सब धर्म-कर्मों के अध्यक्ष हैं।

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    বিশাং রাজানমদ্ভুতমধ্যক্ষং ধর্মণামিমম্।

    অগ্নিমীলে স উ শ্রবত্।।২৮।।

    (ঋগ্বেদ ৮।৪৩।২৪)

    পদার্থঃ (বিশাম্) সমস্ত প্রজার (অদ্ভুতম্ রাজানম্) আশ্চর্যময় রাজা, (ধর্মাণাম্) ধর্মকার্যের (অধ্যক্ষম্) অধিষ্ঠাতা অর্থাৎ ফল প্রদাতা (ইমম্ অগ্নিম্) এই অগ্নিদেব তথা জ্ঞানস্বরূপ পরমাত্মাকে (ঈড়ে) আমি স্তুুতি করি। (সঃ) সেই দেব (উ শ্রবত্) অবশ্যই তা শুনবেন।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ পরমাত্মদেব সমগ্র জগতের আশ্চর্য সম্রাট এবং ধার্মিক কর্মের ফলপ্রদাতা। নিজ সন্তানের প্রেমপূর্বক স্তুতি প্রার্থনা তিনি অত্যন্ত ভালোবাসা নিয়ে শোনেন। হে জগৎ পিতা পরমাত্মা ! আমার ছোট ছোট শব্দ দ্বারা কৃত প্রার্থনা তুমি অবশ্যই গ্রহণ করো। যেমন তোতলানো সন্তানের প্রার্থনা শুনেও পিতা প্রসন্ন হয়, ওইরূপ তুমিও আমাদের সকলের উপর প্রসন্ন হও।।২৮।।

     

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