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यजुर्वेद अध्याय - 15

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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 19
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - हेमन्तर्त्तुर्देवता छन्दः - निचृत्कृतिः स्वरः - निषादः
    74

    अ॒यमु॒पर्य॒र्वाग्व॑सु॒स्तस्य॑ सेन॒जिच्च॑ सु॒षेण॑श्च सेनानीग्राम॒ण्यौ। उ॒र्वशी॑ च पू॒र्वचि॑त्तिश्चाप्स॒रसा॑वव॒स्फूर्ज॑न् हे॒तिर्वि॒द्यु॒त्प्रहे॑ति॒स्तेभ्यो॒ नमो॑ऽअस्तु॒ ते नो॑ऽवन्तु॒ ते नो॑ मृडयन्तु॒ ते यं द्वि॒ष्मो यश्च॑ नो॒ द्वेष्टि॒ तमे॑षां जम्भे॑ दध्मः॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम्। उ॒परि॑। अ॒र्वाग्व॑सु॒रित्य॒र्वाक्ऽव॑सुः। तस्य॑। से॒न॒जिदिति॑ सेन॒ऽजित्। च॒। सु॒षेणः॑। सु॒सेन॒ इति॑ सु॒ऽसेनः॑। च॒। से॒ना॒नी॒ग्रा॒म॒ण्यौ᳖। से॒ना॒नी॒ग्रा॒म॒न्या᳖विति॑ सेनानीग्राम॒न्यौ᳖। उ॒र्वशी॑। च॒। पू॒र्वचि॑त्ति॒रिति॑ पू॒र्वऽचि॑त्तिः। च॒। अ॒प्स॒रसौ॑। अ॒व॒स्फूर्ज॒न्नित्य॑व॒ऽस्फूर्ज॑न्। हे॒तिः। वि॒द्युदिति॑ वि॒ऽद्युत्। प्रहे॑ति॒रिति॒ प्रऽहे॑तिः। तेभ्यः॑। नमः॑। अ॒स्तु॒। ते। नः॒। अ॒व॒न्तु॒। ते। नः॒। मृ॒ड॒य॒न्तु॒। ते। यम्। द्वि॒ष्मः। यः। च॒। नः॒। द्वेष्टि॑। तम्। ए॒षा॒म्। जम्भे॑। द॒ध्मः॒ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयमुपर्यर्वाग्वसुस्तस्य सेनजिच्च सुषेणश्च सेनानीग्रामण्या । उर्वशी च पूर्वचित्तिश्चाप्सरसाववस्पूर्जन्हेतिर्विद्युत्प्रहेतिस्तेभ्यो नमोऽअस्तु ते नो वन्तु ते नो मृडयन्तु ते यन्द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषाञ्जम्भे दध्मः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। उपरि। अर्वाग्वसुरित्यर्वाक्ऽवसुः। तस्य। सेनजिदिति सेनऽजित्। च। सुषेणः। सुसेन इति सुऽसेनः। च। सेनानीग्रामण्यौ। सेनानीग्रामन्याविति सेनानीग्रामन्यौ। उर्वशी। च। पूर्वचित्तिरिति पूर्वऽचित्तिः। च। अप्सरसौ। अवस्फूर्जन्नित्यवऽस्फूर्जन्। हेतिः। विद्युदिति विऽद्युत्। प्रहेतिरिति प्रऽहेतिः। तेभ्यः। नमः। अस्तु। ते। नः। अवन्तु। ते। नः। मृडयन्तु। ते। यम्। द्विष्मः। यः। च। नः। द्वेष्टि। तम्। एषाम्। जम्भे। दध्मः॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तादृशमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथाऽयमुपरि वर्त्तमानोऽर्वाग्वसुर्हेमन्तर्तुरस्ति, तस्य सेनजिच्च सुषेणश्च सेनानीग्रामण्याविव मार्गशीर्षपौषौ मासावुर्वशी च पूर्वचित्तिश्चाप्सरसाववस्फूर्जन् हेतिर्विद्युत्प्रहेतिश्चास्ति तेभ्यो नमोऽन्नमस्तु। ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते वयं यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मस्तं यूयमपि तथा विदधत॥१९॥

    पदार्थः

    (अयम्) (उपरि) वर्त्तमानः (अर्वाग्वसुः) अर्वाग्वृष्टेः पश्चाद्वसु धनं यस्मात् स हेमन्तर्तुः (तस्य) (सेनजित्) यः सेनया जयति सः। अत्र ङ्यापोः संज्ञाछन्दसोर्बहुलमिति ह्रस्वत्वं (च) (सुषेणः) शोभना सेना यस्य सः (च) (सेनानीग्रामण्यौ) एतद्वद्वर्त्तमानौ मार्गशीर्षपौषौ मासौ (उर्वशी) उरु बहु अश्नाति यया सा दीप्तिः (च) (पूर्वचित्तिः) पूर्वा प्रथमा चित्तिः संज्ञानं यस्याः सा (च) (अप्सरसौ) (अवस्फूर्जन्) अर्वाचीनं घोषं कुर्वन् (हेतिः) वज्रघोषः (विद्युत्) (प्रहेतिः) प्रकृष्टो वज्र इव (तेभ्यः) (नमः) (अस्तु) (ते) (नः) (अवन्तु) (ते) (नः) (मृडयन्तु) (ते) (यम्) (द्विष्मः) (यः) (च) (नः) (द्वेष्टि) (तम्) (एषाम्) (जम्भे) (दध्मः)॥१९।

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। इयमपि हेमन्तर्त्तोः शिष्टा व्याख्या। इममृतुं मनुष्या युक्त्या सेवित्वा बलिष्ठा भवन्तु॥१९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर भी वैसा ही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जैसे (अयम्) यह (उपरि) ऊपर वर्त्तमान (अर्वाग्वसुः) वृष्टि के पश्चात् धन का हेतु है, (तस्य) उस के (सेनजित्) सेना से जीतने वाला (च) और (सुषेणः) सुन्दर सेनापति (च) ये दोनों (सेनानीग्रामण्यौ) सेनापति और ग्रामाध्यक्ष के तुल्य वर्त्तमान अगहन और पौष महीने (उर्वशी) बहुत खाने का हेतु आन्तर्य दीप्ति (च) और (पूर्वचित्तिः) आदि ज्ञान का हेतु (च) ये दोनों (अप्सरसौ) प्राणों में रहने वाली (अवस्फूर्जन्) भयंकर घोष करते हुए (हेतिः) वज्र के तुल्य (विद्युत्) बिजुली के चलाने हारे और (प्रहेतिः) उत्तम वज्र के समान रक्षक प्राणी हैं, (तेभ्यः) उन के लिये (नमः) अन्नादि पदार्थ (अस्तु) मिलें। (ते) वे (नः) हम लोगों की (अवन्तु) रक्षा करें, (ते) वे (नः) हम को (मृडयन्तु) सुखी करें, (ते) वे हम लोग (यम्) जिस दुष्ट से (द्विष्मः) द्वेष करें, (च) और (यः) जो (नः) हम से (द्वेष्टि) द्वेष करे, (तम्) उस को हम लोग (एषाम्) इन हिंसक प्राणियों के (जम्भे) मुख में (दध्मः) धरें, वैसे तुम लोग भी उस को धरो॥१९॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। यह भी हेमन्त ऋतु की शेष व्याख्या है। मनुष्यों को चाहिये कि इस ऋतु का युक्ति से सेवन करके बलवान् हों॥१९॥

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    भावार्थ

    ( उपरि ) सबके ऊपर ( अयम् ) यह ( अर्वा-ग्वसुः ) हेमन्त ऋतु के समान वृष्टि के बाद अन्न समृद्धि के देने वाला एवं प्रजा के ऊपर निरन्तर ऐश्वर्य बरसाने वाला, अथवा समस्त राष्ट्र वासी जिसके अधीन हैं वह राजा हेमन्त के समान अति शीत एव युद्धादि में समृद्ध शत्रु राष्ट्रों का भी पतझड़ के समान ऐश्वर्य रहित कर देने में समर्थ है। ( तस्य ) उसके (सेनजित् च सुषेणः च सेनानी-ग्रामरायौ) सेना द्वारा परसेना को विजय करने वाला 'सेनजित्' और उत्तम सेना वाला 'सुषेण' ये दो सेनानायक और ग्रामनायक हेमन्त के दो मास 'सहः' और 'सहस्य' के समान हैं । ( उर्वशी च पूर्वचित्तिश्च अप्सरसौ) 'उर्वशी' और 'पूर्वचित्ति' ये दोनों अप्सराएं हैं, अर्थात् विशाल राष्ट्र को वश करने वाली शक्ति 'उर्वशी' और पूर्व प्राप्त देशों से धन संग्रह करने वाली या पूर्व ही समस्त कर्त्तव्य का निर्धारण करने वाली 'पूर्वचित्ति' कहती है । (अवस्फूर्जन् हेतिः ) उसका घोर गर्जन करने वाला 'शस्त्र' है। विद्युत् के समान तीव्र दीप्ति से पड़ने वाला उत्कृष्ट अस्त्र है ( तेभ्यः नमः० इत्यादि ) पूर्ववत् । शत० ८।६।१।२० ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    हेमन्तर्त्तरर्वाग्वसुर्देवता । निवृत् कृतिः । निषादः ॥

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    विषय

    अर्वाग् वसुः

    पदार्थ

    १. (अयम्) = यह राजा (उपरि) = ऊर्ध्व दिशा में स्थित है, राष्ट्र में सर्वोच्च स्थान में स्थित होने से यह सचमुच 'परमेष्ठी' है। २. इस उच्चस्थान में स्थित होता हुआ यह (अर्वाग् वसुः) = नीचे आनेवाले धनवाला है। जैसे सूर्य किरणों द्वारा जल लेता है, परन्तु सारे के सारे जल को पर्जन्य के रूप में करके बरसा देता है, उसी प्रकार यह राजा कर के रूप में प्रजा से धनों को लेता है, परन्तु उसे प्रजाहित के लिए ही बरसा देता है। यह राष्ट्रकोश को अपने लिए 'वशा गौ' [बाँझ गौ] के समान समझता है, उससे अपने महल नहीं बना लेता । कालिदास के शब्दों में 'प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिमग्रहीत् । सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रवि:'यह प्रजाओं के कल्याण के लिए ही उनसे कर लेता है और सूर्य की भाँति सहस्र गुणा करके बरसा देता है, अतः यह सचमुच 'अर्वाग् वसु' है । ३. इस कार्य में (तस्य) = उसके सहायक (सेनजित् च) = सेना के द्वारा शत्रु का विजय करनेवाला (सेनानी:) = सेनापति है तथा (सुषेण: च) = ग्रामों से उत्तम सैनिकों को प्रस्तुत करके उत्तम सेना बनानेवाला (ग्रामणी:) = ग्रामनायक है । ४. (अप्सरसौ) = इसके सैनिक अफ़्सर उर्वशी खूब ही शत्रुओं को वश में करनेवाले हैं तथा ग्रामों के अफ़सर (पूर्वचित्ति: च) = प्रत्येक कार्य को पहले से सोचकर करनेवाले हैं । ५. (अवस्फूर्जन्) = [स्फूर्जा वज्रनिर्घोषे ] शत्रु सेना के समक्ष वज्र निर्घोष करते हुए सेनानायक इसके (हेतिः) = [शत्रुनाशक, राष्ट्र रक्षक] वज्र हैं तथा (विद्युत्) = राष्ट्र में सर्वत्र विशिष्ट द्युति को फैलानेवाले और इस प्रकार अपराधों की संख्या को कम करनेवाले ग्रामाध्यक्ष (प्रहेतिः) = पापनाशक प्रकृष्ट वज्र हैं। इस प्रकार ये सेनानी व ग्रामणी 'हैमन्तिकौ ऋतू श० ८।६।१।२० ' राष्ट्र की वृद्धि करनेवाले तथा उसे नियमित गतिवाला करनेवाले हैं। ६. (तेभ्यो नमः अस्तु) = हम इन सबका आदर करते हैं। (ते नः अवन्तु) = ये हमारी रक्षा करें। (ते नः मृडयन्तु) = ये हमें सुखी करें। (ते) = वे हम (यं द्विष्मः) = जिसे प्रीति नहीं करते (यः च नः द्वेष्टि) = जो हम सबके साथ द्वेष करता है, (तम्) = उसे (एषाम्) = इनके (जम्भे) = न्याय के जबड़े में (दध्मः) = स्थापित करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा करादि से प्राप्त धन को प्रजाहित में ही विनियुक्त करे। राष्ट्र की सेना उत्तम हो । सेनानी शत्रुओं को वश में करे तो ग्रामनायक प्रत्येक कार्य को सोचकर करे। राष्ट्र की उन्नति के लिए प्रजाजन क़ानून को अपने हाथ में न लें इन अध्यक्षों को ही न्याय का कार्य सौंपा जाए।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ही पण हेमंत ऋतूची शेष असलेली व्याख्या आहे. माणसांनी या ऋतूचे युक्तीने सेवन करून बलवान व्हावे.

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    विषय

    पुनश्च, पुढील मंत्रात पूर्वीच्याच विषयाचे कथन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (अयम्) हा (उपरि) वरच्या दिशेत (विद्यमान (हेमन्तऋतू आहे (अर्याग्वसु:) वर्षाकाळानंतर (आणि शरद ऋतूनंतर) येणारा धन-समृद्धीकारक हेमंत ऋतू आहे, (तस्य) या ऋतूचे (सेनजित्) सेनेने शत्रूला जिंकणार्‍या (च) आणि (सुषेण:) कुशल सेनापतीप्रमाणे असलेले (दोन महिने आहेत) (च) आणि (सेनानीग्रामण्यै) सेनापती आणि ग्रामाध्यक्षाप्रमाणे असलेले ते दोन महिने आहेत-मार्गशीर्ष आणि पौष. या महिन्यात (उर्वशी) भरपूर अन्न खाण्याची इच्छा उत्पन्न करणारी आंतरिक दीप्ती (जठराग्नी) (च) आणि (पूर्वचित्ति:) आदिज्ञान देणार दुसरी दीप्ती (च) या दोन्ही दीप्ती (अस्परसौ) प्राणांमधे निवास करतात. (याशिवाय जे ाकही असो लोक आहेत की) जे (अवस्फूर्जन्) भयानक घोष करीत (हेति:) वज्राप्रमाणे (दुष्टांवर) प्रहार करतात किंवा (विद्युत) विद्युतद्वारे प्रहार करतात आणि (प्रहेलि:) उत्तम वज्राचा प्रयोग करण्यात निपुण आहेत, (तेभ्य:) त्या लोकांना (नम:) अन्न आदी पदार्थ मिळो. (ते) त्यानी (न:) आमचे (अवन्तु) रक्षण करावे. (ते) हे रक्षक लोक (न:) आमच्यासाठी (मृऽडन्तु) हितकारी होवोत. (ते) ते आम्ही रक्षार्थी लोक (यम्) ज्या दुष्टाचा (द्विष्म) द्वेष वा विरोध करतो (च) आणि (य:) जो कोणी (न:) आमचा (द्वेष्टि) द्वेष करतो, (तम्) त्या दुष्ट द्वेषी माणसासाला आम्ही (एषाम्) द्वेष करतो, (तम्) त्या दुष्ट द्वेषी माणसाला आम्ही (एषाम्) या हिंसक प्राण्यांच्या (जम्भे) तोंडी (दध्म:) देतो. हे लोकांनो, तुम्ही देखील आमच्याप्रमाणे त्या द्वेषीजनांचा विरोध करा. ॥19॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. या मंत्रातदेखील हेमंतऋतूविषयी सांगावयाचे जे राहून गेले, त्या विषयी अधिक इथे सांगितले आहे. मनुष्यांनी या ऋतूमधे उचित रीतीप्रमाणे पदार्थांचे सेवन करून बलवान व्हायला हवे ॥19॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    This one direction above, is the source of wealth after rains. Its army conqueror and well-armed lords are both Margshirsh and Paush months of winter, like the head of an army and the village chieftain. The internal fire that is the cause of eating much, and intellect the recipient of eternal knowledge are two forces that reside in the Pranas. Thundering is its weapon and lightning its missile-weapon. We offer food to persons who are our guardians like them. May they protect us and make us comfortable. We place in the jaws of thunder and lightning the man whom we hate and who hates us.

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    Meaning

    This on top, after rains and autumn, is the winter season, treasure-giver of wealth. Like a king’s commander of the forces and the chief of his city, are the two months of Marga-Shirsha and Pausha, one like a lord of the hosts, the other victorious. The spirit of great love and freedom and the spirit of winsome beauty of the heart are two powers of the season. The roar of thunder is the weapon and lightning is another and greater one Salutations to the winter months and their gifts and powers. May they save us. May they be good and auspicious. Whoever violates our life and whoever we oppose in defence, we deliver unto the judgement of the powers of defence and the spirit of nature.

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    Translation

    This, above is the pourer of wealth (the cloud). His army commander is senajit (conqueror of army) and his civil administrator is susena (one with well-equipped force). Urvasi (aspiring) and purvacitti (pleasing to people) are his executives. Thunder is his weapon; lightning is his extraordinary weapon. Our reverence be to them all. May they protect us. May they give us comfort. We place in their jaws the man, whom we hate and who hates us. (1)

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তাদৃশমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই রকমই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থ –হে মনুষ্যগণ! যেমন (অয়ম্) এই (উপরি) উপর বর্ত্তমান (অর্বাগ্বসুঃ) বৃষ্টির পশ্চাৎ ধনের হেতু (তস্য) তাহার (সেনজিৎ) সেনা বিজেতা (চ) এবং (সুষেণঃ) সুন্দর সেনাপতি (চ) এই উভয়ে (সেনানীগ্রামণ্যৌ) সেনাপতি ও গ্রামাধ্যক্ষের তুল্য বর্ত্তমান অগ্রহায়ণ ও পৌষ মাস (উর্বশী) বহু খাওয়ার জন্য আন্তর্য্য দীপ্তি (চ) এবং (পূর্বচিত্তিঃ) আদি জ্ঞানের হেতু (চ) এই উভয়ে (অপ্সরসৌ) প্রাণ সকলের মধ্যে নিবাসকারী (অবস্ফূর্জন্) ভয়ংকর নাদ করিয়া (হেতিঃ) বজ্র তুল্য (বিদ্যুৎ) বিদ্যুতের চালক এবং (প্রহেতিঃ) উত্তম বজ্রের সমান রক্ষক প্রাণী (তেভ্যঃ) তাহাদের জন্য (নমঃ) অন্নাদি পদার্থ (অস্তু) হউক (তে) তাহারা (নঃ) আমাদিগকে (অবন্তু) রক্ষা করুক (তে) তাহারা (নঃ) আমাদেরকে (মৃডয়ন্তু) সুখী করুক (তে) সেই আমরা (য়ম্) যে দুষ্টের সহিত (দ্বিষ্মঃ) দ্বেষ করি (চ) এবং (য়ঃ) যে (নঃ) আমাদের সহিত (দ্বেষ্টি) দ্বেষ করে (তম্) তাহাকে আমরা (এষাম্) এই হিংসক প্রাণিদের (জম্ভে) মুখে (দধমঃ) ধারণ করি, সেইরূপ তোমরাও তাহাকে ধারণ কর ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । ইহাও হেমন্ত ঋতুর শেষ ব্যাখ্যা । মনুষ্যদিগের উচিত যে, এই ঋতুর যুক্তিপূর্বক সেবন করিয়া বলবান হউক ॥ ১ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒য়মু॒পর্য়॒র্বাগ্ব॑সু॒স্তস্য॑ সেন॒জিচ্চ॑ সু॒ষেণ॑শ্চ সেনানীগ্রাম॒ণ্যৌ᳖ । উ॒র্বশী॑ চ পূ॒র্বচি॑ত্তিশ্চাপ্স॒রসা॑বব॒স্ফূর্জ॑ন্ হে॒তির্বি॒দ্যু॒ৎপ্রহে॑তি॒স্তেভ্যো॒ নমো॑ऽঅস্তু॒ তে নো॑ऽবন্তু॒ তে নো॑ মৃডয়ন্তু॒ তে য়ং দ্বি॒ষ্মো য়শ্চ॑ নো॒ দ্বেষ্টি॒ তমে॑ষাং জম্ভে॑ দধ্মঃ ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অয়মুপরীত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । হেমন্তর্ত্তুর্দেবতা । নিচৃৎকৃতিশ্ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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