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यजुर्वेद अध्याय - 15

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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 53
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    158

    स॒म्प्रच्य॑वध्व॒मुप॑ सं॒प्रया॒ताग्ने॑ पथो॒ दे॑व॒याना॑न् कृणुध्वम्। पुनः॑ कृण्वा॒ना पि॒तरा॒ युवा॑ना॒न्वाता॑सी॒त् त्वयि॒ तन्तु॑मे॒तम्॥५३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्प्रच्य॑वध्व॒मिति॑ स॒म्ऽप्रच्य॑वध्वम्। उप। स॒म्प्रया॒तेति॑ स॒म्ऽप्रया॑त। अग्ने॑। प॒थः। दे॒व॒याना॒निति॑ देव॒ऽयाना॑न्। कृ॒णु॒ध्व॒म्। पुन॒रिति॒ पुनः॑। कृ॒ण्वा॒ना। पि॒तरा॑। युवा॑ना। अ॒न्वाता॑सी॒दित्य॑नुऽआता॑सीत्। त्वयि॑। तन्तु॑म। ए॒तम् ॥५३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सम्प्रच्यवध्वमुप सम्प्र याताग्ने पथो देवयानान्कृणुध्वम् । पुनः कृण्वाना पितरा युवानान्वाताँसीत्त्वयि तन्तुमेतम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्प्रच्यवध्वमिति सम्ऽप्रच्यवध्वम्। उप। सम्प्रयातेति सम्ऽप्रयात। अग्ने। पथः। देवयानानिति देवऽयानान्। कृणुध्वम्। पुनरिति पुनः। कृण्वाना। पितरा। युवाना। अन्वातासीदित्यनुऽआतासीत्। त्वयि। तन्तुम। एतम्॥५३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 53
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    कथं विवाहं कृत्वा किं कुर्य्यातामित्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यूयं विद्या उपसम्प्रयात देवयानान् पथः सम्प्रच्यवध्वं धर्मं कृणुध्वम्। हे अग्ने! त्वयि पितामहे विद्यमाने सति पितरा ब्रह्मचर्य्यं कृण्वाना युवाना भूत्वा स्वयंवरं विवाहं कृत्वा पुनरेतं तन्तुमन्वातांसीत्॥५३॥

    पदार्थः

    (संप्रच्यवध्वम्) सम्यग्गच्छत (उप) (संप्रयात) सम्यक् प्राप्नुत (अग्ने) विद्वन्! (पथः) मार्गान् (देवयानान्) देवा धार्मिका यान्ति येषु तान् (कृणुध्वम्) कुरुत (पुनः) (कृण्वाना) कुर्वन्तौ (पितरा) पालकौ मातापितरौ (युवाना) पूर्णयुवावस्थास्थौ। अत्र सर्वत्र विभक्तेराकारादेशः (अन्वातांसीत्) पश्चात् समन्तात् तनुताम्। अत्र वचनव्यत्ययेन द्विवचनस्थान एकवचनम् (त्वयि) पितामहे विद्यमाने सति (तन्तुम्) सन्तानम् (एतम्) गर्भाधानादिरीत्या यथोक्तम्॥५३॥

    भावार्थः

    कुमारा धर्म्येण सेवितब्रह्मचर्य्येण पूर्णा विद्या अधीत्य स्वयं धार्मिका भूत्वा पूर्णयुवावस्थायां प्राप्तायां कन्यानां पुरुषाः पुरुषाणां च कन्याः परीक्षां कृत्वाऽत्यन्तप्रीत्याऽऽकर्षितहृदयाः स्वेच्छया विवाहं विधाय धर्मेण सन्तानानुत्पाद्य सेवया मातापितरौ च सन्तोष्याप्तानां विदुषां मार्गं सततमन्वाययुः, यथा सरलान् धर्ममार्गान् कुर्य्युस्तथैव भूमिजलान्तरिक्षमार्गानपि निष्पादयेरन्॥५३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    स्त्री-पुरुष कैसे विवाह करके क्या करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! तुम लोग विद्याओं को (उपसंप्रयात) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ (देवयानान्) धार्मिकों के (पथः) मार्गों से (संप्रच्यवध्वम्) सम्यक् चलो, धर्म को (कृणुध्वम्) करो। हे (अग्ने) विद्वान् पितामह! (त्वयि) तुम्हारे बने रहते ही (पितरा) रक्षा करने वाले माता-पिता तुम्हारे पुत्र आदि ब्रह्मचर्य्य को (कृण्वाना) करते हुए (युवाना) पूर्ण युवावस्था को प्राप्त हो और स्वयंवर विवाह कर (पुनः) पश्चात् (एतम्) गर्भाधानादिरीति से यथोक्त (तन्तुम्) सन्तान को (अन्वातांसीत्) अनुकूल उत्पन्न करें॥५३॥

    भावार्थ

    कुमार स्त्रीपुरुष धर्मयुक्त सेवन किये ब्रह्मचर्य्य से पूर्ण विद्या पढ़ आप धार्मिक हो पूर्ण युवावस्था की प्राप्ति में कन्याओं की पुरुष और पुरुषों की कन्या परीक्षा कर अत्यन्त प्रीति के साथ चित्त से परस्पर आकर्षित होके अपनी इच्छा से विवाह कर, धर्मानुकूल सन्तानों को उत्पन्न और सेवा से अपने माता पिता का संतोष कर के आप्त विद्वानों के मार्ग से निरन्तर चलें और जैसे धर्म के मार्गों को सरल करें, वैसे ही भूमि, जल और अन्तरिक्ष के मार्गों को भी बनावें॥५३॥

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    विषय

    विद्वानों का मिलकर मर्यादाओं का निर्माण करना । राजा के आश्रय रहकर स्त्री पुरुषों का फलना फूलना ।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! प्रजाजनो ! आप लोग ( सम् पृच्यध्वम् ) अच्छी प्रकार मिलकर आओ और (सं प्रयात) साथ मिलकर प्रयाण करो ! हे ( अग्ने ) अग्रणी नेता और विद्वान् पुरुषो ! आप सब मिलकर ( देव यानान् पथः ) देवों, विद्वानों के जाने योग्य मार्गों को धर्माचरण की व्यवस्थाओं को और देव, राजा के जाने योग्य विशाल मार्गों को या विजयार्थी सेनाओं के जाने योग्य मार्गों को ( कृणुध्वम् ) बनाओ। और हे ( अग्ने ) नेत: राजन् ! ( युवाना पितरा ) युवा माता पिता, ( पुन: ) वार २ ( त्वयि ) तेरे आश्रय पर, तेरी रक्षामें रहते हुए ( कृण्वाना ) ब्रह्मचर्य का पालन एवं गृहस्थ धर्म का आचरण करते हुए ( एतम्) इस ( तन्तुम् ) विस्तृत राष्ट्र रूप यज्ञ को या प्रजोत्पालन रूप सन्तति कार्य को ( अनु आतांसीत् ) बराबर बनाये रक्वें । ० ' कुण्वाना:' 'पितरा' ऐसा महीधर और उव्वटाभिमत पाठ है। तदनुसार --- प्रजाजन ही ( युवाना पितरौ कृण्वानाः ) युवा युवतियों को ही अगली सन्तान के निमित्त पिता माता बनाते हुए त्वयि ) तुझ राजा ( के आश्रय में ( पुनः एतम् तन्तुम् अनु आंतासीत् ) फिर भी इस प्रजातन्तु को बनाये रक्खें । शत० ८। ६ । ३ । २२ ॥ पूर्व पक्ष में 'अन्वातांसीत्' यहां व्यत्यय से द्विवचन के स्थान में एक वचन है । और दूसरे पक्ष में बहु बचन के स्थान में एक वचन है । परन्तु यह शतपथाभिमत पाठ के विरुद्ध होने से उपेक्षा योग्य है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निर्देवता भुरिगार्षी पंक्तिः । पञ्चमः ॥

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    विषय

    तन्तु सन्तान Rejuvenation

    पदार्थ

    १. (सम्प्रच्यवध्वम्) = [सं गच्छध्वम्] तुम सब मिलकर चलो और मिलकर चलने के द्वारा २. (उप सम्प्रयात) = मेरे समीप आओ, मेरी उपासना करो। जो घर में मिलकर नहीं चल सकते, उन्हें प्रभु की उपासना का भी क्या अधिकार है ? ३. हे (अग्ने) = दोषों का दहन करनेवाले विद्वन्! तुम सब (देवयानान् पथः कृणुध्वम्) = देवयान मार्गों को करो, अर्थात् देवयान मार्ग से चलनेवाले बनो। देवताओं के मार्ग को अपनाओ। ४. (पितरा युवाना कृण्वाना) = माता-पिता को अपने उत्तम कर्मों से फिर से युवा करने के हेतु वे अग्नि में यज्ञ करते हैं। (पुन:) = फिर-फिर (पितरा) = [वाक् चैव मनश्च पितरा युवाना - श० ८।६।३।२२] पालक होने से 'पितृ' शब्दवाच्य वाणी और मन को (युवाना) = [तरुणौ अयातयामौ अथवा अन्योन्यसंगतौ-म०] तरुण - अक्षीणशक्ति तथा परस्पर सम्बद्ध कृण्वाना करते हुए। ५. हे अग्ने! (त्वयि) = तुझमें (एतं तन्तुम्) = इस यज्ञ को (अन्वातांसीत्) = [अतानिषुः अनुक्रमेण विस्तारितवन्तः - म०] विस्तृत करते हैं, अर्थात् वाणी और मन के द्वारा यज्ञों को सिद्ध करते हैं। यज्ञों में लगे हुए वाणी और मन संयत रहते हैं- क्षीणशक्ति नहीं होते ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम मिलकर चलें, प्रभु के उपासक बनें, देवताओं के मार्ग पर चलें। वाणी व मन को संस्कृत करके यज्ञों का विस्तार करें। यज्ञों में लगे हुए वाणी और मन परिष्कृत बने रहते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    तरुण स्त्री-पुरुषांनी धर्माने वागावे व ब्रह्मचर्य पाळून पूर्ण विद्या शिकावी व स्वतः धार्मिक बनून पूर्ण युवावस्था प्राप्त करावी, तसेच स्त्रीने पुरुषाची व पुरुषाने स्त्रीची परीक्षा करून प्रेमाने परस्परांचे चित्त आकर्षित करून घ्यावे. आपल्या पसंतीने विवाह करावा व धर्मानुकूल संताने उत्पन्न करावीत. माता व पिता यांची सेवा करून त्यांना संतुष्ट करावे. आप्त विद्वानांच्या धर्म मार्गाने सहजतेने चालावे, तसेच भूमी, जल व अंतरिक्षातील मार्गही बनवावे.

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    विषय

    स्त्री व पुरुष यांनी विवाह का करावा (विवाहाची उद्दिष्टे) याविषयी

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो (स्त्रियांनो व पुरुषांनो) तुम्ही विद्या (उपसंप्रमात) चांगल्याप्रकारे प्राप्त करा (विद्वान व्हा) आणि (देवयानान्) धार्मिकजनांच्या (पथ:) मार्गाने (संप्रच्यमध्यम्) सम्यकप्रकारे वाटचाल करा. धर्माचे (कृणुध्वम्) आचरण करा. हे (अग्निे) परिवारातील ज्येष्ठतम) विद्वान पितामह, (त्वयि) तुम्ही परिवारात हयात असताना (पितरा) रक्षक माता-पिता, पुत्र, पौत्र आदी या सर्वांनी ब्रह्मचर्याचे पालन (कृण्वाना) करीत (युवाना) पूर्ण यौवनावस्था प्राप्त करावी स्वयंवर पद्धतीने विवाह करून (पुन:) तद्नंतर (एवम्) गर्भाधानादी शास्त्रोक्त रीतीने (तत्नुम्) संतती (अन्वातांसीत्) (आपल्याशी संस्कार व विद्या या दृष्टीने) अनुकूल अशा संतानाला जन्म द्यावा. ॥53॥

    भावार्थ

    भावार्थ - कुमार-कुमारिका यांनी धर्म-नियमाप्रमाणे ब्रह्मचर्य धारण करीत पूर्ण विद्या अवगत करून धार्मिक बनावे. युवावस्था प्राप्त केल्यानंतर युवतींनी युवकांची आणि युवकांनी युवतींची परीक्षा (व अनुकूल निवड) करावी. नंतर दोघात प्रीतिभाव उत्पन्न झाल्यानंतर स्वेच्छेने, स्वनिर्णयाप्रमाणे विवाह करावा. त्यानंतर धर्माप्रमाणे संतती उत्पन्न करावी. सेवा-सुश्रूषा करून आई-वडीलांना संतुष्ट करावे आणि आप्त विद्वानांनी दर्शविलेल्या मार्गावर चालावे. तसेच स्त्री-पुरुषांनी ज्याप्रमाणे धर्ममार्ग सुगम-सरल करावा, तसेच भूमी, जल आणि अंतरिक्ष यांवर यामध्ये सुगम सरळ मार्गांची रचना करावी ॥53॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O people, learn well all sciences, follow the path of the virtuous, be religious-minded. O learned grandfather, in thy lifetime, let thy sons, leading a life of Brahmcharya, in the bloom of their youth, marry according to their own selection, and produce afterwards children, according to the rules of eugenics.

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    Meaning

    Ye men and women all, move together, go close to Agni by the paths of divinity for light and knowledge. Create new paths for the future. Agni, light the paths for humanity. Only in your presence under your guidance can young people as parents follow Dharma under the discipline of piety and continue the yajna and the life-line.

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    Translation

    O men, move forward to welcome. Come from all sides to meet him. O fire divine, make the paths of the enlightened ones secure. May the parents, rejuvenated with new vigour, spin out this thread of offsprings under your protection. (1)

    Notes

    Sampracyavdhvam, प्रत्यागच्छत, move forward to welcome (him). Upa Samprayāta, from all sides come to meet (him). Patho devayānän kṛṇudhvam, make the paths fit for the enlightened once to travel along. Pitarã yuvānā, the parents rejuvenated. Or, qof युवावस्थास्थौ, the parents in their prime ofyouth. 'वाक् चैव मनश्च पितरा युवाना', the speech and the mind are the young parents (Satapatha, VIII. 6. 3. 22). Anvātāmsīt, अतानिषुः अनुक्रमेण विस्तारितवन्तः, spread (this thread); spin out. Etain tantum,सूत्रं , this thread; , this sacrifice.

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    बंगाली (1)

    विषय

    কথং বিবাহং কৃত্বা কিং কুর্য়্যাতামিত্যাহ ॥
    স্ত্রী পুরুষ কেমন বিবাহ করিয়া কী করিবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ– হে মনুষ্যগণ! তোমরা বিদ্যাসকলকে (উপসংপ্রয়াত) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হও, (দেবয়ানান্) ধার্মিক দিগের (পথঃ) মার্গসকল দিয়া (সংপ্রচ্যবধবম্) সম্যক্ চল, ধর্মকে (কৃণুধবম্) কর । হে (অগ্নে) বিদ্বান্ পিতামহ! (ত্বয়ি) তোমাদিগের বিদ্যমান থাকিলেই (পিতরা) রক্ষকারী মাতা-পিতা তোমাদের পুত্রাদি ব্রহ্মচর্য্যকে (কৃণ্বানা) পালন করিয়া (য়ুবানা) পূর্ণ যুবাবস্থা প্রাপ্ত হইয়া এবং স্বয়ম্বর বিবাহ করিয়া (পুনঃ) পশ্চাৎ (এতম্) গর্ভাধানাদিরীতি দ্বারা যথোক্ত (তন্তুম্) সন্তানকে (অন্বাতাংসীৎ) অনুকূল উৎপন্ন করিবে ॥ ৫৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–কুমার স্ত্রী-পুরুষ ধর্মযুক্ত সেবন কৃত ব্রহ্মচর্য্য দ্বারা পূর্ণ বিদ্যা পাঠ করিয়া স্বয়ং ধার্মিক হইয়া পূর্ণ যুবাবস্থা প্রাপ্তিতে কন্যাদের পুরুষ এবং পুরুষদের কন্যা পরীক্ষা করিয়া অত্যন্ত প্রীতিসহ চিত্ত দ্বারা বরাবর আকর্ষিত হইয়া স্বীয় ইচ্ছায় বিবাহ করিয়া ধর্মানুকূল সন্তানদিগকে উৎপন্ন ও সেবা দ্বারা স্বীয় মাতা-পিতার সন্তুষ্টি সাধন করিয়া আপ্ত বিদ্বান্দের মার্গ দিয়া নিরন্তর চলিবে এবং যেমন ধর্মের মার্গকে সরল করিবে সেইরূপ ভূমি, জল এবং অন্তরিক্ষের মার্গকেও তৈরী করিবে ॥ ৫৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সং॒প্রচ্য॑বধ্ব॒মুপ॑ সং॒প্রয়া॒তাগ্নে॑ প॒থো দে॑ব॒য়ানা॑ন্ কৃণুধ্বম্ ।
    পুনঃ॑ কৃণ্বা॒না পি॒তরা॒ য়ুবা॑না॒ন্বাতা॑ᳬंসী॒ৎ ত্বয়ি॒ তন্তু॑মে॒তম্ ॥ ৫৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সংপ্রচ্যবধ্বমিত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিগার্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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