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यजुर्वेद अध्याय - 15

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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 31
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    त्वां चि॑त्रश्रवस्तम॒ हव॑न्ते वि॒क्षु ज॒न्तवः॑। शो॒चिष्के॑शं पुरुप्रि॒याग्ने॑ ह॒व्याय॒ वोढ॑वे॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाम्। चि॒त्र॒श्र॒व॒स्त॒मेति॑ चित्रश्रवःऽतम। हव॑न्ते। वि॒क्षु। ज॒न्तवः॑। शो॒चिष्के॑शम्। शो॒चिःके॑श॒मिति॑ शो॒चिःऽके॑शम्। पु॒रु॒प्रि॒येति॑ पुरुऽप्रिय। अग्ने॑। ह॒व्याय॑। वोढ॑वे ॥३१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वाञ्चित्रश्रवस्तम हवन्ते विक्षु जन्तवः । शोचिष्केशम्पुरुप्रियाग्ने हव्याय वोढवे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम्। चित्रश्रवस्तमेति चित्रश्रवःऽतम। हवन्ते। विक्षु। जन्तवः। शोचिष्केशम्। शोचिःकेशमिति शोचिःऽकेशम्। पुरुप्रियेति पुरुऽप्रिय। अग्ने। हव्याय। वोढवे॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 31
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैरग्निना किं साध्यमित्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे पुरुप्रिय चित्रश्रवस्तमाग्ने! विक्षु हव्याय वोढवे यं शोचिष्केशं त्वां जन्तवो हवन्ते, तं वयमपि हवामहे॥३१॥

    पदार्थः

    (त्वाम्) (चित्रश्रवस्तम) चित्राण्यद्भुतानि श्रवांस्यतिशयितान्यन्नानि वा यस्य (हवन्ते) स्वीकुर्वन्ति (विक्षु) प्रजासु (जन्तवः) जनाः (शोचिष्केशम्) शोचिषः केशाः सूर्य्यस्य रश्मय इव तेजांसि यस्य तम् (पुरुप्रिय) बहून् प्रीणाति बहूनां प्रियो वा तत्संबुद्धौ (अग्ने) विद्वन् (हव्याय) स्वीकर्त्तव्यमन्नादिपदार्थम्। अत्र सुब्व्यत्ययेन द्वितीयैकवचनस्य चतुर्थ्यैकवचनम् (वोढवे) वोढुम्। अत्र तुमर्थे तवेन् प्रत्ययः॥३१॥

    भावार्थः

    मनुष्या यमग्निं जीवाः सेवन्ते, तेन भारवहनादीनि कार्य्याण्यपि साध्नुवन्तु॥३१॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    मनुष्य लोग अग्नि से क्या सिद्ध करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (पुरुप्रिय) बहुतों के प्रसन्न करने हारे वा बहुतों के प्रिय (चित्रश्रवस्तम) आश्चर्य्यरूप अन्नादि पदार्थों से युक्त (अग्ने) तेजस्वी विद्वन्! (विक्षु) प्रजाओं में (हव्याय) स्वीकार के योग्य अन्नादि उत्तम पदार्थों को (वोढवे) प्राप्ति के लिये जिस (शोचिष्केशम्) सुखाने वाली सूर्य की किरणों के तुल्य तेजस्वी (त्वाम्) आपको (जन्तवः) मनुष्य लोग (हवन्ते) स्वीकार करते हैं, उसी को हम लोग भी स्वीकार करते हैं॥३१॥

    भावार्थ

    मनुष्य को योग्य है कि जिस अग्नि को जीव सेवन करते हैं, उस से भार पहुँचाना आदि कार्य भी सिद्ध किया करें॥३१॥

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    विषय

    तेजस्वी पुरुष की स्तुति ।

    भावार्थ

    हे ( चित्रश्रवस्तम ) अद्भुत, आश्चर्यकारी नाना अन्न आदि ऐश्वर्यो के और यश के सबसे बड़े स्वामिन् ! हे ( पुरुप्रिय ) बहुत प्रजाओं के प्रिय ! अथवा राष्ट्र वासी प्रजाओं को प्रेम करने हारे ! हे (अग्ने) तेजस्विन्! अग्रणी पुरुष ! ( इव्याय ) स्वीकार करने योग्य राष्ट्र के भार को (बोढवे) अपने ऊपर उठाने के लिये ( विक्षु ) प्रजाओं में से ( जन्तवः) समस्त जन ( शोचिष्केशम् ) दीप्ति युक्त किरणों वाले सूर्य के समान दीप्ति- मानू (त्वाम) तुझको ( हवन्ते ) बुलाते हैं। तुझे चाहते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रस्कण्वः ऋषिः । अग्निर्देवता । विराडनुष्टुप् । गांधार ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्याप्रमाणे अग्नीचा सगळे लोक अंगीकार करतात त्या अग्नीकडून माणसांनी भारवहनाचे कार्य करून घ्यावे.

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    विषय

    मनुष्यांनी अग्नीपासून कोणकोणती कार्यें सिद्ध करावी, पुढील मंत्रात हा विषय वर्णित आहे-

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (पुरुप्रिय) अनेकांना आनंद देणारे अथवा अनेकांना प्रिय असणारे आणि (चित्रश्रवस्तम) आश्चर्यरुप आदी पदार्थांनी समृद्ध असणारे (अग्ने) हे विद्वान, (विबु) प्रजाजनांसाठी (हव्याय) वांछित वा प्रिय अन्न आदी पदार्थांच्या (वोढवे) प्राप्तीसाठी (शोचिष्केशम्) शोषण करणार्‍या सूर्यकिरणांप्रमाणे तेजस्वी असलेल्या (त्वाम्) आपल्या ज्याप्रमाणे (जन्तव:) सामाजिक जन (हवन्ते) स्वीकार करतात, त्याप्रमाणे आम्ही इतर सर्वजण देखील आपला स्वीकार करतो. ॥31॥

    भावार्थ

    भावार्थ - मनुष्यांकरिता हे हितकर आहे की ज्या अग्नीचे सर्व प्राणी सेवन करतात (त्यापासून उपभोग घेतात) त्या अग्नीपासून भारवहम, (प्रवास आदी कार्यदेखील) संपन्न करावेत (अग्नीरुप विद्युत, वाष्प आदी ऊर्जाच्या साहाय्याने सामानाची ने-आण, दूरचा प्रवास आदी लाभ घ्यावेत.) ॥31॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O noble learned person, loved of many, people invoke thee, powerful like the scorching rays of the sun for acquiring necessary nice foodstuffs for the subjects.

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    Meaning

    Agni, most wondrous lord of food and energy, dearest to all, blazing with light like the sun, people in all nations from all walks of life invoke you and offer libations for the attainment of food, energy and comfort in life.

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    Translation

    O adorable God with splendours, loved by all and giver of wonderous wealth and sustenance, everyone in creation invokes you on all sides to obtain your blessings. (1)

    Notes

    Citraśravastama, चित्रं नानारूपं श्रवो धनं यश: वा अतिशयेन यस्य , one whose wealth or glory is of various types; one with achievements in several fields. Also, bestower of wondrous wealth. Vikṣu,प्रजासु, among people. Jantavaḥ,जना :, men. Sociskeśam, शोचन्ति दीप्यन्ते केशाः केशसंस्थानीयाः ज्वालाः , one that has got flaming hair. Or, lord of splendours. Purupriya, loved or adored by multitude. Vodhave, ,वोढुं वहनाय, for carrying.

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    बंगाली (1)

    विषय

    মনুষ্যৈরগ্নিনা কিং সাধ্যমিত্যুপদিশ্যতে ॥
    মনুষ্যগণ অগ্নিদ্বারা কী সিদ্ধ করিবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (পুরুপ্রিয়) বহু ব্যক্তিকে প্রসন্নকারী বা বহু লোকের প্রিয় (চিত্রশ্রবস্তম) আশ্চর্য্যরূপ অন্নাদি পদার্থযুক্ত (অগ্নে) তেজস্বী বিদ্বান্! (বিক্ষু) প্রজাদিগের মধ্যে (হব্যায়) স্বীকার করিবার যোগ্য অন্নাদি উত্তম পদার্থ সকলকে (বোঢবে) প্রাপ্তি হেতু যে (শোচিষ্কেশম্) শুষ্ক করিবার সূর্য্যের কিরণতুল্য তেজস্বী (ত্বাম্) আপনাকে (জন্তবঃ) মনুষ্যগণ (হবন্তে) স্বীকার করে, তাহাকেই আমরাও স্বীকার করি ॥ ৩১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, জীব যে অগ্নির সেবন করে উহার দ্বারা ভার পৌঁছাইয়া দেওয়া ইত্যাদি কার্য্যও সিদ্ধ করুক ॥ ৩১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ত্বাং চি॑ত্রশ্রবস্তম॒ হব॑ন্তে বি॒ক্ষু জ॒ন্তবঃ॑ ।
    শো॒চিষ্কে॑শং পুরুপ্রি॒য়াগ্নে॑ হ॒ব্যায়॒ বোঢ॑বে ॥ ৩১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ত্বামিত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । বিরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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