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यजुर्वेद अध्याय - 15

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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 6
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - विराडभिकृतिः स्वरः - ऋषभः
    100

    र॒श्मिना॑ स॒त्याय॑ स॒त्यं जि॑न्व॒ प्रेति॑ना॒ ध॒र्म॑णा॒ धर्र्मं॑ जि॒न्वान्वि॑त्या दि॒वा दिवं॑ जिन्व स॒न्धिना॒न्तरि॑क्षेणा॒न्तरि॑क्षं जिन्व प्रति॒धिना॑ पृथि॒व्या पृ॑थि॒वीं जि॑न्व विष्ट॒म्भेन॒ वृष्ट्या॒ वृष्टिं॑ जिन्व प्र॒वयाऽह्नाह॑र्जिन्वानु॒या रात्र्या॒ रात्रीं॑ जिन्वो॒शिजा॒ वसु॑भ्यो॒ वसू॑ञ्जिन्व प्रके॒तेना॑दि॒त्येभ्य॑ऽआदि॒त्याञ्॑िजन्व॒॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    र॒श्मिना॑। स॒त्याय॑। स॒त्यम्। जि॒न्व॒। प्रेति॒नेति॒ प्रऽइति॑ना। धर्म॑णा। धर्म॑म्। जि॒न्व॒। अन्वि॒त्येत्यनु॑ऽइत्या। दि॒वा। दिव॑म्। जि॒न्व॒। स॒न्धिनेति॑ स॒म्ऽधिना॑। अ॒न्तरि॑क्षेण। अ॒न्तरि॑क्षम्। जि॒न्व॒। प्र॒ति॒धिनेति॑ प्रति॒ऽधिना॑। पृ॒थि॒व्या। पृ॒थि॒वीम्। जि॒न्व॒। वि॒ष्ट॒म्भेन॑। वृष्ट्या॑। वृष्टि॑म्। जि॒न्व॒। प्र॒वयेति॑ प्र॒ऽवया॑। अह्ना॑। अहः॑। जि॒न्व॒। अ॒नु॒येत्य॑नु॒ऽया। रात्र्या॑। रात्री॑म्। जि॒न्व॒। उ॒शिजा॑। वसु॑भ्य॒ इति॒ वसु॑ऽभ्यः। वसू॑न्। जि॒न्व॒। प्र॒के॒तेनेति॑ प्रऽके॒तेन॑। आ॒दि॒त्येभ्यः॑। आ॒दि॒त्यान्। जि॒न्व॒ ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रश्मिना सत्याय सत्यञ्जिन्व प्रेतिना धर्मणा धर्मञ्जिन्वान्वित्या दिवा दिवञ्जिन्व सन्धिनान्तरिक्षेणान्तरिक्षञ्जिन्व प्रतिधिन्पृथिव्या पृथिवीञ्जिन्व विष्टम्भेन वृष्ट्या वृस्टिञ्जिन्व प्रवयाह्नाहर्जिन्वानुया रात्र्या रात्रीञ्जिन्वोशिजा वसुभ्यो वसून्जिन्व प्रकेतेनादित्येभ्यऽआदित्यञ्जिन्व ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    रश्मिना। सत्याय। सत्यम्। जिन्व। प्रेतिनेति प्रऽइतिना। धर्मणा। धर्मम्। जिन्व। अन्वित्येत्यनुऽइत्या। दिवा। दिवम्। जिन्व। सन्धिनेति सम्ऽधिना। अन्तरिक्षेण। अन्तरिक्षम्। जिन्व। प्रतिधिनेति प्रतिऽधिना। पृथिव्या। पृथिवीम्। जिन्व। विष्टम्भेन। वृष्ट्या। वृष्टिम्। जिन्व। प्रवयेति प्रऽवया। अह्ना। अहः। जिन्व। अनुयेत्यनुऽया। रात्र्या। रात्रीम्। जिन्व। उशिजा। वसुभ्य इति वसुऽभ्यः। वसून्। जिन्व। प्रकेतेनेति प्रऽकेतेन। आदित्येभ्यः। आदित्यान्। जिन्व॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्भिः पदार्थविद्या ज्ञातव्येत्याह॥

    अन्वयः

    हे विद्वंस्त्वं रश्मिना सत्याय सूर्य इव नित्यसुखाय सत्यं जिन्व। प्रेतिना धर्मणा धर्मं जिन्व। अन्वित्या दिवा दिवं जिन्व। सन्धिनान्तरिक्षेणान्तरिक्षं जिन्व। पृथिव्या प्रतिधिना पृथिवीं जिन्व। विष्टम्भेन वृष्ट्या वृष्टिं जिन्व। प्रवयाऽह्नाहर्जिन्व। अनुया रात्र्या रात्रीं जिन्व। उशिजा वसुभ्यो वसून् जिन्व। प्रकेतेनादित्येभ्य आदित्यान् जिन्व॥६॥

    पदार्थः

    (रश्मिना) किरणसमूहेन (सत्याय) सति वर्त्तमाने भवाय स्थूलाय पदार्थसमूहाय (सत्यम्) अव्यभिचारि कर्म (जिन्व) प्राप्नुहि (प्रेतिना) प्रकृष्टविज्ञानयुक्तेन (धर्मणा) न्यायाचरणेन (धर्मम्) (जिन्व) जानीहि (अन्वित्या) अन्वेषणेन (दिवा) धर्मप्रकाशेन (दिवम्) सत्यप्रकाशम् (जिन्व) (सन्धिना) सन्धानेन (अन्तरिक्षेण) आकाशेन (अन्तरिक्षम्) अवकाशम् (जिन्व) जानीहि (प्रतिधिना) प्रतिदधाति यस्मिंस्तेन (पृथिव्या) भूगर्भविद्यया (पृथिवीम्) भूमिम् (जिन्व) जानीहि (विष्टम्भेन) विशेषेण स्तभ्नोति शरीरं येन तेन (वृष्ट्या) वृष्टिविद्यया (वृष्टिम्) (जिन्व) जानीहि (प्रवया) कान्तिमता (अह्ना) अहर्विद्यया (अहः) दिनम् (जिन्व) जानीहि (अनुया) यानुयाति तया (रात्र्या) रात्रिविद्यया (रात्रीम्) रजनीम् (जिन्व) (उशिजा) कामयमानेन (वसुभ्यः) अग्न्यादिभ्यः (वसून्) अग्न्यादीन् (जिन्व) (प्रकेतेन) प्रकृष्टेन विज्ञानेन (आदित्येभ्यः) मासेभ्यः (आदित्यान्) द्वादशमासान् (जिन्व) विजानीहि [अयं मन्त्रं शत॰८.५.३.३ व्याख्यातः]॥६॥

    भावार्थः

    विद्वद्भिर्यथा पदार्थपरीक्षणेन पदार्थविद्या विदिता कार्या तथैवान्येभ्य उपदेष्टव्या॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों को पदार्थविद्या के जानने का उपाय करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वान् पुरुष! तू (रश्मिना) किरणों से (सत्याय) वर्त्तमान में हुए सूर्य्य के तुल्य नित्य सुख और स्थूल पदार्थों के लिये (सत्यम्) अव्यभिचारी कर्म को (जिन्व) प्राप्त हो। (प्रेतिना) उत्तम ज्ञानयुक्त (धर्मणा) न्याय के आचरण से (धर्मम्) धर्म को (जिन्व) जान। (अन्वित्या) खोज के हेतु (दिवा) धर्म के प्रकाश से (दिवम्) सत्य के प्रकाश को (जिन्व) प्राप्त हो। (सन्धिना) सन्धिरूप (अन्तरिक्षेण) आकाश से (अन्तरिक्षम्) अवकाश को (जिन्व) जान। (पृथिव्या) भूगर्भविद्या के (प्रतिधिना) सम्बन्ध से (पृथिवीम्) भूमि को (जिन्व) जान। (विष्टम्भेन) शरीर धारण के हेतु आहार के रस से तथा (वृष्ट्या) वर्षा की विद्या से (वृष्टिम्) वर्षा को (जिन्व) जान। (प्रवया) कान्तियुक्त (अह्ना) प्रकाश की विद्या से (अहः) दिन को (जिन्व) जान। (अनुया) प्रकाश के पीछे चलने वाली (रात्र्या) रात्रि की विद्या से (रात्रीम्) रात्रि को (जिन्व) जान। (उशिजा) कामनाओं से (वसुभ्यः) अग्नि आदि आठ वसुओं की विद्या से (वसून्) उन अग्नि आदि वसुओं को (जिन्व) जान और (प्रकेतेन) उत्तम विज्ञान से (आदित्येभ्यः) बारह महीनों की विद्या से (आदित्यान्) बारह महीनों को (जिन्व) तत्त्वस्वरूप से जान॥६॥

    भावार्थ

    विद्वानों को चाहिये कि जैसे पदार्थों की परीक्षा से अपने आप पदार्थविद्या को जानें, वैसे ही दूसरों के लिये भी उपदेश करें॥६॥

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    विषय

    नाना ऐश्वर्यों और कर्त्तव्यों परं नाना उपायों से वश करने का उपदेश ।

    भावार्थ

    ( सत्याय ) सत्यव्यवहार की वृद्धि के लिये नियुक्त ( रश्मिना ) सूर्य की किरणों के समान विवेक द्वारा छिपी बातों को भी प्रकाशित करने में समर्थ विवेकी पुरुष द्वारा ( सत्यं जिन्व ) सत्य व्यवहार की राष्ट्र में वृद्धि कर । अर्थात् उत्तम विवेकी न्याय कर्ता पुरुष को नियुक्त कर । २. ( धर्मणा' ) धर्म, प्रजा को व्यवस्थित करने वाले कानून के निमित्त ( प्रेतिना ) उत्तम विज्ञान युक्त, पुरुष द्वारा ( धर्म जिन्व ) धर्म या व्यवस्था, कानून को उन्नत कर । ३. ( दिवा ) धर्म, या ज्ञान के प्रकाश के लिये नियुक्त ( अन्वित्या ) अन्वेषण करने वाली समिति द्वारा ( दिवं जिन्व ) विज्ञान के और सत्य तत्वों की वृद्धि कर, । ४. ( अन्तरिक्षेण ) पृथ्वी और आकाश के बीच जिस प्रकार अन्तरिक्ष दोनों लोकों को मिलाता है उसी प्रकार दो राजाओं के बीच स्थित मध्यस्थ रूप से विद्यमान 'अन्तरिक्ष पद के कार्य के लिये नियुक्त (सन्धिना ) परस्पर के 'सन्धि' कराने वाले 'सन्धि' नामक अधिकारी से तू ( अन्तरिक्षं जिन्व ) उक्त अन्तरिक्ष पद को पुष्ट कर । ५ ( पृथिव्या ) पृथिवी के शासन के लिये नियुक्त ( प्रतिधिना ) अपने स्थान पर स्थापित प्रतिनिधि द्वारा अथवा ( पृथिव्या ) पृथिवी के शासनार्थ लोकवृत्त जानने के लिये नियुक्त ( प्रतिधिना ) प्रत्येक बात के पता लगाने वाले गुप्तचर द्वारा ( पृथिवीं जिन्व ) तू पृथिवी को अर्थात् पृथिवी निवासी प्रजाजन या अपने राष्ट्र भूमि की वृद्धि कर, उसको पुष्ट कर । ६. ( वृष्ट्या ) प्रजापर जलों की वर्षा करने के लिये जिस प्रकार जलों का स्तम्भन करने में समर्थ वायु अपने भीतर जल थाम लेता है उसी प्रकार प्रजापर पुनः अपने ऐश्वयों की वृष्टि करने के लिये ( विष्टम्भेन ) विविध उपायों से धनों को स्तम्भन या संग्रह करने वाले विभाग को नियुक्त करके उससे तू ( वृष्टि जिन्व ) सुखों के वर्षण की वृद्धि कर । ७. ( अन्हा ) सूर्य के समान तेजस्वी होकर राष्ट्र के कार्यों को चलाने के लिये ( प्रवयाः ) उत्कृष्ट तेजस्वी पुरुष को नियुक्त करके उससे ( अहः जिन्व ) सूर्य पद की वृद्धि कर । ८ ( रात्र्यां ) समस्त प्रजाओं के रमण करने, उनको विश्राम देने एवं रात्रि के समान शत्रुओं को भूमि पर सुला देने के लिये (अनुया ) चारों और डाकुओं के पीछा करने वाले विभाग द्वारा ( रात्री जिन्व ) तेजास्वनी रात्री, या रात्रि को राष्ट्र की रक्षा करने वाली संस्था को (जिन्व ) पुष्ट कर । ९ ( वसुभ्यः ) ऐश्वर्यों के प्राप्त करने के लिये और राष्ट्र में बसने वाले जनों के हित के लिये ( उशिजा ) धनादि के अभिलाषा करने वाले चलिंग विभाग द्वारा (वसुन्) प्रजा के सुखकारी अभि आदि शक्ति और समस्त पदार्थों को और प्रजा जनों को पुष्ट कर अथवा 'वसु' ब्रह्मचारियों के लिये कामना प्रकट करने वाले स्त्री वर्ग द्वारा ( वसून् ) बसु ब्रह्मचारी युवकों को (जिन्व) संतुष्ट कर। उनके विवाह आदि की उत्तम व्यवस्था कर । १०. ( आदित्येभ्यः ) आदित्य ब्रह्मचरियों के स्थापित ( प्रकेतेन उत्कृष्ट ज्ञान के साधन पुस्तकालय, विद्यालय आदि द्वारा ( आदित्यान् ) आदित्य, ज्ञाननिष्ठ पुरुषों को भी ( जिन्व ) पुष्ट कर।

    टिप्पणी

    सर्वत्र निमित्ते तृतीया ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्तोमभागा: विद्वांसो देवता: । विराडभिकृतिः । ऋषभः ।

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    विषय

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    पदार्थ

    १. (सत्याय) = सत्य के लिए [उपहिता सती-म० enjoined ] आदिष्ट हुआ-हुआ तू (रश्मिना) = ज्ञान-किरणों से तथा मनरूप लगाम द्वारा इन्द्रिय-निरोध से [रश्मिः किरण, लगाम] (सत्यं जिन्व) = सत्य को प्राप्त कर, सत्य को अपने अन्दर प्रीणित कर। ज्ञानेन्द्रियों के क्षेत्र में 'रश्मि' किरण है और कर्मेन्द्रियों के क्षेत्र में यह लगाम है। ज्ञान-किरणों के प्राप्त करने में लगी हुई ज्ञानेन्द्रियाँ असत्य से बची रहती हैं और सत्य का पोषण करती हैं, इसी प्रकार बुद्धिरूप सारथि से मनरूप लगाम द्वारा निरुद्ध कर्मेन्द्रियाँ असत्य कर्मों में प्रवृत्त नहीं होतीं। २. (धर्मणा) = [ धर्मो धारयते प्रजाः] धारणात्मक कर्मों को करने के हेतु से इस मानव शरीर को प्राप्त कराया हुआ तू (प्रेतिना) = [प्रकृष्टा इति:] प्रकृष्ट गति से, अर्थात् सदा गो-सेवा आदि उत्तम कर्मों में लगे रहने से (धर्मं जिन्व) = अपने अन्दर धर्म को प्रीणित कर। धन कमाने के कार्यों से निपटने पर गो-सेवादि कार्य ही तेरे आमोद-प्रमोद हों। ३. (दिवा) = ज्ञान के लिए सब साधनों को प्राप्त कराया हुआ तू (अन्वित्या) = [अनु + इति] माता-पिता व आचार्य के अनुकूल गति करने के द्वारा, अर्थात् उनकी आज्ञा के अनुसार चलता हुआ तू दिवं जिन्व प्रकाश को प्राप्त कर । तू माता से चरित्र और पिता से आचार [Manners] तथा आचार्य से ज्ञान की शिक्षा प्राप्त करके प्रकाशमय जीवनवाला बन। ४. (अन्तरिक्षेण) = [अन्तरा क्षि] सदा मध्यमार्ग में चलने के हेतु से ही तुझे बुद्धि दी गई है। मध्यमार्ग में चलने के हेतु से इस मानव जीवन को प्राप्त कराया हुआ तू (सन्धिना) = शरीर व मन के बल का अपने में सम्यग् आधान [स्थापन] द्वारा (अन्तरिक्षं जिन्व) = इस मध्यमार्ग को प्राप्त करनेवाला बन। अथवा (सन्धिना) = दोनों अतियों के मेल के द्वारा तू मध्यमार्ग को प्राप्त कर। एक ओर अतियोग है-दूसरी ओर अयोग। दोनों का मध्य यथायोग है। इस यथायोग को तू अपनानेवाला हो। ५. (पृथिव्या) = [पृथिवी शरीरम् ] इस शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आदिष्ट हुआ हुआ तू (प्रतिधिना) = अङ्ग अङ्ग में प्रत्येक अङ्ग में शक्ति के आधान द्वारा [ प्रति-धानं] पृथिवीं जिन्व शरीर को पूर्ण स्वस्थ बना। ६. शरीर को स्वस्थ बनाकर अध्यात्म उन्नति करके (वृष्ट्या) = धर्ममेघ समाधि में आनन्द की वर्षा को प्राप्त करने के हेतु से इस संसार में भेजा हुआ तू (विष्टम्भेन) = [वि + स्तम्भ] विशिष्ट रूप से चित्तवृति के स्तम्भन के द्वारा (वृष्टिं जिन्व) = इस आनन्द की वर्षा को प्राप्त करनेवाला बन। ७. (अह्ना) = [अहन्] जीवन के एक भी क्षण को नष्ट न करने के लिए भेजा हुआ तू (प्रवया) [प्रकर्षेण यानं प्रवा, वा गतिगन्धनयो: ] = प्रकृष्ट गति के द्वारा अहः अपने आयुष्य के दिनों को (जिन्व) = बड़ा क्रियामय बना। तेरे जीवन के दिन उत्साहपूर्ण प्रतीत हों। ८. (रात्र्या) = [रात्रि: रमयित्री] रात्रि को सचमुच आनन्दप्रद बनाने के लिए प्रेरित हुआ हुआ तू (अनुया) = एक के बाद दूसरे, दूसरे के बाद तीसरे इस प्रकार निरन्तर कर्मों में लगने के द्वारा (रात्रीं जिन्व) = रात्रि को आनन्दप्रद बना [ to refresh, to animate ] । ९. इस प्रकार दिन-रात्रि को ठीक बनाने के बाद (वसुभ्यः) = वसुओं के लिए आदिष्ट हुआ हुआ तू (उशिजा) = [ उशिक्- मेधावी तथा वष्टि कामयते] बुद्धिमता से उत्तम कामनाओं के द्वारा (वसून् जिन्व) = सब निवासक तत्त्वों को प्राप्त करनेवाला बन। इन वसुओं ने ही तो तेरे निवास को उत्तम बनाना है। इन वसुओं की अनुकूलता से ही पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त होता है। १०. पूर्ण स्वस्थ बनकर (आदित्येभ्यः) = आदित्यों के लिए प्रेरित हुआ हुआ तू (प्रकेतेन) = प्रकृष्ट ज्ञान से (आदित्यान् जिन्व) = आदित्यों को प्रीणित करनेवाला बन। आदित्य की भाँति ही तुझे ज्ञान की दीप्ति से चमकना है। यह ज्ञान 'प्रकेत' है 'प्रकर्षेण कं सुखं इष्यतेऽनेन ' इसी से प्रकृष्ट सुख की गति होती है। इसी से उस (क) = अनिर्वचनीय प्रजापति परमात्मा का दर्शन होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु ने हमें प्रस्तुत मन्त्र में दस आदेश दिये हैं। उन आदेशों के अनुसार हमें सत्य, धर्म, प्रकाश, मध्यमार्ग, शरीर का स्वास्थ्य, आनन्द-वृष्टि की अनुभूति, समय की अव्यर्थता, रात्रि का रमयितृत्व - वासक तत्त्व तथा प्रकेत (प्रकृष्ट ज्ञान) की साधना करनी है। हम इन आदेशों का पालन करते हैं तो वे ही हमारे स्तोम - प्रभु-स्तवन हो जाते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    विद्वानांनी पदार्थांची परीक्षा करून स्वतः पदार्थविद्या जाणावी व इतरांनाही शिकवावी.

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    विषय

    विद्वानांनी (वैज्ञानिकांनी) पदार्थ विद्येविषयी (भौतिकशास्त्राविषयी) अधिकाधिक ज्ञान मिळविण्याकरिता प्रयत्न केले पाहिजेत, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे विद्वान (विज्ञानवान मनुष्य), (रश्मिमा) सूर्यजसा आपल्या किरणांनी (सहयाय) सर्वांच्या सुकाकरिता आणि स्थुल पदार्थांच्या प्राप्तीकरिता (कर्मकरतो) तद्वत हे विद्वव्, आपण सत्य कर्म (जिन्व) करीत रहा (सर्वांच्या कल्याणासाठी सत्यमनाने नवीन वैज्ञानिक शोध बानण्यासाठी यत्न करा) (प्रेतिना) उत्तम ज्ञानाद्वारे आणि (धर्मणा) न्याययुक्त आचरणाद्वारे (धर्मम्) सत्य धर्माचे (जिम्व) ज्ञान मिळवा. (अन्वित्था) शोध (नवीन आविष्करण, प्रयोग) यांसाठी (दिवा) धर्म आणि (दिवम्) सत्य यांना (जिन्व) प्राप्त व्हा (यांचा आदार घ्या (सन्धिमा) सन्धिरुप (अन्तरिक्षेण) आकाशाद्वारे (अन्तरिक्षम्) अवकाशाचे ज्ञान (जिन्व) मिळवा. (अंतरिक्षस्थित ग्रह-नक्षत्रादींविषयी अधिक ज्ञान प्राप्त करा.) (पृधिव्या) भूगर्भविद्येच्या (प्रतिधिता) सहाय्याने (पृथिवीम्) भूमीला विशषत्वाने (जिन्व) जाणून घ्या. (विष्टेम्भेम) शरीरधारणासाठी योग्य तो आहार मिळविण्यासाठी (वृष्ट्या) वृष्टिविद्येद्वारे (वृष्टिम्) वृष्टी होण्याचे (पाऊस पडण्याचे वा पाडण्याविषयीचे) (जिन्व) ज्ञान मिळवा. (प्रवया) सांतिमय (अह्ना) प्रकाशविद्येद्वारे (अह:) दिवसाला (जिन्व) जाणून घ्या (अनुषा) दिनानंतर येणार्‍या (रात्र्या) रात्रीद्वारे (रात्रीम्) रात्रीचे (जिन्व) ज्ञान मिळवा (दिवस, रात्र यांचा क्रम, वेळ मर्यादा आदींविषयी शोध करा.) (उशिजा) कामना (वा दृढ तीव्र इच्छेद्वारे) (रसुभ्य:) अग्नी आदी आठ व सूं विषयीच्या विद्येद्वारे (बसून) अग्नी आदी वसूंना (जिन्व) जाणा आणि (प्रकेतेन) उत्तम (विज्ञानाद्वारे (आदित्येभ्य) आणि बारा महिन्यांविषयी जी विद्या आहे, त्या विद्येद्वारे (आदित्यान्) बाना महिन्यांचे ज्ञान (जिन्ब) मिळवा (ऋतू, कालगणना, संवत्सर आदींचे) पूर्ण व सत्य ज्ञान प्राप्त करा) ॥6॥

    भावार्थ

    भावार्थ - विद्वानांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी ज्याप्रमाणे पदार्थविद्येच्या विशेष ज्ञानाद्वारे स्वत: लाभान्वित व्हावे, त्याप्रमाणे मिळविलेले ज्ञान इतरांनाही द्यावे या त्यांनाही लाभान्वित करावे ॥6॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person with lustre, perform virtuous deed for happiness and control over material objects. Know religion, with the observance of enlightened noble justice. For investigation, get the light of truth, with the light of religion. Know mid-air as uniting the Earth with Heaven. Know Earth through geology. Know rain through the science of rain that nourishes the body. Know day with the beautiful science of light. Know night by the science of night that follows light. Know the eight Vasus through their desirable science. Know the Adityas (twelve months) intelligently with their science.

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    Meaning

    Love truth for the sake of truth with the light of truth in action. Protect Dharma for the promotion of Dharma with the observance of Dharma in practice. With research and advancement into knowledge of the nature of light, advance the knowledge of the regions of the sun. With research into the sky as the conjunction of earth and heaven, advance the knowledge of the sky for the sustenance of life. With knowledge of the earth and its relation with life, advance the knowledge of earth science for life. With the knowledge of rain and the sustenance of life by rain, advance the knowledge of water, evaporation and rain and promote rain for the sake of life. With the knowledge of the light of the day, know the light and day and advance the knowledge of cosmography. With the knowledge of night following the day, advance the knowledge of the day and night cycle. With the desire for the beauty of living, advance the knowledge of the Vasus (abodes of the sustenance of life) for the sake of the Vasus and better sustenance. With the knowledge of the planets and the sun in their respective orbits in the galaxy, advance the knowledge of the sun and stars in relation to planets and life.

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    Translation

    With the truth flooded with light, seek the truth. (1) With well-considered duty, seek your duty. (2) With continuous search for the heavenly light, seek that light. (3) With the research in mid-space, seek the mid-space. (4) With the earth supporting all, seek this earth. (5) With the rain sustaining the life, seek the rain. (6) With the brilliant day, seek the day. (7) With the night following the day, seek the night. (8) With the desire for riches, seek riches. (9) With the knowledge of the months, seek the months. (10)

    Notes

    Rasmina, with the ray or light. Pretina, प्रकृष्टविग्यानयुक्तेन, with well considered duty. Anvitya, अंवेषणेन, with continuous search or research. Sandhina, with that which supports all. Vistambhena, with that which sustains the life. Ргауауа, कांतिमता, with that which is brilliant. Anuya, या अनुयाति तया, with that which follows (the day). Usija, कामयमानेन, with full of desire for. Praketena, with the knowledge. Adityan, the months; the phases of sun in different months. It is astonishing that the commentators have interpreted all these above mentioned words as A, the food.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ বিদ্বদ্ভিঃ পদার্থবিদ্যা জ্ঞাতব্যেত্যাহ ॥
    বিদ্বান্দিগকে পদার্থবিদ্যা জানিবার উপায় করা উচিত, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে বিদ্বান্ পুরুষ ! তুমি (রশ্মিনা) কিরণগুলির দ্বারা (সত্যায়) বর্ত্তমানে হওয়া সূর্য্যের তুল্য নিত্য সুখ ও স্থূল পদার্থসকলের জন্য (সত্যম্) অব্যভিচারী কর্ম্মকে (জিন্ব) প্রাপ্ত হও, (প্রেতিনা) উত্তম জ্ঞানযুক্ত (ধর্মণা) ন্যায়ের আচরণের দ্বারা (ধর্মম্) ধর্মকে (জিন্ব) জান, (অন্বিত্যা) অন্বেষণের হেতু (দিবা) ধর্মের প্রকাশ দ্বারা (দিবম্) সত্যের প্রকাশকে (জিন্ব) প্রাপ্ত হও, (সন্ধিনা) সন্ধিরূপ (অন্তরিক্ষেণ) আকাশ হইতে (অন্তরিক্ষম্) অবকাশকে (জিন্ব) জান, (পৃথিব্যা) ভূগর্ভ বিদ্যার (প্রতিধিনা) সম্বন্ধের ফলে (পৃথিবীম্) ভূমিকে (জিন্ব) জান, (বিষ্টম্ভেন) শরীর ধারণ হেতু আহারের রস দ্বারা (বৃষ্ট্যা) বর্ষার বিদ্যা দ্বারা (বৃষ্টিম্) বর্ষাকে (জিন্ব) জান (প্রবয়া) কান্তিযুক্ত (অহ্না) প্রকাশের বিদ্যা দ্বারা (অহঃ) দিনকে (জিন্ব) জান, (অনুয়া) প্রকাশের পিছনে গমনকারিণী (রাত্র্যা) রাত্রির বিদ্যা দ্বারা (রাত্রিম্) রাত্রিকে (জিন্ব) জান, (উশিজা) কামনাগুলির দ্বারা (বসুভ্যঃ) অগ্নি আদি অষ্ট বসুর বিদ্যা দ্বারা (বসূন্) সেই অগ্নি আদি বসুকে (জিন্ব) জান এবং (প্রকেতেন) উত্তম বিজ্ঞান দ্বারা (আদিতেভ্যঃ) বার মাসের বিদ্যা দ্বারা (আদিত্যান্) বার মাসকে (জিন্ব) তত্ত্বস্বরূপ পূর্বক জান ॥ ৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- বিদ্বান্দিগের উচিত যে, যেমন পদার্থগুলির পরীক্ষা দ্বারা স্বয়ং পদার্থবিদ্যাকে জানিবে সেইরূপ অন্যের জন্যও উপদেশ করিবে ॥ ৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    র॒শ্মিনা॑ স॒ত্যায়॑ স॒ত্যং জি॑ন্ব॒ প্রেতি॑না॒ ধর্ম॑ণা॒ ধর্মং॑ জি॒ন্বান্বি॑ত্যা দি॒বা দিবং॑ জিন্ব স॒ন্ধিনা॒ন্তরি॑ক্ষেণা॒ন্তরি॑ক্ষং জিন্ব প্রতি॒ধিনা॑ পৃথি॒ব্যা পৃ॑থি॒বীং জি॑ন্ব বিষ্ট॒ম্ভেন॒ বৃষ্ট্যা॒ বৃষ্টিং॑ জিন্ব প্র॒বয়াऽহ্নাহ॑র্জিন্বানু॒য়া রাত্র্যা॒ রাত্রীং॑ জিন্বো॒শিজা॒ বসু॑ভ্যো॒ বসূ॑ঞ্জিন্ব প্রকে॒তেনা॑দি॒ত্যেভ্য॑ऽআদি॒ত্যাঞ্জি॑ন্ব ॥ ৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    রশ্মিনেত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । বিরাডভিকৃতিশ্ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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