अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 5/ मन्त्र 36
सूक्त - कौशिकः
देवता - मृत्यु
छन्दः - पञ्चपदातिशाक्वरातिजागतगर्भाष्टिः
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
जि॒तम॒स्माक॒मुद्भि॑न्नम॒स्माक॑म॒भ्यष्ठां॒ विश्वाः॒ पृत॑ना॒ अरा॑तीः। इ॒दम॒हमा॑मुष्याय॒णस्या॒मुष्याः॑ पु॒त्रस्य॒ वर्च॒स्तेजः॑ प्रा॒णमायु॒र्नि वे॑ष्टयामी॒दमे॑नमध॒राञ्चं॑ पादयामि ॥
स्वर सहित पद पाठजि॒तम् । अ॒स्माक॑म् । उत्ऽभि॑न्नम् । अ॒स्माक॑म् । अ॒भि । अ॒स्था॒म् । विश्वा॑: । पृत॑ना: । अरा॑ती: । इ॒दम् । अ॒हम् । आ॒मु॒ष्या॒य॒णस्य॑ । अ॒मुष्या॑: । पु॒त्रस्य॑ । वर्च॑: । तेज॑: । प्रा॒णम् । आयु॑: । नि । वे॒ष्ट॒या॒मि॒ । इ॒दम् । ए॒न॒म् । अ॒ध॒राञ्च॑म् । पा॒द॒या॒मि॒ ॥५.३६॥
स्वर रहित मन्त्र
जितमस्माकमुद्भिन्नमस्माकमभ्यष्ठां विश्वाः पृतना अरातीः। इदमहमामुष्यायणस्यामुष्याः पुत्रस्य वर्चस्तेजः प्राणमायुर्नि वेष्टयामीदमेनमधराञ्चं पादयामि ॥
स्वर रहित पद पाठजितम् । अस्माकम् । उत्ऽभिन्नम् । अस्माकम् । अभि । अस्थाम् । विश्वा: । पृतना: । अराती: । इदम् । अहम् । आमुष्यायणस्य । अमुष्या: । पुत्रस्य । वर्च: । तेज: । प्राणम् । आयु: । नि । वेष्टयामि । इदम् । एनम् । अधराञ्चम् । पादयामि ॥५.३६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 36
भाषार्थ -
(अस्माकम्) हमारी (जितम्१) विजय हुई है, (उद्भिन्नम्२) तोड़े-फोड़े किले आादि (अस्माकम्) हमारे हो गए हैं, (विश्वाः) सब (अरातीः) "शत्रुरूप (पृतनाः) सेनाओं के (अभि) अभिमुख, संमुख (अस्थाम्) मैं खड़ा हूं, (इदम् अहम्) यह मैं (आमुष्यायणस्य३) उस गोत्र के और (अमुष्याः) उस माता के (पुत्रस्य) पुत्र की (वर्चः) दीप्ति को (तेजः) तेज को, (प्राणम्) प्राण को, (आयुः) आयु को (निवेष्टयामि४) घेरता हूं, लपेटता हूं, (इदम् एनम्) इस को (अधराञ्चम् पादयामि५) नीचे गिरा देता हूं।
टिप्पणी -
[जितम् अर्थात् "जो हम ने जीता है वह हमारा हो गया है, जो दुर्ग आदि तोड़ा है हमारा हो गया है”। विश्वाः पृतनाः= सब सेनाएं। सार्वभौमशासक की विरोधिनी सब सेनाएं। वेदों के अनुसार माण्डलिक६ राजाओं का चुनाव प्रजाएं करती है, माण्डलिक राजा सम्राटों७ का चुनाव८ करते हैं, और सम्राट् मिलकर सार्वभौमशासक का, जिसे कि एकराट९ कहते हैं, चुनाव करते हैं, अथवा सब प्रकार की प्रजाएं सार्वभौमशासक का चुनाव मिलकर करती हैं। यदि किसी कारण माण्डलिक राजाओं या सम्राटों की सेनाएं विद्रोह में, सार्वभौमशासक के साथ युद्ध के लिये तत्पर हो जायें तब सार्वभौमशासक उन्हें परास्त कर उन की सम्पत्तियों को स्वाधीन कर लेता है, और विजेतारूप में परास्त सेनाओं के अभिमुख विना किसी भय के खड़ा होकर अपनी विजय प्रदर्शित करता है। २५-३५ मन्त्रों में "सपत्न" व्यक्तिरूप है, जो कि "तम् यः, यम्, द्वेष्टि" शब्दों द्वारा निर्दिष्ट हुआ है। मन्त्र ३६ में “सपत्न" सेनाओं के रूप में निर्दिष्ट किये हैं]। [१. जितम्= भावे क्तः । २. भिन्नम् = कर्मणि क्तः। ३. पुत्र का परिचय माता के नाम द्वारा भी वेदाभिमत है। आमुष्यायण द्वारा पुत्र के गोत्रनाम का कथन हुआ है। ४. वेष्ट वेष्टने (भ्वादिः)। ५. गमयामि। ६. माण्डलिकराजा को वरुण कहते हैं (यजु० ८।३७), व्रियते इति वरुणः, प्रजाओं द्वारा उस का वरण (Election चुनाव) होता है इस लिये माण्डलिक राजा वरुण है। ७. वृणोति इति वरुणः, माण्डलिक राजा सम्राट् का चुनाव करते हैं। इसलिये भी इन्हें वरुण कहा जाता है। ८. सम्राट् अर्थात् संयुक्त माण्डलिक राज्यों का प्रतिनिधि। सम् + राट् । साम्राज्य= संयुक्त राष्ट्रशासन (Federal government)। ९. अथर्व० (३।४।१), इसे जनराट् भी कहते हैं, (अथर्व० २०।२१।९)।]