अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 5/ मन्त्र 32
सूक्त - कौशिकः
देवता - विष्णुक्रमः
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा यथाक्षरं शक्वरी, अतिशक्वरी
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
विष्णोः॒ क्रमो॑ऽसि सपत्न॒हौष॑धीसंशितः॒ सोम॑तेजाः। ओष॑धी॒रनु॒ वि क्र॑मे॒ऽहमोष॑धीभ्य॒स्तं निर्भ॑जामो॒ यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः। स मा जी॑वी॒त्तं प्रा॒णो ज॑हातु ॥
स्वर सहित पद पाठविष्णो॑: । क्रम॑: । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽहा । ओष॑धीऽसंशित: । सोम॑ऽतेजा: । ओष॑धी: । अनु॑ । वि । क्र॒मे॒ । अ॒हम् । ओष॑धीभ्य: । तम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । स: । मा । जी॒वी॒त् । तम् । प्रा॒ण: । ज॒हा॒तु॒ ॥५.३२॥
स्वर रहित मन्त्र
विष्णोः क्रमोऽसि सपत्नहौषधीसंशितः सोमतेजाः। ओषधीरनु वि क्रमेऽहमोषधीभ्यस्तं निर्भजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः। स मा जीवीत्तं प्राणो जहातु ॥
स्वर रहित पद पाठविष्णो: । क्रम: । असि । सपत्नऽहा । ओषधीऽसंशित: । सोमऽतेजा: । ओषधी: । अनु । वि । क्रमे । अहम् । ओषधीभ्य: । तम् । नि: । भजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । स: । मा । जीवीत् । तम् । प्राण: । जहातु ॥५.३२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 32
भाषार्थ -
(विष्णोः) विष्णु के (क्रमः) पराक्रम वाला (असि) तू है (सपत्नहा) सपत्न का हनन करने वाला है, (ओषधीसंशितः) उग्र स्वभाव वाली ओषधियों में उग्र, (सोमतेजाः) और सोमसदृश तेज वाला तू है। (अहम्) मैं (ओषधीः अनु) ओषधियों में (विक्रमे) विक्रम अर्थात् पराक्रम वाला हूँ, (ओषषीभ्यः) ओषधियों से (तम्) उसे (निर्भजामः) हम भाग रहित करते हैं (यः) जो कि (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है, और (यम्) जिस के साथ (वयम् द्विष्मः) हम द्वेष करते हैं। (सः) वह (मा) न (जीवीत्) जीवित रहे, और (तम्) उसे (प्राणः) प्राण (जहातु) छोड़ जाय।
टिप्पणी -
[ओषधियां सौम्यस्वभाव वाली भी होती हैं, और उग्र स्वभाव वाली भी। मन्त्र में उग्रस्वभाव वाली ओषधियां अभिप्रेत हैं। सोम भी ओषधि है, जो कि ओषधियों में मुख्य ओषधि है। अतः सोम को ओषधियों का अधिपति अर्थात् स्वामी कहा है, यथा "सोमो वीरुधामधिपतिः" (अथर्व० ५॥२४॥७)। वीरुध् ओषधि है। सार्वभौमशासक सोमसदृश तेज वाला है, अतः वह अपने आप को वीरुधों अर्थात् ओषधियों का स्वामी कहता है। स्वामी होने से वह सपत्न को ओषधि के ग्रहण से वञ्चित कर सकता है। भागरहित कर सकता है। सपत्न के रोगी हो जाने पर, औषधि के न मिलने से, वह प्राणविहीन हो जाता है। शेष अभिप्राय (मन्त्र २५) के सदृश]।