अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 19
सूक्त - आत्मा
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
प्र त्वा॑मुञ्चामि॒ वरु॑णस्य॒ पाशा॒द्येन॒ त्वाब॑ध्नात्सवि॒ता सु॒शेवाः॑। ऋ॒तस्य॒ योनौ॑सुकृ॒तस्य॑ लो॒के स्यो॒नं ते॑ अस्तु स॒हसं॑भलायै ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । त्वा॒ । मु॒ञ्चा॒मि॒ । वरु॑णस्य । पाशा॑त् । येन॑ । त्वा॒ । अब॑ध्नात् । स॒वि॒ता । सु॒ऽशेवा॑: । ऋ॒तस्य॑ । योनौ॑ । सु॒ऽकृ॒तस्य॑ । लो॒के । स्यो॒नम् । ते॒ । अ॒स्तु॒ । स॒हऽसं॑भलायै ॥१.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र त्वामुञ्चामि वरुणस्य पाशाद्येन त्वाबध्नात्सविता सुशेवाः। ऋतस्य योनौसुकृतस्य लोके स्योनं ते अस्तु सहसंभलायै ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । त्वा । मुञ्चामि । वरुणस्य । पाशात् । येन । त्वा । अबध्नात् । सविता । सुऽशेवा: । ऋतस्य । योनौ । सुऽकृतस्य । लोके । स्योनम् । ते । अस्तु । सहऽसंभलायै ॥१.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 19
भाषार्थ -
(वरुणस्य) वरण करने योग्य श्रेष्ठ परमेश्वर सम्बन्धी (पाशात्) प्रेम-बन्धन से (त्वा) हे वधु ! तुझे (प्र मुञ्चामि) मैं छुड़ाता हूं, (येन) जिस प्रेम-बन्धन द्वारा (सुशेवाः) उत्तम सुखदाता (सविता) जन्मदाता पिता ने (त्वा) तुझे (अबध्नात्) बांधा हुआ था। (ऋतस्य) सत्य नियमों के (योनौ) मेरे गृह में, तथा (सुकृतस्य) सुकर्मियों के (लोके) समाज में, (सहसम्भलायै, ते) सम्यग्भाषी पति के साथ वर्तमान तेरे लिए (स्योनम्) सदा सुख (अस्तु) हो।
टिप्पणी -
[सुशेवाः=सु + शेवम् सुखनाम (निघं० ३।६)। योनिः गृहनाम (निघं० ३।४) संभल=सम् (सम्यक्) + भल (परिभाषणे), अर्थात् सम्यग्भाषी, प्रेमपूर्वक भाषण करनेवाला पति (मन्त्र ३१)। स्योनम् सुखनाम (निघं० ३।६)। सहसंभलायै= संभलेन सह वर्तते इति सहसंभला, तस्यै] [व्याख्या–वरुण अर्थात् संसार के सम्राट् परमेश्वर के पाश, संसार को बांधे हुए हैं। माता-पिता और सन्तानों का, पति और पत्नी का पारस्परिक प्रेमबन्धन भी एक पाश है जिस की कि रचना प्रभु ने सृष्टि में की हुई है। इस प्रेमपाश की सत्ता पशुओं, पक्षियों तथा कीट-पतङ्गों में भी दृष्टिगोचर हो रही है, जिस से प्राणिसृष्टि का सर्जन हो रहा है। वर कहता है कि हे वधु ! अभी तक तो इस प्रेमपाश द्वारा तेरे सुखद माता-पिता ने तुझे बांधा हुआ था, परन्तु अव से मैं तुझे अपने प्रेमपाश द्वारा बांधता हूं। इस प्रकार वर अपने हार्दिक प्रेम का विश्वास वधू को दिलाता है। साथ ही वर कहता है कि इस नए घर में सत्य का राज्य है। इस घर में तू सदा सुखपूर्वक रहेगी, और मैं सदा सम्यग्भाषी हो कर तुझे सुखदायी होऊंगा।