अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 58
सूक्त - आत्मा
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
प्र त्वा॑मुञ्चामि॒ वरु॑णस्य॒ पाशा॒द्येन॒ त्वाब॑ध्नात्सवि॒ता सु॒शेवाः॑। उ॒रुं लो॒कंसु॒गमत्र॒ पन्थां॑ कृणोमि॒ तुभ्यं॑ स॒हप॑त्न्यै वधु ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । त्वा॒ ॒। मु॒ञ्चा॒मि॒ । वरु॑णस्य । पाशा॑त् । येन॑ । त्वा॒ । अब॑ध्नात् । स॒वि॒ता॒ । सु॒ऽशेवा॑: । उ॒रुम् । लो॒कम् । सु॒गऽगम् । अत्र॑ । पन्था॑म् । कृ॒णोमि॑ । तुभ्य॑म् । स॒हऽप॑त्न्यै । व॒धु॒ ॥१.५८॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र त्वामुञ्चामि वरुणस्य पाशाद्येन त्वाबध्नात्सविता सुशेवाः। उरुं लोकंसुगमत्र पन्थां कृणोमि तुभ्यं सहपत्न्यै वधु ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । त्वा । मुञ्चामि । वरुणस्य । पाशात् । येन । त्वा । अबध्नात् । सविता । सुऽशेवा: । उरुम् । लोकम् । सुगऽगम् । अत्र । पन्थाम् । कृणोमि । तुभ्यम् । सहऽपत्न्यै । वधु ॥१.५८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 58
भाषार्थ -
(वधु) हे वधु ! (वरुणस्य) श्रेष्ठ परमेश्वर के (पाशात्) उस प्रेम पाश से (त्वा) तुझे (प्र मुञ्चामि) मैं वर प्रमुक्त करता हूं, छुड़ाता हूं, (येन) जिस-पाश द्वारा (सुशेवाः) उत्तम-सुखदायक (सविता) जन्मदाता तेरे पिता ने (त्वा) तुझे (अबघ्नात्) अपने साथ बांधा था। हे वधु ! (सहपत्न्यै) पति के साथ रहने वाली (तुभ्यम्) तेरे लिए (उरुम्) विस्तृत (लोकम्) तथा दर्शनीय अपने घर को और (अत्र) इस घर में (पन्थाम्) आने-जाने के मार्ग को (सुगम, कृणोमि) मैं पति सुगम अर्थात् बाधारहित करता हूं।
टिप्पणी -
[सुशेवाः=सु (उत्तम) + शेवम् सुखनाम (निघं० ३।६)। लोकम्= लोक दर्शने (स्वादि)] [व्याख्या – सन्तान के साथ माता-पिता का प्रेम स्वाभाविक होता है। यह प्रेम परमेश्वर द्वारा स्वाभाविक बनाया गया है। यह प्रेम परमेश्वरीय पाश है, बन्धन है, जिस के द्वारा गृहस्थ व्यक्ति परस्पर बंधे रहते हैं। सभी माता-पिता स्वभावतः अपनी सन्तानों के साथ प्रेम करते हैं। यही कारण है कि सन्तानें भी माता-पिता के प्रेमपाश में बंधी रहती हैं। विवाह के बाद कन्या जब पतिगृह में जाती है तब उसे अपने माता-पिता का स्वाभाविक प्रेमबन्धन ढीला करना पड़ता है। इस क्षति की पूर्ति, पति द्वारा डाले नए प्रेमपाश से ही हो सकती है। पति इसलिये अपनी पत्नी से कहता है कि जिस तेरे पिता ने तुझे अपने स्वाभाविक प्रेमपाश द्वारा अपने साथ बांधा हुआ था उस से मैं तुझे छुड़ाता हूं, और अपने प्रेमपाश में तुझे बांधता हूं।]