अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
सूक्त - सोम
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
आ॒च्छद्वि॑धानैर्गुपि॒तो बार्ह॑तैः सोमः रक्षि॒तः। ग्राव्णा॒मिच्छृ॒ण्वन्ति॑ष्ठसि॒न ते॑ अश्नाति॒ पार्थि॑वः ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒ऽच्छत्ऽवि॑धानै: । गु॒पि॒त: । बार्ह॑तै: । सो॒म॒ । र॒क्षि॒त: । ग्राव्णा॑म् । इत् । शृ॒ण्वन् । ति॒ष्ठ॒सि॒ । न । ते॒ । अ॒श्ना॒ति॒ । पार्थि॑व: ॥१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
आच्छद्विधानैर्गुपितो बार्हतैः सोमः रक्षितः। ग्राव्णामिच्छृण्वन्तिष्ठसिन ते अश्नाति पार्थिवः ॥
स्वर रहित पद पाठआऽच्छत्ऽविधानै: । गुपित: । बार्हतै: । सोम । रक्षित: । ग्राव्णाम् । इत् । शृण्वन् । तिष्ठसि । न । ते । अश्नाति । पार्थिव: ॥१.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(बार्हतैः) वृहती वेदवाणी में कथित (आच्छद्विधानैः) आच्छादन की विधियों द्वारा (सोम) हे वीर्य ! (गुपितः) तू अन्तर्लीन होता है, (रक्षितः) तथा सुरक्षित होता है। (ग्राव्णाम्) विद्वानों की [वाणियों को] (इत्) ही (शृण्वन्) सुनता हुआ (तिष्ठसि) तू [शरीर में] ठहरता है, (पार्थिवः) स्त्रीभोगी या पार्थिवभोगों में आसक्त पुरुष (ते) तेरा (अश्नाति, न) अशन् अर्थात् पान नहीं करता।
टिप्पणी -
[बार्हत= बृहती अर्थात् महती वेदवाणी में कथित। वेदवाणी बृहती है, यतः यह ईश्वरीय है, तथा मानुषसृष्टि के समकालीन है। बृहती = वाक् (श० ब्रा० १४।४।१।२२)। आच्छद्विधानैः= आच्छादन करने की विधियां, ढांकने की विधियां, सुरक्षित रखने की विधियां, जिन के द्वारा वीर्य शरीर में अच्छादित रहे वे विधियां। ग्राव्णाम् ="विद्वांसो हि ग्रावाणः" (श० ब्रा० ३।९।३।४)। तथा "आ वाँ ग्रावाणो अश्विना धीभिर्विप्रा अचुच्युवुः" (ऋ० ८।४२।४) में ग्रावाणः को विप्राः अर्थात् मेधावी कहा है, और धीभिः द्वारा इन्हें बुद्धिमान कहा है। व्याख्या- वेदोक्त आच्छादन की विधियों द्वारा अर्थात् बचाव के वैदिक साधनों और उपायों द्वारा, वीर्य शरीर में लीन रह सकता है, और सुरक्षित हो सकता है। शृङ्गारोत्पादक गीतों, तादृश कथाओं तथा वार्तालापों से शरीर में वीर्य स्थित नहीं रहता। इस की स्थिरता के लिये विद्वानों द्वारा वेदवाणियों का सतत श्रवण अपेक्षित है। स्त्रीभोगी तथा पार्थिवभोगों में लिप्त पुरुष वीर्याशन अर्थात् सोमपान नहीं कर सकता।