अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
सूक्त - आत्मा
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
सोमो॑वधू॒युर॑भवद॒श्विना॑स्तामु॒भा व॒रा। सू॒र्यां यत्पत्ये॒ शंस॑न्तीं॒ मन॑सासवि॒ताद॑दात् ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑: । व॒धू॒ऽयु: । अ॒भ॒व॒त् । अ॒श्विना॑ । आ॒स्ता॒म् । उ॒भा । व॒रा । सू॒र्याम् । यत् । पत्ये॑ । शंस॑न्तीम् । मन॑सा । स॒वि॒ता । अ॒द॒दा॒त् ॥१.९॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमोवधूयुरभवदश्विनास्तामुभा वरा। सूर्यां यत्पत्ये शंसन्तीं मनसासविताददात् ॥
स्वर रहित पद पाठसोम: । वधूऽयु: । अभवत् । अश्विना । आस्ताम् । उभा । वरा । सूर्याम् । यत् । पत्ये । शंसन्तीम् । मनसा । सविता । अददात् ॥१.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(सोमः) वीर्य या वीर्यवान् ब्रह्मचारी (वधूयुः) वधू की कामना वाला (अभवत्) हुआ (अश्विना = अश्विनौ) तब उस के माता-पिता (उभा= उभौ) दोनों (वरा =वरौ) कन्या का वरण, चुनाव करनेवाले (आस्ताम्) हुए, (यत्) जब कि (पत्ये) पति के लिए (शंसन्तीम्) चाहना करती हुई (सूर्याम्) सूर्या-ब्रह्मचारिणी को, (सविता) उत्पादक पिता ने (मनसा) मन से अर्थात मनन करके, विचारपूर्वक तथा प्रसन्नतापूर्वक (अददात्) कन्या प्रदान किया।
टिप्पणी -
[सोमः = सोम का अर्थ वीर्य हे [मन्त्र १]। जैसे मन्त्र ८ में अग्नि पद द्वारा रजस्वला ब्रह्मचारिणी का वर्णन हुआ है, वैसे मन्त्र ९ में सोम पद द्वारा वीर्यवान् वर का वर्णन हुआ है। वधूयुः = वधू + क्यच् (इच्छा) + उ (वाला)। वधू की इच्छा वाला। शंसन्तीम् = शंस् To praise, approve (आप्टे)। सविता = षु प्रसवे; षूङ् प्राणिगर्भविमोचने, अर्थात् उत्पादक पिता। अददात् = डुदाञ् दाने (जुहोत्यादि)। व्याख्या- आदित्य ब्रह्मचारी की सोमशक्ति में जब वधू की कामना जागरित हो तब उस के लिये सदृश पत्नी का चुनाव होना चाहिये, उस से पूर्व नहीं। सर्वोत्तम है यदि आदित्य ब्रह्मचारी की सोमशक्ति सदा सात्त्विक बनी रहे, और उस में वधू के लिए इच्छा जागरित न हो। ऐसे सात्त्विक ब्रह्मचारियों द्वारा जगत् का कल्याण हो जाता है। प्राणिजगत् रजस् और वीर्य के अर्थात् अग्नि और सोम के संयोग द्वारा उत्पन्न होता है, इसलिये प्राणिजगत् "अग्नीषोमीय" है।