अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 42
सूक्त - आत्मा
देवता - सोम
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
आ॒शास॑मानासौमन॒सं प्र॒जां सौभा॑ग्यं र॒यिम्। पत्यु॒रनु॑व्रता भू॒त्वा संन॑ह्यस्वा॒मृता॑य॒ कम् ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒ऽशासा॑ना । सौ॒म॒न॒सम् । प्र॒ऽजाम् । सौभा॑ग्यम् । र॒यिम् । पत्यु॑: । अनु॑ऽव्रता । भू॒त्वा । सम् । न॒ह्य॒स्व॒ । अ॒मृता॑य । कम् ॥१.४२॥
स्वर रहित मन्त्र
आशासमानासौमनसं प्रजां सौभाग्यं रयिम्। पत्युरनुव्रता भूत्वा संनह्यस्वामृताय कम् ॥
स्वर रहित पद पाठआऽशासाना । सौमनसम् । प्रऽजाम् । सौभाग्यम् । रयिम् । पत्यु: । अनुऽव्रता । भूत्वा । सम् । नह्यस्व । अमृताय । कम् ॥१.४२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 42
भाषार्थ -
(सौमनसम्) मन की प्रसन्नता, (प्रजाम्) उत्तम सन्तान, (सौभाग्यम्) उत्तम भगों की सत्ता (रयिम्) तथा धन को (आशासाना) चाहती हुई हे वधू! तू (पत्युः) पति के (अनुव्रता) अनुकूल व्रतों तथा कर्मों को करने वाली (भूत्वा) हो कर (अमृताय) मोक्ष या अनश्वर परमेश्वर की प्राप्ति के लिए (सं नह्यस्व) संनद्ध हो जा, तय्यार हो जा।
टिप्पणी -
[अनुव्रता; व्रतम् कर्मनाम (निघं० २।१), अथवा सत्याचरणादि व्रत। आशासाना=आङः शासु इच्छायाम् (अदादिः)] [व्याख्या—परस्पर की प्रसन्नता और खुशी का राज्य, गृह में पत्नी पर अधिक निर्भर करता है। यदि पत्नी कलह प्रिया और कटुभाषिणी होगी तो गृहजीवन में सदा दुःख और क्लेश का ही राज्य होगा। अतः पत्नी सदा सौमनस चाहा करे। पत्नी सदा उत्तम सन्तानें चाहे। जाः अपत्यम् (निरु० ६।२।९); प्रजाः=प्रकृष्ट अपत्य। माता के विचारों, व्यवहारों तथा संस्कारों का प्रभाव बच्चों पर अधिक हुआ करता है। इसलिये माता अपने मन में बच्चों को प्रकृष्ट बनाने की भावना सदा जागरित रखे। बच्चा जब गर्भ में ही हो तब भी माता के मन में यह भावना सदा जागरित रहे। तथा बच्चा जब जन्म पा ले तब और भी माता के मन में यह भावना जागरित रहनी चाहिये। पत्नी उत्तम भगों को सदा चाहे। उत्तमऐश्वर्य, उत्तमधर्म, उत्तमयश, उत्तमश्री, उत्तमज्ञान और उत्तमवैराग्य,-इन की प्राप्ति सौभाग्य है। ऐश्वर्य आदि उत्तम भी होते हैं और अनुत्तम भी। सुपथ द्वारा उपार्जित ऐश्वर्य आदि उत्तम है और कुपथ द्वारा उपार्जित अनुत्तम। श्रद्धापूर्वक किया गया धर्म उत्तम है और लोक प्रशंसा के लिए किया गया अनुत्तम। त्याग, तपस्या, परोपकार, दान आदि द्वारा प्राप्त यश उत्तम है, और परनिन्दा, धोखेबाजी द्वारा प्राप्त अपयश अनुत्तम। ज्ञानवृद्धि के लिए प्राप्त ज्ञान उत्तम है, विवाद के लिए प्राप्त ज्ञान अनुत्तम। मोह-ममता विहीन वैराग्य उत्तम है छद्मवेशी वैराग्य अनुत्तम। भद्रवस्त्रों में श्री अर्थात् शोभा उत्तम है, और चित्ताकर्षक वेशभूषा में अनुत्तम। पति और पत्नी के व्रतों और कर्मों में यदि परस्पर अनुकूलता हो तो गृहजीवन अधिक सुखी हो जाता है। इस लिये मन्त्र में “पत्युरनुव्रता भूत्वा" कहा है। पत्नी गृहस्थजीवन में, गृहस्थ के ऐहलौकिक कृत्यों के साथ साथ मोक्षकृत्यों के लिए भी प्रसन्नतापूर्वक प्रयत्न करती रहे। गृहस्थधर्म में प्रतिपादित कर्त्तव्यों का पालन यदि भक्ति, श्रद्धा और निःस्पृहता तथा फलत्याग की भावना से किया जाये तो इस से पत्नी मोक्ष की ओर अग्रसर हो जाती है।]