अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 32
सूक्त - आत्मा
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
इ॒हेद॑साथ॒ नप॒रो ग॑माथे॒मं गा॑वः प्र॒जया॑ वर्धयाथ। शुभं॑ यतीरु॒स्रियाः॒ सोम॑वर्चसो॒विश्वे॑ दे॒वाः क्र॑न्नि॒ह वो॒ मनां॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ह । इत् । अ॒सा॒थ॒ । न । प॒र: । ग॒मा॒थ॒ । इ॒मम् । गा॒व॒: । प्र॒ऽजया॑ । व॒र्ध॒नया॒थ॒ । शुभ॑म् । य॒ती॒: । उ॒स्रिया॑: । सोम॑ऽवर्चस: । विश्वे॑ । दे॒वा: । क्रन् । इ॒ह । व॒: । मनां॑सि ॥१.३२॥
स्वर रहित मन्त्र
इहेदसाथ नपरो गमाथेमं गावः प्रजया वर्धयाथ। शुभं यतीरुस्रियाः सोमवर्चसोविश्वे देवाः क्रन्निह वो मनांसि ॥
स्वर रहित पद पाठइह । इत् । असाथ । न । पर: । गमाथ । इमम् । गाव: । प्रऽजया । वर्धनयाथ । शुभम् । यती: । उस्रिया: । सोमऽवर्चस: । विश्वे । देवा: । क्रन् । इह । व: । मनांसि ॥१.३२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 32
भाषार्थ -
(गावः) हे गौओ! (इह) इस घर में (असाथ, इत्) सदा रहो, (परः) इस घर से परे (न, गमाथ) न जाओ। (प्रजया) सन्तानों द्वारा (इयम्) इस गृहपति को (वर्धयाथ) बढ़ाती रहो। (शुभम्) शोभायुक्त गोशाला में (यतीः) हे गौओ! तुम जाओ, (उस्रियाः) सूर्य की किरणों के सदृश शुद्ध, तथा (सोमवर्चसः) दुग्धरूपी तेज वाली तुम होओ। (विश्वे देवाः) घर के सब देव अर्थात् मातृदेव, पितृदेव आदि (इह) इस घर में (वः) तुम्हारे (मनांसि) मनों को (क्रन्) प्रसन्न करें।
टिप्पणी -
[उस्रियाः, उस्रः=वसतीति उस्रः=रश्मिः (उणा० २।१३, महर्षि दयानन्द)। उस्रिया इति गोनाम (निरु० ४।३।१९); तथा “वीतं पातं पयः उस्रियायाः" (ऋ० १।१५३।४) उस्रा= उस्राविणोऽस्यां भोगाः (निरु० ४।३।१९)=उत्+स्रु गतौ, जिस से कि दूध स्रवित होता है। सोम=दूध। यथा “अनूपे गोमान् गोभिरक्षाः सोमो दुग्धाभिरक्षाः" (ऋ० ९।१०७।९) में, दोही गई गौओं से सोम अर्थात् दूध क्षरित होता है, ऐसा कहा है] व्याख्या—गृहस्थी को घर में गौएं रखनी चाहियें। दूध से छुटी गौओं को पराये हाथ बेचना न चाहिये। गौएं निज सन्तानों अर्थात् बछड़े बछड़ियों द्वारा गृहपति को और गृहपति की सन्तानों को दूध, घृत देकर बढ़ाती हैं। गौओं की गोशाला सुन्दर और शोभायुक्त होनी चाहिये। इस से गौएं स्वस्थ तथा प्रसन्न रहती हैं। उन्हें स्नान आदि द्वारा शुद्ध और साफ रखना चाहिये जैसे कि सूर्य की किरणें शुद्ध और साफ होती हैं। घर के बुजुर्गों को चाहिये कि सेवा द्वारा गौओं के मनों को सदा प्रसन्न रखें।]