अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 50
सूक्त - आत्मा
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
गृ॒ह्णामि॑ तेसौभग॒त्वाय॒ हस्तं॒ मया॒ पत्या॑ ज॒रद॑ष्टि॒र्यथासः॑। भगो॑ अर्य॒मा स॑वि॒तापुर॑न्धि॒र्मह्यं॑ त्वादु॒र्गार्ह॑पत्याय दे॒वाः ॥
स्वर सहित पद पाठगृ॒ह्णामि॑ । ते॒ । सौ॒भ॒ग॒ऽत्वाय॑ । हस्त॑म् । मया॑ । पत्या॑ । ज॒रतऽअ॑ष्टि: । यथा॑ । अस॑: । भग॑: । अ॒र्य॒मा । स॒वि॒ता । पुर॑म्ऽधि: । मह्म॑म् । त्वा॒ । अ॒दु॒: । गार्ह॑ऽपत्याय । दे॒वा: ॥१.५०॥
स्वर रहित मन्त्र
गृह्णामि तेसौभगत्वाय हस्तं मया पत्या जरदष्टिर्यथासः। भगो अर्यमा सवितापुरन्धिर्मह्यं त्वादुर्गार्हपत्याय देवाः ॥
स्वर रहित पद पाठगृह्णामि । ते । सौभगऽत्वाय । हस्तम् । मया । पत्या । जरतऽअष्टि: । यथा । अस: । भग: । अर्यमा । सविता । पुरम्ऽधि: । मह्मम् । त्वा । अदु: । गार्हऽपत्याय । देवा: ॥१.५०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 50
भाषार्थ -
हे वधु ! (सौभगत्वाय) अपने सौभाग्य के लिए (ते) तेरा (हस्तम्, गृह्णामि) पाणिग्रहण मैं करता हूं, (मया, पत्या) मुझ पति के साथ (यथा) ताकि (जरदष्टिः) जरावस्था तक पहुंचने वाली (असः) तू हो। (भगः) मैं ६ भगों से सम्पन्न हूं, (अर्यमा) जगत् के स्वामी का ज्ञाता, श्रेष्ठों का मान करने वाला, श्रेष्ठ मन वाला तथा न्यायकारी हूं, (सविता) तेरा प्रेरक हूं, (पुरंधिः) तथा बहुत बुद्धिमान् हूं। (देवाः) उपस्थित देवों और देवियों ने (गार्हपत्याय) गृहपति के कर्तव्यों के पालन के लिए, (मह्यम्) मेरे लिये (त्वा) तुझे (अदुः) दिया है।
टिप्पणी -
[भग ६ हैं (अथर्व० १४।१।४२)। पुरंधिः=बहुधीः (निरु० ६।३।१३)। मन्त्र ५१ में भग-और-सविता पाणिग्रहण करने वाला कहा है। तदनुसार भग, अर्यमा१, सविता, और पुरंधि के अर्थ पतिपरक किये हैं। देवाः=देवाश्च देव्यश्च, एक शेष "पुमान् स्त्रिया" (अष्टा० १।२।६७)] [व्याख्या - वर वधू को कहता है कि मैं अपने सौभाग्य के लिए तेरा पाणिग्रहण करता हूं। विना पत्नी के पुरुष का सौभाग्य नहीं बनता। वर्तमान रीतिरिवाज में पति के कारण पत्नी को सौभाग्यवती कहा जाता है। मन्त्र के अनुसार पत्नी के विना पति भी सौभाग्यवान् नहीं होता, पति उत्तम भगों का निवास नहीं बनता। "गार्हपत्याय" द्वारा सूचित किया है कि पत्नी के बिना पति गृहस्थाश्रमसम्बन्धी धर्मकृत्यों के अनुष्ठान के योग्य नहीं होता। पञ्चमहायज्ञ, दर्शपौर्णमास आदि कर्म पति पत्नी के सहयोग द्वारा ही होते हैं। अन्त में पति कहता है कि इन देवों और देवियों ने जोकि हमारे विवाह के साक्षी हैं- मेरे प्रति तुझे दिया है।] [१. अर्यमा (अथर्व० १४।१।३९)]