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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 13
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - मरुतो देवताः छन्दः - भुरिगब्रह्मी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    स्व॒राड॒स्युदी॑ची॒ दिङ्म॒रुत॑स्ते दे॒वाऽअधि॑पतयः॒ सोमो॑ हेती॒नां प्र॑तिध॒र्त्तैक॑वि॒ꣳशस्त्वा॒ स्तोमः॑ पृथि॒व्या श्र॑यतु॒ निष्के॑वल्यमु॒क्थमव्य॑थायै स्तभ्नातु वैरा॒जꣳसाम॒ प्रति॑ष्ठित्याऽअ॒न्तरि॑क्ष॒ऽऋष॑यस्त्वा प्रथम॒जा दे॒वेषु॑ दि॒वो मात्र॑या वरि॒म्णा प्र॑थन्तु विध॒र्त्ता चा॒यमधि॑पतिश्च॒ ते त्वा॒ सर्वे॑ संविदा॒ना नाक॑स्य पृ॒ष्ठे स्व॒र्गे लो॒के यज॑मानं च सादयन्तु॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒राडिति॑ स्व॒ऽराट्। अ॒सि॒। उदी॑ची। दिक्। म॒रुतः॑। ते॒। दे॒वाः। अधि॑पतय॒ इत्यधि॑ऽपतयः। सोमः॑। हे॒ती॒नाम्। प्र॒ति॒ध॒र्त्तेति॑ प्रतिऽध॒र्त्ता। एक॑विꣳश॒इत्येक॑ऽविꣳशः। त्वा॒। स्तोमः॑। पृ॒थि॒व्याम्। श्र॒य॒तु॒। निष्के॑वल्यम्। निःऽके॑वल्य॒मिति॒ निःऽके॑वल्यम्। उ॒क्थम्। अव्य॑थायै। स्त॒भ्ना॒तु॒। वै॒रा॒जम्। साम॑। प्रति॑ष्ठित्यै। प्रति॑स्थित्या॒ इति॒ प्रति॑ऽस्थित्यै। अ॒न्तरि॑क्षे। ऋष॑यः। त्वा॒। प्र॒थ॒म॒जा इति॑ प्रथम॒ऽजाः। दे॒वेषु॑। दि॒वः। मात्र॑या। व॒रि॒म्णा। प्र॒थ॒न्तु॒। वि॒ध॒र्त्तेति विऽध॒र्त्ता। च॒। अ॒यम्। अधि॑पति॒रित्यधि॑ऽपतिः। च॒। ते। त्वा॒। सर्वे॑। सं॒वि॒दा॒ना इति॑ सम्ऽविदा॒नाः। नाक॑स्य। पृ॒ष्ठे। स्व॒र्ग इति॑ स्वः॒ऽगे। लो॒के। यज॑मानम्। च॒। सा॒द॒य॒न्तु॒ ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वराडस्युदीच्य्दिङ्मरुतस्ते देवाऽअधिपतयः सोमो हेतीनाम्प्रतिधर्तैकविँशस्त्वा स्तोमः पृथिव्याँ श्रयतु निष्केवल्यमुक्थमव्यथायै स्तभ्नातु वैराजँ साम प्रतिष्ठित्याऽअन्तरिक्षऽऋषयस्त्वा प्रथमजा देवेषु दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथन्तु विधर्ता चायमधिपतिश्च ते त्वा सर्वे सँविदाता नाकस्य पृष्ठे स्वर्गे लोके यजमानञ्च सादयन्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्वराडिति स्वऽराट्। असि। उदीची। दिक्। मरुतः। ते। देवाः। अधिपतय इत्यधिऽपतयः। सोमः। हेतीनाम्। प्रतिधर्त्तेति प्रतिऽधर्त्ता। एकविꣳशइत्येकऽविꣳशः। त्वा। स्तोमः। पृथिव्याम्। श्रयतु। निष्केवल्यम्। निःऽकेवल्यमिति निःऽकेवल्यम्। उक्थम्। अव्यथायै। स्तभ्नातु। वैराजम्। साम। प्रतिष्ठित्यै। प्रतिस्थित्या इति प्रतिऽस्थित्यै। अन्तरिक्षे। ऋषयः। त्वा। प्रथमजा इति प्रथमऽजाः। देवेषु। दिवः। मात्रया। वरिम्णा। प्रथन्तु। विधर्त्तेति विऽधर्त्ता। च। अयम्। अधिपतिरित्यधिऽपतिः। च। ते। त्वा। सर्वे। संविदाना इति सम्ऽविदानाः। नाकस्य। पृष्ठे। स्वर्ग इति स्वःऽगे। लोके। यजमानम्। च। सादयन्तु॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 13
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে স্ত্রী ! যেমন (স্বরাট্) স্বয়ং প্রকাশমান (উদীচী) উত্তর (দিক্) দিক (অসি) হয় সেইরূপ (তে) তোমার পতি হউক, যে দিকের (মরুতঃ) বায়ু (দেবাঃ) দিব্যরূপ (অধিপতয়ঃ) অধিষ্ঠাতা সকল তাহাদের সদৃশ যে (একবিংশঃ) একুশ সংখ্যার পূরক (স্তোমঃ) স্তুতির সাধক (সোমঃ) চন্দ্র (হেতীনাম্) বজ্রের সমান বর্ত্তমান কিরণগুলির (প্রতিধর্ত্তা) ধারক পুরুষ (ত্বা) তোমাকে (পৃথিব্যাম্) ভূমিতে (শ্রয়তু) সেবন করুক্ (অব্যথায়ৈ) ইন্দ্রিয়সকলের ভয় হইতে রহিত তোমার জন্য (নিষ্কেবল্যম্) যাহাতে কেবল একটা স্বরূপের বর্ণনা হয় উহা (উক্থম) বলিবার যোগ্য বেদভাগ তথা (প্রতিষ্ঠিত্যৈ) প্রতিষ্ঠা হেতু (বৈরাজম্) বিরাট রূপের প্রতিপাদক (সাম) সামবেদের অংশ (স্তভ্নাতু) গ্রহণ করুক (চ) এবং যেমন তোমার মধ্যে (অন্তরিক্ষে) অবকাশে স্থিত (দেবেষু) ইন্দ্রিয় সকলের মধ্যে (প্রথমজাঃ) মুখ্য প্রসিদ্ধ (দিবঃ) জ্ঞানের (মাত্রয়া) অংশ দ্বারা (বরিম্ণা) আধিক্য সহ বর্ত্তমান (ঋষয়ঃ) বলবান প্রাণ, সেইরূপ (অয়ম্) এই সব প্রাণ সকলের (বিধর্ত্তা) বিবিধ শীতের ধারণকর্তা (চ) এবং (অধিপতিঃ) অধিষ্ঠাতা, (তে) তাহারা (সর্বে) সমস্ত এই বিষয়ে (সংবিদানাঃ) সম্যক্ বুদ্ধিমান বিদ্বান্ লোক প্রতিজ্ঞা দ্বারা (ত্বা) তোমাকে (প্রয়ত্নু) প্রসিদ্ধ করুক এবং (নাকস্য) উত্তম সুখরূপ লোকান্তরের (পৃষ্ঠে) উপর (স্বর্গে) সুখদায়ক (লোকে) লোকে (ত্বা) তোমাকে (চ) এবং (য়জমানম্) যজমান পুরুষকে (সাদয়ন্তু) স্থিত করুক ॥ ১৩ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন বিদ্বান্গণ আধার সহিত চন্দ্রাদি পদার্থ সকল এবং আধার সহিত প্রাণদেরকে যথাবৎ জানিয়া সংসারী কার্য্যে উপযুক্ত করিয়া সুখকে প্রাপ্ত হয় । সেইরূপ অধ্যাপক স্ত্রী পুরুষ কন্যা-পুত্রাদিগকে বিদ্যাগ্রহণ হেতু উপযুক্ত করিয়া আনন্দিত করুক ॥ ১৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - স্ব॒রাড॒স্যুদী॑চী॒ দিঙ্ম॒রুত॑স্তে দে॒বাऽঅধি॑পতয়ঃ॒ সোমো॑ হেতী॒নাং প্র॑তিধ॒র্ত্তৈক॑বি॒ꣳশস্ত্বা॒ স্তোমঃ॑ পৃথি॒ব্যাᳬं শ্র॑য়তু॒ নিষ্কে॑বল্যমু॒ক্থমব্য॑থায়ৈ স্তভ্নাতু । বৈরা॒জꣳসাম॒ প্রতি॑ষ্ঠিত্যাऽঅ॒ন্তরি॑ক্ষ॒ऽঋষ॑য়স্ত্বা প্রথম॒জা দে॒বেষু॑ দি॒বো মাত্র॑য়া বরি॒ম্ণা প্র॑থন্তু বিধ॒র্ত্তা চা॒য়মধি॑পতিশ্চ॒ তে ত্বা॒ সর্বে॑ সংবিদা॒না নাক॑স্য পৃ॒ষ্ঠে স্ব॒র্গে লো॒কে য়জ॑মানং চ সাদয়ন্তু ॥ ১৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - স্বরাডসীত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । মরুতো দেবতাঃ । পূর্বস্য ভুরিগ্ব্রাক্ষী ত্রিষ্টুপ্ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ । প্রথমজা ইত্যুত্তরস্য ব্রাহ্মী বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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