यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 12
ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः
देवता - आदित्या देवताः
छन्दः - निचृद्ब्रह्मी जगती, ब्रह्मी बृहती
स्वरः - निषादः, मध्यमः
6
स॒म्राड॑सि प्र॒तीची॒ दिगा॑दि॒त्यास्ते॑ दे॒वाऽअधि॑पतयो॒ वरु॑णो हेती॒नां प्र॑तिध॒र्त्ता स॑प्तद॒शस्त्वा॒ स्तोमः॑ पृथि॒व्याश्र॑यतु मरुत्व॒तीय॑मु॒क्थमव्य॑थायै स्तभ्नातु वैरू॒पꣳ साम॒ प्रति॑ष्ठित्याऽअ॒न्तरि॑क्ष॒ऽऋष॑यस्त्वा प्रथम॒जा दे॒वेषु॑ दि॒वो मात्र॑या वरि॒म्णा प्र॑थन्तु विध॒र्त्ता चा॒यमधि॑पतिश्च॒ ते त्वा॒ सर्वे॑ संविदा॒ना नाक॑स्य पृ॒ष्ठे स्व॒र्गे लो॒के यज॑मानं च सादयन्तु॥१२॥
स्वर सहित पद पाठस॒म्राडिति॑ स॒म्ऽराट्। अ॒सि॒। प्र॒तीची॑। दिक्। आ॒दि॒त्याः। ते॒। दे॒वाः। अधि॑पतय॒ इत्यधि॑ऽपतयः। वरु॑णः। हे॒ती॒नाम्। प्र॒ति॒ध॒र्त्तेति॑ प्रतिऽध॒र्त्ता। स॒प्त॒द॒श इति॑ सप्तऽद॒शः। त्वा॒। स्तोमः॑। पृ॒थि॒व्याम्। श्र॒य॒तु॒। म॒रु॒त्व॒तीय॑म्। उ॒क्थम्। अव्य॑थायै। स्त॒भ्ना॒तु॒। वै॒रू॒पम्। साम॑। प्रति॑ष्ठित्यै। प्रति॑स्थित्या॒ इति॒ प्रति॑ऽस्थित्यै। अ॒न्तरि॑क्षे। ऋष॑यः। त्वा॒। प्र॒थ॒म॒जा इति॑ प्रथम॒ऽजाः। दे॒वेषु॑। दि॒वः। मात्र॑या। व॒रि॒म्णा। प्र॒थ॒न्तु॒। वि॒ध॒र्त्तेति॑ विऽध॒र्त्ता। च॒। अ॒यम्। अधि॑पति॒रित्यधि॑ऽपतिः। च॒। ते। त्वा॒। सर्वे॑। सं॒वि॒दा॒ना इति॑ सम्ऽविदा॒नाः। नाक॑स्य। पृ॒ष्ठे। स्व॒र्ग इति॑ स्वः॒ऽगे। लो॒के। यज॑मानम्। च॒। सा॒द॒य॒न्तु॒ ॥१२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सम्राडसि प्रतीची दिगादित्यास्ते देवाऽअधिपतयो वरुणो हेतीनाम्प्रतिधर्ता सप्तदशस्त्वा स्तोमः पृथिव्याँ श्रयतु मरुत्वतीयमुक्थमव्यथायै स्तभ्नातु वैरूपँ साम प्रतिष्ठित्याऽअन्तरिक्षऽऋषयस्त्वा प्रथमजा देवेषु दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथन्तु विधर्ता चायमधिपतिश्च ते त्वा सर्वे सँविदाता नाकस्य पृष्ठे स्वर्गे लोके यजमानञ्च सादयन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठ
सम्राडिति सम्ऽराट्। असि। प्रतीची। दिक्। आदित्याः। ते। देवाः। अधिपतय इत्यधिऽपतयः। वरुणः। हेतीनाम्। प्रतिधर्त्तेति प्रतिऽधर्त्ता। सप्तदश इति सप्तऽदशः। त्वा। स्तोमः। पृथिव्याम्। श्रयतु। मरुत्वतीयम्। उक्थम्। अव्यथायै। स्तभ्नातु। वैरूपम्। साम। प्रतिष्ठित्यै। प्रतिस्थित्या इति प्रतिऽस्थित्यै। अन्तरिक्षे। ऋषयः। त्वा। प्रथमजा इति प्रथमऽजाः। देवेषु। दिवः। मात्रया। वरिम्णा। प्रथन्तु। विधर्त्तेति विऽधर्त्ता। च। अयम्। अधिपतिरित्यधिऽपतिः। च। ते। त्वा। सर्वे। संविदाना इति सम्ऽविदानाः। नाकस्य। पृष्ठे। स्वर्ग इति स्वःऽगे। लोके। यजमानम्। च। सादयन्तु॥१२॥
विषय - পুনস্তৌ কীদৃশৌ স্যাতামিত্যাহ ॥
পুনঃ সেই সব স্ত্রী পুরুষ কেমন হইবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ -
পদার্থঃ- হে স্ত্রী ! তুমি (প্রতীচী) পশ্চিম (দিক্) দিকের সমান (সম্রাট) সম্যক্ প্রকাশিত (অসি) হও, সেই (তে) তোমার পতি (আদিত্যাঃ) বিদ্যুৎ দ্বারা যুক্ত প্রাণ বায়ু (দেশঃ) দিব্য সুখদাতা (অধিপতয়ঃ) স্বামিদিগের তুল্য (অয়ম্) এই (সপ্তদশঃ) সতের সংখ্যার পূরক (চ) এবং (স্তোমঃ) স্তুতির যোগ্য (বরুণঃ) জলসমুদায়ের সমান (হেতীনাম্) বিদ্যুৎসমুদয়ের (প্রতিবর্ত্তা) ধারণকর্তা (অধিপতিঃ) স্বামী (ত্বা) তোমাকে (পৃথিব্যাম্) পৃথিবীতে (শ্রবতু) সেবন করিবে, (অব্যথায়ৈ) স্বরূপে অচল তোমার জন্য (মরুত্বতীয়ম্) বহু মনুষ্যের ব্যাখ্যানের সহিত যুক্ত (উক্থম্) কথনযোগ্য বেদবচন তথা (প্রতিষ্ঠিত্যৈ) প্রতিষ্ঠা হেতু (বৈরূপম্) বিবিধ রূপের ব্যাখ্যানের সহিত যুক্ত (সাম) সামবেদকে (স্তভ্নাতু) গ্রহণ করিবে এবং যে (দিবঃ) প্রকাশের (মাত্রয়া) ভাগ দ্বারা (বরিম্ণা) বহুত্বের সঙ্গে (অন্তরিক্ষে) আকাশে (প্রথমজাঃ) বিস্তারযুক্ত কারণ দ্বারা উৎপন্ন (ঋষয়ঃ) গতিযুক্ত বায়ু (দেবেষু) দানের হেতু অবয়বসকলে বর্ত্তমান সেইরূপ (ত্বা) তোমাকে বিদ্বান্গণ (প্রথন্তু) প্রসিদ্ধ উপদেশ করুন । যেমন, (বিধর্ত্তা) যে বিবিধ রত্নের ধারক (চ) ইহাও (অধিপতিঃ) অধ্যক্ষ স্বামী প্রজাদিগকে সুখে রাখে সেইরূপ (তে) তোমার মধ্যে (সর্বে) সকল (সংবিদানাঃ) উত্তম প্রকার জ্ঞান প্রাপ্ত (ত্বা) তোমাকে (চ) এবং (য়জমানম্) বিদ্বান্দিগের সেবক পুরুষকে (নাকস্য) দুঃখরহিত দেশের (পৃষ্ঠে) এক অংশে (স্বর্গে) সুখপ্রাপক (লোকে) দর্শনীয় স্থানে (সাদয়ন্তু) স্থাপিত করুন ॥ ১২ ॥
भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন বিদ্বান্গণ পশ্চিম দিক্ এবং তথাকার পদার্থ সকলকে অন্যকে জানাইয়া থাকেন সেইরূপ স্ত্রী-পুরুষ নিজের সন্তানাদিকে বিদ্যাদি গুণগুলি দ্বারা সুশোভিত করিবে ॥ ১২ ॥
मन्त्र (बांग्ला) - স॒ম্রাড॑সি প্র॒তীচী॒ দিগা॑দি॒ত্যাস্তে॑ দে॒বাऽঅধি॑পতয়ো॒ বর॑ুণো হেতী॒নাং প্র॑তিধ॒র্ত্তা স॑প্তদ॒শস্ত্বা॒ স্তোমঃ॑ পৃথি॒ব্যাᳬंশ্র॑য়তু মরুত্ব॒তীয়॑মু॒ক্থমব্য॑থায়ৈ স্তভ্নাতু বৈরূ॒পꣳ সাম॒ প্রতি॑ষ্ঠিত্যাऽঅ॒ন্তরি॑ক্ষ॒ऽঋষ॑য়স্ত্বা প্রথম॒জা দে॒বেষু॑ দি॒বো মাত্র॑য়া বরি॒ম্ণা প্র॑থন্তু বিধ॒র্ত্তা চা॒য়মধি॑পতিশ্চ॒ তে ত্বা॒ সর্বে॑ সংবিদা॒না নাক॑স্য পৃ॒ষ্ঠে স্ব॒র্গে লো॒কে য়জ॑মানং চ সাদয়ন্তু ॥ ১২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - সম্রাডসীত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । আদিত্যা দেবতাঃ । পূর্বস্য ভুরিগ্ ব্রাহ্মী জগতী ছন্দঃ । নিষাদঃ স্বরঃ । প্রথমজা ইত্যুত্তরস্য ব্রাহ্মী বৃহতী ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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