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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 9
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - विराड ब्राह्मी जगती स्वरः - निषादः
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    त्रि॒वृद॑सि त्रि॒वृते॑ त्वा प्र॒वृद॑सि प्र॒वृते॑ त्वा वि॒वृद॑सि वि॒वृते॑ त्वा स॒वृद॑सि स॒वृते॑ त्वाक्र॒मोऽस्याक्र॒माय॑ त्वा संक्र॒मोसि संक्र॒माय॑ त्वोत्क्र॒मोऽस्युत्क्र॒माय॒ त्वोत्क्रा॑न्तिर॒स्युत्क्रा॑न्त्यै॒ त्वाऽधिपतिनो॒र्जोर्जं॑ जिन्व॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रि॒वृदिति॑ त्रि॒ऽवृऽत्। अ॒सि॒। त्रि॒वृत॒ इति॑ त्रि॒ऽवृते॑। त्वा॒। प्र॒वृदिति॑ प्र॒ऽवृत्। अ॒सि॒। प्र॒वृत॒ इति॑ प्र॒ऽवृते॑। त्वा॒। वि॒वृदिति॑ वि॒ऽवृत्। अ॒सि॒। वि॒वृत॒ इति॑ वि॒ऽवृते॑। त्वा॒। स॒वृदिति॑ स॒ऽवृत्। अ॒सि॒। स॒वृत॒ इति॑ स॒ऽवृते॑। त्वा॒। आ॒क्र॒म इत्या॑ऽक्र॒मः। अ॒सि॒। आ॒क्र॒मायेत्या॑ऽक्र॒माय॑। त्वा॒। सं॒क्र॒म इति॑ सम्ऽक्र॒मः। अ॒सि॒। सं॒क्र॒मायेति॑ सम्ऽक्र॒माय॑। त्वा॒। उ॒त्क्र॒म इत्यु॑त्ऽक्र॒मः। अ॒सि॒। उ॒त्क्र॒मायेत्यु॑त्ऽक्र॒माय॑। त्वा॒। उत्क्रा॑न्ति॒रित्युत्ऽक्रा॑न्तिः। अ॒सि॒। उत्क्रा॑न्त्या॒ इत्युत्ऽक्रा॑न्त्यै। त्वा॒। अधि॑पति॒नेत्यधि॑ऽपतिना। ऊ॒र्जा। ऊर्ज॑म्। जि॒न्व ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रिवृदसि त्रिवृते त्वा प्रवृदसि प्रवृते त्वा विवृदसि विवृते त्वा सवृदसि सवृते त्वाक्रमोस्याक्रमाय त्वा सङ्क्रमोसि सङ्क्रमाय त्वोत्क्रमोस्युत्क्रमाय त्वोत्क्रान्तिरस्युत्क्रान्त्यै त्वाधिपतिनोर्जार्जञ्जिन्व ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्रिवृदिति त्रिऽवृऽत्। असि। त्रिवृत इति त्रिऽवृते। त्वा। प्रवृदिति प्रऽवृत्। असि। प्रवृत इति प्रऽवृते। त्वा। विवृदिति विऽवृत्। असि। विवृत इति विऽवृते। त्वा। सवृदिति सऽवृत्। असि। सवृत इति सऽवृते। त्वा। आक्रम इत्याऽक्रमः। असि। आक्रमायेत्याऽक्रमाय। त्वा। संक्रम इति सम्ऽक्रमः। असि। संक्रमायेति सम्ऽक्रमाय। त्वा। उत्क्रम इत्युत्ऽक्रमः। असि। उत्क्रमायेत्युत्ऽक्रमाय। त्वा। उत्क्रान्तिरित्युत्ऽक्रान्तिः। असि। उत्क्रान्त्या इत्युत्ऽक्रान्त्यै। त्वा। अधिपतिनेत्यधिऽपतिना। ऊर्जा। ऊर्जम्। जिन्व॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 9
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে মনুষ্য ! তুমি (ত্রিবৃৎ) সত্ত্বগুণ, রজোগুণ ও তমোগুণ সহ বর্ত্তমান অব্যক্ত কারণের জ্ঞাতা (অসি) হও, সেই (ত্রিবৃত্তে) তিন গুণে যুক্ত কারণের জ্ঞানের জন্য (ত্বা) তোমাকে, তুমি (প্রবৃৎ) যে কার্য্যরূপ দ্বারা প্রবৃত্ত সংসারের জ্ঞাতা (অসি) হও, সেই (প্রবৃতে) কার্য্যরূপ সংসারকে জানিবার জন্য (ত্বা) তোমাকে, তুমি (বিবৃৎ) যে বিবিধ প্রকার দ্বারা প্রবৃত্ত জগতের উপকারকর্ত্তা (অসি) হও, সেই (বিবৃতে) জগদুপকারের জন্য (ত্বা) তোমাকে, তুমি (সবৃৎ) যে সমান ধর্ম সহ বর্ত্তমান পদার্থ সমূহের জ্ঞাতা (অসি) হও সেই (সবৃতে) সাধর্ম্য পদার্থ সকলের জ্ঞান হেতু (ত্বা) তোমাকে, তুমি (আক্রমঃ) উত্তম প্রকার পদার্থগুলির থাকিবার স্থান অন্তরিক্ষের জ্ঞাতা (অসি) হও, সেই (আক্রমায়) অন্তরিক্ষকে জানিবার জন্য (ত্বা) তোমাকে, তুমি (সক্রমঃ) সম্যক্ পদার্থসকলকে জান সেই (সংক্রমায়) পদার্থ জ্ঞান হেতু (ত্বা) তোমাকে, তুমি (উৎক্রমঃ) ঊপর মেঘ মন্ডলের গতির জ্ঞাতা (অসি) হও, সেই (উৎক্রমায়) মেঘমন্ডলের গতি জানিবার জন্য (ত্বা) তোমাকে তথা হে স্ত্রী! যেহেতু তুমি (উৎক্রান্তিঃ) সম বিষম পদার্থ সমূহের উল্লঙ্ঘন হেতু বিদ্যার জ্ঞাতা (অসি) হও, সেই (উৎক্রান্তৈ) গমন-বিদ্যা জানিবার জন্য (ত্বা) তোমাকে সর্ব প্রকারে গ্রহণ করি (অধিপতিন) নিজ স্বামী সহ বর্ত্তমান তুমি (ঊর্জা) পরাক্রম দ্বারা (ঊর্জম্) বলকে (জিন্ব) প্রাপ্ত হও ॥ ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । পৃথিবী আদি পদার্থ সকলের গুণ, কর্মও স্বভাব না জানিয়া কেহ বিদ্বান্ হইতে পারে না এইজন্য কার্য্য কারণ উভয়কে যথাবৎ জানিয়া মনুষ্যদিগের জন্য উপদেশ করা উচিত । যেমন অধ্যক্ষ সহ সেনা বিজয় প্রাপ্ত করে সেইরূপ স্বীয় পতি সহ স্ত্রী সকল দুঃখকে জিতিয়া লয় ॥ ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ত্রি॒বৃদ॑সি ত্রি॒বৃতে॑ ত্বা প্র॒বৃদ॑সি প্র॒বৃতে॑ ত্বা বি॒বৃদ॑সি বি॒বৃতে॑ ত্বা স॒বৃদ॑সি স॒বৃতে॑ ত্বাऽऽক্র॒মো᳖ऽস্যাক্র॒মায়॑ ত্বা সংক্র॒মো᳖ऽসি সংক্র॒মায়॑ ত্বোৎক্র॒মো᳖ऽস্যুৎক্র॒মায়॒ ত্বোৎক্রা॑ন্তির॒স্যুৎক্রা॑ন্ত্যৈ॒ ত্বাऽধি॑পতিনো॒র্জোর্জং॑ জিন্ব ॥ ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ত্রিবৃদসীত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । প্রজাপতির্দেবতা । বিরাড্ ব্রাহ্মী জগতী ছন্দঃ । নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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