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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 58
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - विदुषी देवता छन्दः - भुरिग् ब्राह्मी बृहती स्वरः - मध्यमः
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    प॒र॒मे॒ष्ठी त्वा॑ सादयतु दि॒वस्पृ॒ष्ठे ज्योति॑ष्मतीम्। विश्व॑स्मै प्रा॒णाया॑पा॒नाय॑ व्या॒नाय॒ विश्वं॒ ज्योति॑र्यच्छ। सूर्य॒स्तेऽधि॑पति॒स्तया॑ दे॒वत॑याऽङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वा सी॑द॥५८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒र॒मे॒ष्ठी। प॒र॒मे॒स्थीति॑ परमे॒ऽस्थी। त्वा॒। सा॒द॒य॒तु॒। दि॒वः। पृ॒ष्ठे। ज्योति॑ष्मतीम्। विश्व॑स्मै। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नायेत्य॑पऽआ॒नाय॑। व्या॒नायेति॑ विऽआ॒नाय॑। विश्व॑म्। ज्योतिः॑। य॒च्छ॒। सूर्यः॑। ते॒। अधि॑पति॒रित्यधि॑ऽपतिः। तया॑। दे॒वत॑या। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। सी॒द॒ ॥५८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परमेष्ठी त्वा सादयतु दिवस्पृष्ठे ज्योतिष्मतीम् । विश्वस्मै प्राणायापानाय व्यानाय विश्वञ्ज्योतिर्यच्छ सूर्यस्तेधिपतिस्तया देवतयाङ्गिरस्वद्धरुवा सीद ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    परमेष्ठी। परमेस्थीति परमेऽस्थी। त्वा। सादयतु। दिवः। पृष्ठे। ज्योतिष्मतीम्। विश्वस्मै। प्राणाय। अपानायेत्यपऽआनाय। व्यानायेति विऽआनाय। विश्वम्। ज्योतिः। यच्छ। सूर्यः। ते। अधिपतिरित्यधिऽपतिः। तया। देवतया। अङ्गिरस्वत्। ध्रुवा। सीद॥५८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 58
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে স্ত্রী! (পরমেষ্ঠী) মহান আকাশে ব্যাপ্ত হইয়া স্থিত পরমেশ্বর (জ্যোতিষ্মতীম্) প্রশস্ত জ্ঞানযুক্ত (ত্বা) তোমাকে (দিবঃ) প্রকাশের (পৃষ্ঠে) উত্তম ভাগে (বিশ্বেস্মৈ) সকল (প্রাণায়) প্রাণ (অপানায়) অপান এবং (ব্যানায়) ব্যানাদির যথার্থ ক্রিয়া হইবার জন্য (সাদয়তু) স্থিত করিবেন । তুমি সকল স্ত্রীদিগের জন্য (বিশ্বম্) সমস্ত (জ্যোতিঃ) জ্ঞানের প্রকাশকে (য়চ্ছ) দান করিবে যাহা (তে) তোমার (সূর্য়ঃ) সূর্য্যের সমান তেজস্বী (অধিপতিঃ) স্বামী (তথা) সেই (দেবতয়া) উত্তম গুণযুক্ত পতির সহিত বর্ত্তমান (অঙ্গিরস্বৎ) সূর্য্যের সমান (ধ্রুবা) দৃঢ়তা পূর্বক (সীদ) স্থির হউক ॥ ৫৮ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমা তথা বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে পরমেশ্বর শরদ্ ঋতু নির্মাণ করিয়াছেন তাহার উপাসনাপূর্বক এই ঋতুকে যুক্তিপূর্বক সেবন করিয়া স্ত্রী পুরুষ সর্বদা সুখ বৃদ্ধি করুক ॥ ৫৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - প॒র॒মে॒ষ্ঠী ত্বা॑ সাদয়তু দি॒বস্পৃ॒ষ্ঠে জ্যোতি॑ষ্মতীম্ ।
    বিশ্ব॑স্মৈ প্রা॒ণায়া॑পা॒নায়॑ ব্যা॒নায়॒ বিশ্বং॒ জ্যোতি॑র্য়চ্ছ ।
    সূর্য়॒স্তেऽধি॑পতি॒স্তয়া॑ দে॒বত॑য়াऽঙ্গির॒স্বদ্ ধ্রু॒বা সী॑দ ॥ ৫৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - পরমেষ্ঠীত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । বিদুষী দেবতা । ভুরিগ্ ব্রাহ্মী বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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