Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 39
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
    7

    भ॒द्राऽउ॒त प्रश॑स्तयो भ॒द्रं मनः॑ कृणुष्व वृत्र॒तूर्य्ये॑। येना॑ स॒मत्सु॑ सा॒सहः॑॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भ॒द्राः। उ॒त। प्रश॑स्तय॒ इति॒ प्रऽश॑स्तयः। भ॒द्रम्। मनः॑। कृ॒णु॒ष्व॒। वृ॒त्र॒तूर्य्य॒ इति॑ वृत्र॒ऽतूर्य्ये॑। येन॑। स॒मत्स्विति॑ स॒मत्ऽसु॑। सा॒सहः॑। स॒सह॒ इति॑ स॒सहः॑ ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भद्राऽउत प्रशस्तयो भद्रम्मनः कृणुष्व वृत्रतूर्ये । येना समत्सु सासहः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    भद्राः। उत। प्रशस्तय इति प्रऽशस्तयः। भद्रम्। मनः। कृणुष्व। वृत्रतूर्य्य इति वृत्रऽतूर्य्ये। येन। समत्स्विति समत्ऽसु। सासहः। ससह इति ससहः॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 39
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (সুভগ) শোভন সম্পত্তি যুক্ত পুরুষ! আপনি (য়েন) যদ্দ্বারা আমাদের (বৃত্রতূর্য়্যে) যুদ্ধে (ভদ্রম্) কল্যাণকারী (মনঃ) বিচার শক্তিযুক্ত চিত্ত (উত) এবং (ভদ্রাঃ) কল্যাণকারিণী (প্রশস্তয়ঃ) প্রশংসার যোগ্য প্রজা এবং যদ্দ্বারা (সমৎসু) সংগ্রামগুলিতে (সাহসঃ) অত্যন্ত সহনশীল বীর পুরুষ হইবে, সেইরূপ কর্ম (কৃণুষ্ব) করুন ॥ ৩ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এখানে (সুভগ, নঃ) এই দুই পদের অনুবৃত্তি পূর্ব মন্ত্র হইতে আইসে । বিদ্বান্ রাজার উচিত যে, এমন কর্মের অনুষ্ঠান করিবে যাহাতে প্রজা ও সেনা উত্তম হয় ॥ ৩ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ভ॒দ্রাऽউ॒ত প্রশ॑স্তয়ো ভ॒দ্রং মনঃ॑ কৃণুষ্ব বৃত্র॒তূর্য়্যে॑ ।
    য়েনা॑ স॒মৎসু॑ সা॒সহঃ॑ ॥ ৩ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ভদ্রা উতেত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদুষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top