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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 36
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    सऽइ॑धा॒नो वसु॑ष्क॒विर॒ग्निरी॒डेन्यो॑ गि॒रा। रे॒वद॒स्मभ्यं॑ पुर्वणीक दीदिहि॥३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। इ॒धा॒नः। वसुः॑। क॒विः। अ॒ग्निः। ई॒डेन्यः॑। गि॒रा। रे॒वत्। अ॒स्मभ्य॑म्। पु॒र्व॒णी॒क॒। पु॒र्वनी॒केति॑ पुरुऽअनीक। दी॒दि॒हि॒ ॥३६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सऽइधानो वसुष्कविरग्निरीडेन्यो गिरा । रेवदस्मभ्यम्पुर्वणीक दीदिहि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः। इधानः। वसुः। कविः। अग्निः। ईडेन्यः। गिरा। रेवत्। अस्मभ्यम्। पुर्वणीक। पुर्वनीकेति पुरुऽअनीक। दीदिहि॥३६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 36
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (পুর্বণীক) বহু সেনাযুক্ত রাজপুরুষ বিদ্বান্ । (গিরা) বাণী দ্বারা (ঈডেন্যঃ) অনুসন্ধান যোগ্য (বসুঃ) নিবাসের হেতু (কবিঃ) সমর্থ (ইধানঃ) প্রদীপ্ত (সঃ) সেই পূর্বোক্ত (অগ্নিঃ) অগ্নির সমান (অস্মভ্যম্) আমাদের জন্য (রেবৎ) প্রশংসিত ধনযুক্ত পদার্থসকলকে (দীদিহি) প্রকাশিত করুন ॥ ৩৬ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । বিদ্বান্দিগের উচিত যে, অগ্নির গুণ-কর্ম-স্বভাবের প্রকাশ দ্বারা মনুষ্যদিগের জন্য ঐশ্বর্য্যের উন্নতি করুন । ৩৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - সऽই॑ধা॒নো বসু॑ষ্ক॒বির॒গ্নিরী॒ডেন্যো॑ গি॒রা ।
    রে॒বদ॒স্মভ্যং॑ পুর্বণীক দীদিহি ॥ ৩৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - স ইধান ইত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদুষ্ণিক্ ছন্দঃ । ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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