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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
    सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त

    ये त्वा॑ कृ॒त्वाले॑भि॒रे वि॑द्व॒ला अ॑भिचा॒रिणः॑। शं॒भ्वी॒दं कृ॑त्या॒दूष॑णं प्रतिव॒र्त्म पु॑नःस॒रं तेन॑ त्वा स्नपयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । त्वा॒ । कृ॒त्वा । आ॒ऽले॒भि॒रे । वि॒द्व॒ला: । अ॒भि॒ऽचा॒रिण॑: । श॒म्ऽभु । इ॒दम् । कृ॒त्या॒ऽदूष॑णम् । प्र॒ति॒ऽव॒र्त्म । पु॒न॒:ऽस॒रम् । तेन॑ । त्वा॒ । स्न॒प॒या॒म॒सि॒ ॥१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये त्वा कृत्वालेभिरे विद्वला अभिचारिणः। शंभ्वीदं कृत्यादूषणं प्रतिवर्त्म पुनःसरं तेन त्वा स्नपयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । त्वा । कृत्वा । आऽलेभिरे । विद्वला: । अभिऽचारिण: । शम्ऽभु । इदम् । कृत्याऽदूषणम् । प्रतिऽवर्त्म । पुन:ऽसरम् । तेन । त्वा । स्नपयामसि ॥१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 9

    पदार्थ -

    १. हे कृत्ये! (ये) = जो (विद्वला) = [विद् वेदनायाम्] वेदना प्राप्त करानेवाले (अभिचारिणः) = हिंसा प्रयोगों को करनेवाले लोग (त्वा) = तुझे कृत्वा करके (अलेभिरे) = प्राप्त करते हैं, (इदम्) = यह (प्रतिवर्म) = उलटे रास्ते [वापस] उसे (पुनःसरम्) = फिर लौटा देना (कृत्यादूषणम्) = हिंसक प्रयोग को दूषित करना है। (इदम्) = यह (शम्भु) = शान्ति उत्पन्न करनेवाला है, (तेन) = उस उलटे रास्ते [वापस] लौटा देने के द्वारा (त्वा) = तुझे हे कृत्ये! (स्त्रपयामसि) = शुद्ध कर डालते हैं-तेरा सफाया कर देते हैं।

    भावार्थ -

    हिंसक प्रयोग को दूर करने का सर्वोत्तम उपाय यही है कि उसे उलटे रास्ते [वापस] लौटा दिया जाए, अर्थात् गाली का उत्तर गाली में न दिया जाए। ('आकृष्ट: कुशल वदेत्') ।

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