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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 19
    सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - चतुष्पदा जगती सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त

    उ॒पाहृ॑त॒मनु॑बुद्धं॒ निखा॑तं॒ वैरं॑ त्सा॒र्यन्व॑विदाम॒ कर्त्र॑म्। तदे॑तु॒ यत॒ आभृ॑तं॒ तत्राश्व॑ इव॒ वि व॑र्ततां॒ हन्तु॑ कृत्या॒कृतः॑ प्र॒जाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒ऽआहृ॑तम् । अनु॑ऽबुध्दम् । निऽखा॑तम् । वैर॑म् । त्सा॒रि । अनु॑ । अ॒वि॒दा॒म॒ । कर्त्र॑म् । तत् । ए॒तु॒ । यत॑: । आऽभृ॑तम् । तत्र॑ । अश्व॑:ऽइव । वि । व॒र्त॒ता॒म् । हन्तु॑ । कृ॒त्या॒ऽकृत॑: । प्र॒ऽजाम् ॥१.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपाहृतमनुबुद्धं निखातं वैरं त्सार्यन्वविदाम कर्त्रम्। तदेतु यत आभृतं तत्राश्व इव वि वर्ततां हन्तु कृत्याकृतः प्रजाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽआहृतम् । अनुऽबुध्दम् । निऽखातम् । वैरम् । त्सारि । अनु । अविदाम । कर्त्रम् । तत् । एतु । यत: । आऽभृतम् । तत्र । अश्व:ऽइव । वि । वर्तताम् । हन्तु । कृत्याऽकृत: । प्रऽजाम् ॥१.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 19

    पदार्थ -

    १. (या कृत्याम्) = जिस छेदनक्रिया की साधनभूत वस्तु को, (वा) = अथवा (वल-गम्) = [वल् संवरणे, ग-गम्] छिपे रूप में गति करनेवाली बम्ब आदि वस्तु को (ते बर्हिषि) = तेरी कुशादि घासों में, (याम्) = जिसे (श्मशाने) = समीपस्थ श्मशान में व (क्षेत्रे) = खेत में (निचख्नु:) = गाड़ देते हैं, (वा) = अथवा जो (धीरतरा:) = [तु अभिभवे] धीरों का भी अभिभव करनेवाले-अपने को अधिक बुद्धिमान् माननेवाले लोग (पाकम्) =  पवित्र व (अनागसम्) = निरपराध (सन्तं त्वा) = होते हुए भी तुझे (गार्हपत्ये अनौ) = गार्हपत्य अग्नि में (अभिचेरु:) = अभिचरित करते हैं। अभिचारयज्ञ द्वारा अथवा किसी प्रकार गार्हपत्य अग्नि के प्रयोग द्वारा तुझे नष्ट करने का यत्र करते हैं। २. (उपाहृतम्) = उपहाररूप में दी गई (अनुबुद्धम्) = अनुकूल रूप से जानी गई अथवा (निखातम्) = कहीं क्षेत्र आदि में गाड़ी गई (वैरम्) = [वीरस्य भावः, वि•ई] विशिष्टरूप से कम्पित करनेवाली (त्सारी) = [त्सर छागती] कुटिल गतिवाली-छिपेरूप में गतिवाली [वल-ग] (कर्त्रम्) = [कृत्याम्] घातक वस्तु को (अन्व विदाम) = हमने समझ लिया है, (तत्) = अत: यह (कर्त्रम्) = कृत्या (यतः आभूतम्) = जहाँ से यहाँ पहुँचाई गई है वहीं (एतु) = चली जाए। यह (तत्र) = वहाँ ही-जहाँ से आई है उस आनेवाले स्थान पर (अश्वः इव) = घोड़े की भाँति अथवा व्यापक अग्नि की भाँति (विवर्तताम्) = लौट जाए और (कृत्याकृतः प्रजां हन्तु) = कृत्या करनेवाले की प्रजा को ही नष्ट करे।

    भावार्थ -

    घातक प्रयोग की वस्तु घास आदि में छिपाकर रक्खी जा सकती है, समीप के शमशान या खेत में गाड़ी जा सकती है अथवा गार्हपत्य अग्नि में कोई घातक प्रयोग किया जा सकता है। ये भी सम्भव है कि ऐसी कोई घातक वस्तु बड़ी अनुकूल-सी प्रतीत होती हुई उपहार रूप में दी जाए। ये सब उस कृत्या को करनेवालों को ही प्राप्त हों-उन्हीं की प्रजा के विनाश का कारण बनें।

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