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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 12
    सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - पङ्क्तिः सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त

    दे॑वैन॒सात्पित्र्या॑न्नामग्रा॒हात्सं॑दे॒श्यादभि॒निष्कृ॑तात्। मु॒ञ्चन्तु॑ त्वा वी॒रुधो॑ वीर्येण॒ ब्रह्म॑णा ऋ॒ग्भिः पय॑स॒ ऋषी॑णाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒व॒ऽए॒न॒सात् । प‍ित्र्या॑त् । ना॒म॒ऽग्रा॒हात् । स॒म्ऽदे॒श्या᳡त् । अ॒भि॒ऽनिष्कृ॑तात् । मु॒ञ्चन्तु॑ । त्वा॒ । वी॒रुध॑: । वी॒र्ये᳡ण । ब्रह्म॑णा । ऋ॒क्ऽभि: । पय॑सा । ऋषी॑णाम् ॥१.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवैनसात्पित्र्यान्नामग्राहात्संदेश्यादभिनिष्कृतात्। मुञ्चन्तु त्वा वीरुधो वीर्येण ब्रह्मणा ऋग्भिः पयस ऋषीणाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवऽएनसात् । प‍ित्र्यात् । नामऽग्राहात् । सम्ऽदेश्यात् । अभिऽनिष्कृतात् । मुञ्चन्तु । त्वा । वीरुध: । वीर्येण । ब्रह्मणा । ऋक्ऽभि: । पयसा । ऋषीणाम् ॥१.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 12

    पदार्थ -

    १. (देवैनसात्) = देवों के विषय में किये गये पाप से, अर्थात् देवयज्ञ आदि न करने से, (पित्र्यात) = पितरों के विषय में किये गये पाप से-उनका उचित आदर न करने से (नामग्राहात्) = नाम लेते रहने से, अर्थात् दूसरों पर झूठा दोष लगाने से, (सन्देश्यात्) = दान के विषय में होनेवाले पाप से तथा (अभिनिष्कृतात्) = [Injuring. speaking ill or] हिंसन व बुराई करने से (त्वा) = तुझे सब देव (मुञ्चन्तु) = मुक्त करें। सब देव (वीरुधः वीर्येण) = लताओं के वीर्य से लताओं के भोजन से उत्पन्न शक्ति के द्वारा, (ब्रह्मणः ऋग्भिः) = वेदज्ञान की ऋचाओं से-विज्ञान प्रतिपादक मन्त्रों से तथा (ऋषीणां पयसा) = मन्त्रगष्टा ऋषियों द्वारा दिये गये ज्ञानदुग्ध से तुझे दोषों से मुक्त करें।

    भावार्थ -

    हम ओषधि व वनस्पतियों का भोजन करते हुए शरीर में शक्ति का सम्पादन करें। वेद की ऋचाओं से विज्ञान को प्राप्त करें। ऋषियों के प्रवचनों से ज्ञानदुग्ध को प्राप्त करें। इसप्रकार हमारे सब पाप व पापवृत्तियाँ दूर हो जाएँगी।

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