अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 18
सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः
देवता - कृत्यादूषणम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
यां ते॑ ब॒र्हिषि॒ यां श्म॑शा॒ने क्षेत्रे॑ कृ॒त्यां व॑ल॒गं वा॑ निच॒ख्नुः। अ॒ग्नौ वा॑ त्वा॒ गार्ह॑पत्येऽभिचे॒रुः पाकं॒ सन्तं॒ धीर॑तरा अना॒गस॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठयाम् । ते॒ । ब॒र्हिषि॑ । याम् । श्म॒शा॒ने । क्षेत्रे॑ । कृ॒त्याम् । व॒ल॒गम् । वा॒ । नि॒ऽच॒ख्नु: । अ॒ग्नौ । वा॒ । त्वा॒ । गार्ह॑ऽपत्ये । अ॒भि॒ऽचे॒रु: । पाक॑म् । सन्त॑म् । धीर॑ऽतरा: । अ॒ना॒गस॑म् ॥१.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
यां ते बर्हिषि यां श्मशाने क्षेत्रे कृत्यां वलगं वा निचख्नुः। अग्नौ वा त्वा गार्हपत्येऽभिचेरुः पाकं सन्तं धीरतरा अनागसम् ॥
स्वर रहित पद पाठयाम् । ते । बर्हिषि । याम् । श्मशाने । क्षेत्रे । कृत्याम् । वलगम् । वा । निऽचख्नु: । अग्नौ । वा । त्वा । गार्हऽपत्ये । अभिऽचेरु: । पाकम् । सन्तम् । धीरऽतरा: । अनागसम् ॥१.१८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 18
विषय - बर्हिषि, श्मशाने, क्षेत्रे
पदार्थ -
१. (या कृत्याम्) = जिस छेदनक्रिया की साधनभूत वस्तु को, (वा) = अथवा (वल-गम्) = [वल् संवरणे, ग-गम्] छिपे रूप में गति करनेवाली बम्ब आदि वस्तु को (ते बर्हिषि) = तेरी कुशादि घासों में, (याम्) = जिसे (श्मशाने) = समीपस्थ श्मशान में व (क्षेत्रे) = खेत में (निचख्नु:) = गाड़ देते हैं, (वा) = अथवा जो (धीरतरा:) = [तु अभिभवे] धीरों का भी अभिभव करनेवाले-अपने को अधिक बुद्धिमान् माननेवाले लोग (पाकम्) = पवित्र व (अनागसम्) = निरपराध (सन्तं त्वा) = होते हुए भी तुझे (गार्हपत्ये अनौ) = गार्हपत्य अग्नि में (अभिचेरु:) = अभिचरित करते हैं। अभिचारयज्ञ द्वारा अथवा किसी प्रकार गार्हपत्य अग्नि के प्रयोग द्वारा तुझे नष्ट करने का यत्र करते हैं। २. (उपाहृतम्) = उपहाररूप में दी गई (अनुबुद्धम्) = अनुकूल रूप से जानी गई अथवा (निखातम्) = कहीं क्षेत्र आदि में गाड़ी गई (वैरम्) = [वीरस्य भावः, वि•ई] विशिष्टरूप से कम्पित करनेवाली (त्सारी) = [त्सर छागती] कुटिल गतिवाली-छिपेरूप में गतिवाली [वल-ग] (कर्त्रम्) = [कृत्याम्] घातक वस्तु को (अन्व विदाम) = हमने समझ लिया है, (तत्) = अत: यह (कर्त्रम्) = कृत्या (यतः आभूतम्) = जहाँ से यहाँ पहुँचाई गई है वहीं (एतु) = चली जाए। यह (तत्र) = वहाँ ही-जहाँ से आई है उस आनेवाले स्थान पर (अश्वः इव) = घोड़े की भाँति अथवा व्यापक अग्नि की भाँति (विवर्तताम्) = लौट जाए और (कृत्याकृतः प्रजां हन्तु) = कृत्या करनेवाले की प्रजा को ही नष्ट करे।
भावार्थ -
घातक प्रयोग की वस्तु घास आदि में छिपाकर रक्खी जा सकती है, समीप के शमशान या खेत में गाड़ी जा सकती है अथवा गार्हपत्य अग्नि में कोई घातक प्रयोग किया जा सकता है। ये भी सम्भव है कि ऐसी कोई घातक वस्तु बड़ी अनुकूल-सी प्रतीत होती हुई उपहार रूप में दी जाए। ये सब उस कृत्या को करनेवालों को ही प्राप्त हों-उन्हीं की प्रजा के विनाश का कारण बनें।
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