अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 23
सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः
देवता - कृत्यादूषणम्
छन्दः - त्रिपदा भुरिग्विषमा गायत्री
सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
भ॑वाश॒र्वाव॑स्यतां पाप॒कृते॑ कृत्या॒कृते॑। दु॒ष्कृते॑ वि॒द्युतं॑ देवहे॒तिम् ॥
स्वर सहित पद पाठभ॒वा॒श॒र्वौ । अ॒स्य॒ता॒म् । पा॒प॒ऽकृते॑ । कृ॒त्या॒ऽकृते॑ । दु॒:ऽकृते॑ । वि॒ऽद्युत॑म् । दे॒व॒ऽहे॒तिम् ॥१.२३॥
स्वर रहित मन्त्र
भवाशर्वावस्यतां पापकृते कृत्याकृते। दुष्कृते विद्युतं देवहेतिम् ॥
स्वर रहित पद पाठभवाशर्वौ । अस्यताम् । पापऽकृते । कृत्याऽकृते । दु:ऽकृते । विऽद्युतम् । देवऽहेतिम् ॥१.२३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 23
विषय - पापकृत, कृत्याकृत, दुष्कृत्
पदार्थ -
१. संसार को उत्पन्न करनेवाले प्रभु'भव' हैं [भूः], संसार का संहार [प्रलय] करनेवाले प्रभु 'शर्व' हैं। (भवाशर्वौं) = उत्पादक व संहारक प्रभु (पापकृते) = पाप करनेवाले के लिए,(कृत्याकते) = औरों का छेदन-भेदन करनेवाले के लिए तथा (दुष्कृते) = अशुभ कर्मों को करनेवाले के लिए (देवहेतिम्) = देवों के वनभूत (विद्युतम्) = विद्युत् को (अस्यताम्) = फेंकनेवाले हों।
भावार्थ -
पापकृत, कृत्याकृत, दुष्कृत् लोग उत्पादक व संहारक प्रभु के द्वारा फेंकी गई विद्युत् के शिकार हों। ये लोग आधिदैविक आपत्तियों के द्वारा नष्ट हो जाएँ।
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