अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 1
सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः
देवता - कृत्यादूषणम्
छन्दः - महाबृहती
सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
यां क॒ल्पय॑न्ति वह॒तौ व॒धूमि॑व वि॒श्वरू॑पां॒ हस्त॑कृतां चिकि॒त्सवः॑। सारादे॒त्वप॑ नुदाम एनाम् ॥
स्वर सहित पद पाठयाम् । क॒ल्पय॑न्ति । व॒ह॒तौ । व॒धूम्ऽइ॑व । वि॒श्वऽरू॑पाम् । हस्त॑ऽकृताम् । चि॒कि॒त्सव॑: । सा । आ॒रात् । ए॒तु॒ । अप॑ । नु॒दा॒म॒: । ए॒ना॒म् ॥१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यां कल्पयन्ति वहतौ वधूमिव विश्वरूपां हस्तकृतां चिकित्सवः। सारादेत्वप नुदाम एनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठयाम् । कल्पयन्ति । वहतौ । वधूम्ऽइव । विश्वऽरूपाम् । हस्तऽकृताम् । चिकित्सव: । सा । आरात् । एतु । अप । नुदाम: । एनाम् ॥१.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
विषय - 'विश्वरूपा-हस्तकृता' कृत्या
पदार्थ -
१.(चिकित्सवः) = [चिकिति to know] समझदार निर्माता लोग (याम्) = जिस (विश्वरूपाम्) = अनेक रूपोंवाली (हस्तकृताम्) = हाथ से बनाई गई कृत्या को-हिंसा प्रयोग को [Bomb इत्यादि के रूप में] (कल्पयन्ति) = बनाते हैं, (वहतौ वधूम् इव) = विवाहकाल में विभूषित वधू की भाँति सुन्दर बनाते हैं। (सा) = वह कृत्या (आरात् एतु) = हमसे दूर हो, (एनाम् अपनुदामः) = हम इसे अपने से दूर करते हैं।
भावार्थ -
चतुर शत्रुवर्ग हमारे विनाश के लिए जिन वधू के समान सजे हुए कृत्या-प्रयोगों को करते हैं-विचित्र, सुन्दर आकृतिवाले बम्ब इत्यादि बनाते हैं, ये भिन्न-भिन्न रूपोंवाले आकर्षक, क्रीड़नकों के समान होते हैं। हम इन्हें अपने से दूर करें। इनका शिकार न हो जाएँ।
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