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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 15
    सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - चतुष्पदा विराड्जगती सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त

    अ॒यं पन्थाः॑ कृ॒त्य॒ इति॑ त्वा नयामोऽभि॒प्रहि॑तां॒ प्रति॑ त्वा॒ प्र हि॑ण्मः। तेना॒भि या॑हि भञ्ज॒त्यन॑स्वतीव वा॒हिनी॑ वि॒श्वरू॑पा कुरू॒टिनी॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । पन्था॑: । कृ॒त्ये॒ । इति॑ । त्वा॒ । न॒या॒म॒: । अ॒भि॒ऽप्रहि॑ताम् । प्रति॑ । त्वा॒ । प्र॒ । हि॒ण्म॒: । तेन॑ । अ॒भि । या॒हि॒ । भ॒ञ्ज॒ती । अन॑स्वतीऽइव । वा॒हिनी॑ । वि॒श्वऽरू॑पा । कु॒रू॒टिनी॑ ॥१.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं पन्थाः कृत्य इति त्वा नयामोऽभिप्रहितां प्रति त्वा प्र हिण्मः। तेनाभि याहि भञ्जत्यनस्वतीव वाहिनी विश्वरूपा कुरूटिनी ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । पन्था: । कृत्ये । इति । त्वा । नयाम: । अभिऽप्रहिताम् । प्रति । त्वा । प्र । हिण्म: । तेन । अभि । याहि । भञ्जती । अनस्वतीऽइव । वाहिनी । विश्वऽरूपा । कुरूटिनी ॥१.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 15

    पदार्थ -

    १. हे (कृत्ये) = हिंसा-क्रिये! तेरे लिए (अयं पन्था:) = यह मार्ग है। (इति त्वा नयामः) = तुझे इससे ले-जाते हैं। (अभिप्रहिताम्) = हमारी ओर भेजी हुई (त्वा) = तुझे (प्रतिप्रहिण्म:) = भेजनेवाले के प्रति भेजते हैं। २. (तेन) = उस मार्ग से (अभियाहि) = तू शत्रू के प्रति इसप्रकार जा (इव) = जैसेकि अनस्वती रथोंवाली (विश्वरूपा) = नाना रूपों को धारण करनेवाली-'हाथी, घोड़े, रथ व पदातियों से युक्त (कुरूटिनी) = [कुटिल प्रतिघातिनी, रुट प्रतिघाते] प्रबल प्रतिघात करनेवाली (वाहिनी) = सेना (भञ्जती) = शत्रुओं का मर्दन करती हुई जाती है।

    भावार्थ -

    कृत्या को हम कर्ता के प्रति वापस भेजते हैं। वह पूर्ण सेना के समान शत्र पर आक्रमण करती हुई गति करती है।

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