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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 22
    सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - एकावसाना द्विपदार्च्युष्णिक् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त

    सोमो॒ राजा॑धि॒पा मृ॑डि॒ता च॑ भू॒तस्य॑ नः॒ पत॑यो मृडयन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑: । राजा॑ । अ॒धि॒ऽपा: । मृ॒डि॒ता: । च॒ । भू॒तस्य॑ । न॒: । पत॑य: । मृ॒ड॒य॒न्तु॒ ॥१.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमो राजाधिपा मृडिता च भूतस्य नः पतयो मृडयन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोम: । राजा । अधिऽपा: । मृडिता: । च । भूतस्य । न: । पतय: । मृडयन्तु ॥१.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 22

    पदार्थ -

    १. (सोम:) = शरीरस्थ सोमशक्ति (राजा) = हमारे जीवन को दीस बनानेवाली है, (अधिपा:) = हमारा खब ही रक्षण करनेवाली है (च मृडिता) = और हमारे जीवन को सुखी बनानेवाली है। २. (भूतस्य पतयः) = प्राणियों के रक्षक सब तत्त्व (नः मृडयन्तु) = हमें सुखी करें।

    भावार्थ -

    शरीर में सोम का रक्षण करते हुए हम दीस, रक्षित व सुखी जीवनवाले हों।

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