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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 5/ मन्त्र 30
    सूक्त - भृगुः देवता - अजः पञ्चौदनः छन्दः - ककुम्मत्यनुष्टुप् सूक्तम् - अज सूक्त

    आ॒त्मानं॑ पि॒तरं॑ पु॒त्रं पौत्रं॑ पिताम॒हम्। जा॒यां जनि॑त्रीं मा॒तरं॒ ये प्रि॒यास्तानुप॑ ह्वये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒त्मान॑म् । पि॒तर॑म् । पु॒त्रम् । पौत्र॑म् । पि॒ता॒म॒हम् । जा॒याम् । जनि॑त्रीम् । मा॒तर॑म् । ये । प्रि॒या: । तान् । उप॑ । ह्व॒ये॒ ॥५.३०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आत्मानं पितरं पुत्रं पौत्रं पितामहम्। जायां जनित्रीं मातरं ये प्रियास्तानुप ह्वये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आत्मानम् । पितरम् । पुत्रम् । पौत्रम् । पितामहम् । जायाम् । जनित्रीम् । मातरम् । ये । प्रिया: । तान् । उप । ह्वये ॥५.३०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 5; मन्त्र » 30

    पदार्थ -

    १. गृहस्थ को समय-समय पर इष्ट-बन्धुओं को आमन्त्रित करना ही चाहिए। उन प्रसङ्गों में सर्वप्रथम (आत्मानम् उपह्वये) = प्रभु को पुकारे। प्रभु-प्रार्थना से ही प्रत्येक कार्य का आरम्भ होना चाहिए। इसके बाद (पितरम्) = पिता को (पौत्रम्) = पुत्र-पौत्रों को (पितामहम्) = दादा को (जायाम्) = पत्नी को (जनित्रीम् मातरम्) = जन्म देनेवाली माता को तथा (ये प्रिया:) = जो भी प्रिय इष्ट-बन्धु हैं (तान्) = [उपवये] उन सबको सम्मानपूर्वक पुकारे।

    भावार्थ -

    घरों में जब कोई कार्यविशेष उपस्थित हो, तब उन अवसरों पर सर्वप्रथम प्रभु का स्मरण करना चाहिए, तदनन्तर पिता, दादा, माता, पत्नी व पुत्र-पौत्रों को भी बुलाना चाहिए। यज्ञ के समय घर के सब व्यक्ति उपस्थित हों। उस समय पली पाकशाला में कुछ पका न रही हो।

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