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यजुर्वेद अध्याय - 3

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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सुश्रुत ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - गायत्री, स्वरः - षड्जः
    119

    सुस॑मिद्धाय शो॒चिषे॑ घृ॒तं ती॒व्रं जु॑होतन। अ॒ग्नये॑ जा॒तवे॑दसे॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सुस॑मिद्धा॒येति सुऽस॑मिद्धाय। शो॒चिषे॑। घृ॒तम्। ती॒व्रम्। जु॒हो॒त॒न॒। अ॒ग्नये॑। जा॒तवे॑दस॒ इति॑ जा॒तऽवे॑दसे ॥२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुसमिद्धाय शोचिषे घृतन्तीव्रं जुहोतन । अग्नये जातवेदसे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुसमिद्धायेति सुऽसमिद्धाय। शोचिषे। घृतम्। तीव्रम्। जुहोतन। अग्नये। जातवेदस इति जातऽवेदसे॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृशः कथमुपयोजनीयश्चेत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या! यूयं सुसमिद्धाय सुसमिद्धे शोचिषे शोचिषि जातवेदसे जातवेदसि अग्नये अग्नौ तीव्रं घृतञ्जुहोतन॥२॥

    पदार्थः

    (सुसमिद्धाय) सुष्ठु सम्यगिद्धो दीप्तस्तस्मिन्। अत्र सर्वत्र सुपां सुलुग् [अष्टा॰७.१.३९] इति सप्तमीस्थाने चतुर्थी। (शोचिषे) शोधिते दोषनिवारके (घृतम्) आज्यादिकम् (तीव्रम्) सर्वदोषाणां निवारणे तीक्ष्णस्वभावम् (जुहोतन) प्रक्षिपत, सिद्धिरस्य पूर्ववत्। (अग्नये) रूपदाहप्रकाशच्छेदनादिगुणस्वभावे (जातवेदसे) जाते जाते उत्पन्ने उत्पन्ने पदार्थे विद्यमानस्तस्मिन्। जाते जाते विद्यत इति वा। जातवित्तो वा जातधनो जातविद्यो वा जातप्रज्ञानो यत्तज्जातः पशूनविन्दतेति तज्जातवेदसो जातवेदस्त्वमिति। निरु॰७.१९.२॥

    भावार्थः

    मनुष्यैरस्मिन् प्रदीप्तेऽग्नौ शीघ्रं दोषनिवारकाणि शोधितानि द्रव्याणि प्रक्षिप्य सुखानि साधनीयानीति॥२॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वह भौतिक अग्नि कैसा है, किस प्रकार उपयोग करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्य लोगो! तुम (सुसमिद्धाय) अच्छे प्रकार प्रकाशरूप (शोचिषे) शुद्ध किये हुए दोषों का निवारण करने वा (जातवेदसे) सब पदार्थों में विद्यमान (अग्नये) रूप, दाह, प्रकाश, छेदन आदि गुण स्वभाव वाले अग्नि में (तीव्रम्) सब दोषों के निवारण करने में तीक्ष्ण स्वभाव वाले (घृतम्) घी मिष्ट आदि पदार्थों को (जुहोतन) अच्छे प्रकार गेरो॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को इस प्रज्वलित अग्नि में जल्दी दोषों को दूर करने वाले या शुद्ध किये हुए पदार्थों को गेर कर इष्ट सुखों को सिद्ध करना चाहिये॥२॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रज्वलित अग्नी पदार्थांना शुद्ध करतो व सर्व दोष नष्ट करतो त्यासाठी माणसांनी घृत इत्यादी पदार्थ यज्ञात टाकले पाहिजेत. ज्यामुळे इष्ट सुखाची प्राप्ती होऊ शकेल.

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Put the oblations of ghee that removes physical infirmities, into this well ablaze, disease-killing fire present in all objects.

    Meaning

    To the fire, omnipresent, lit up, rising bright and blazing, sanctifying everything around, offer libations of ghee, pure, inflammable and purifying.

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ স কীদৃশঃ কথমুপয়োজনীয়শ্চেত্যুপদিশ্যতে ॥
    পুনঃ সেই ভৌতিক অগ্নি কেমন, কীভাবে তাহার ব্যবহার করা উচিত, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমরা (সুসমিদ্ধায়) ভাল প্রকার প্রকাশরূপ (শোচিষে) শুদ্ধ কৃত দোষের নিবারণ করিতে (জাতবেদসে) অথবা সকল পদার্থে বিদ্যমান (অগ্নয়ে) রূপ, দাহ, প্রকাশ, ছেদনাদি গুণ স্বভাবযুক্ত অগ্নিতে (তীব্রম্) সকল দোষগুলি নিবারণ করিতে তীক্ষ্ম স্বভাব যুক্ত (ঘৃতম্) ঘৃত মিষ্টাদি পদার্থকে (জুহোতন) উত্তম প্রকার প্রক্ষিপ্ত কর ॥ ২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগকে এই প্রজ্জ্বলিত অগ্নিতে (তীব্রম্) শীঘ্র দোষ নিবারণ করিয়া অথবা শুদ্ধ কৃত পদার্থগুলি আহুতি দিয়া ইষ্ট সুখ সিদ্ধ করা উচিত ॥ ২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সুস॑মিদ্ধায় শো॒চিষে॑ ঘৃ॒তং তী॒ব্রং জু॑হোতন ।
    অ॒গ্নয়ে॑ জা॒তবে॑দসে ॥ ২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সুসমিদ্ধায়েত্যস্য সুশ্রুত ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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