यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 22
ऋषि: - वैश्वामित्रो मधुच्छन्दा ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - भूरिक् आसुरी गायत्री,गायत्री,
स्वरः - षड्जः
42
स॒ꣳहि॒तासि॑ विश्वरू॒प्यूर्जा मावि॑श गौप॒त्येन॑। उप॑ त्वाग्ने दि॒वेदि॑वे॒ दोषा॑वस्तर्धि॒या व॒यम्। नमो॒ भर॑न्त॒ऽएम॑सि॥२२॥
स्वर सहित पद पाठस॒ꣳहि॒तेति॑ सम्ऽहि॒ता। अ॒सि॒। वि॒श्व॒रू॒पीति॑ विश्वऽरू॒पी। ऊ॒र्जा। मा॒। आ। वि॒श॒। गौ॒प॒त्येन॑। उप॑। त्वा॒। अ॒ग्ने॒। दि॒वेदि॑व॒ इति॑ दि॒वेदि॑वे। दो॑षावस्त॒रिति॒ दोषा॑ऽवस्तः। धि॒या। व॒यम्। नमः॑। भर॑न्तः। आ। इ॒म॒सि॒ ॥२२॥
स्वर रहित मन्त्र
सँहितासि विश्वरूप्यूर्जा माविश गौपत्येन । उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । नमो भरन्तऽएमसि ॥
स्वर रहित पद पाठ
सꣳहितेति सम्ऽहिता। असि। विश्वरूपीति विश्वऽरूपी। ऊर्जा। मा। आ। विश। गौपत्येन। उप। त्वा। अग्ने। दिवेदिव इति दिवेदिवे। दोषावस्तरिति दोषाऽवस्तः। धिया। वयम्। नमः। भरन्तः। आ। इमसि॥२२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निशब्देन विद्युत्कर्माण्युपदिश्यन्ते॥
अन्वयः
नमोऽन्नं भरन्त सन्तो वयं धिया योऽग्निर्विद्युद्रूपेण सर्वेषु पदार्थेषु संहितोर्जा विश्वरूपी गौपत्येन मा मां विश प्रविशति त्वाग्ने तं दोषावस्तारमग्निं दिवे दिवे प्रतिदिनमुपैमसि॥२२॥
पदार्थः
(संहिता) सर्वपदार्थैः सह वर्त्तमाना विद्युत्, सर्वव्यापक ईश्वरो वा (असि) अस्ति वा। अत्र सर्वत्र पक्षे व्यत्ययः। (विश्वरूपी) विश्वं सर्वं रूपं यस्याः सा। अत्र जातेरस्त्रीविषयादयोपधात् [अष्टा॰४.१.६३] इति ङीष् प्रत्ययः। (ऊर्जा) वेगपराक्रमादिगुणयुक्ता (मा) माम् (आ) समन्तात् (विश) विशति (गौपत्येन) गवामिन्द्रियाणां पशूनां वा पतिः पालकस्तस्य भावः कर्म वा तेन। अत्र पत्यन्तपुरोहितादिभ्यो यक् [अष्टा॰५.१.१२८] इति यक् प्रत्ययः। (उप) उपगमेऽर्थे (त्वा) त्वाम् (अग्ने) अग्निः (दिवेदिवे) ज्ञानस्य प्रकाशाय प्रकाशाय। दिवेदिव इत्यहर्नामसु पठितम्। (निघं॰१.९)। (दोषावस्तः) दोषां रात्रिं वस्ते स्वतेजसाऽऽछाद्य निवारयति सोऽग्निः। दोषेति रात्रिनामसु पठितम्। (निघं॰१.७)। (धिया) कर्मणा प्रज्ञया वा। धीरिति कर्मनामसु पठितम्। (निघं॰२.१)। प्रज्ञानामसु वा। (निघं॰३.९.)। (वयम्) क्रियाकाण्डानुष्ठातारः (नमः) अन्नम्। नम इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं॰२.७)। (भरन्तः) धारयन्तः (आ) समन्तात् (इमसि) प्राप्नुमः। अत्र इदन्तो मसि [अष्टा॰७.१.४६] इतीकारादेशः। अयं मन्त्रः (शत॰२.३.४.२७-२८) व्याख्यातः॥२२॥
भावार्थः
मनुष्यैरित्थं वेदितव्यं येनेश्वरेण सर्वत्र मूर्त्तद्रव्येषु विद्युद्रूपो व्याप्तः सर्वरूपप्रकाशश्चेष्टादिव्यवहार- हेतुविचित्रगुणोऽग्निर्निर्मितस्तस्यैवोपासनं नित्यं कार्यमिति॥२२॥
हिन्दी (1)
विषय
अब अगले मन्त्र में अग्निशब्द से बिजुली के कर्मों का उपदेश किया है॥
पदार्थ
(नमः) अन्न को (भरन्तः) धारण करते हुए हम लोग (धिया) अपनी बुद्धि वा कर्म से जो (अग्ने) अग्नि बिजुली रूप से सब पदार्थों के (संहिता) साथ (ऊर्जा) वेग वा पराक्रम आदि गुणयुक्त (विश्वरूपी) सब पदार्थों में रूपगुणयुक्त (गौपत्येन) इन्द्रिय वा पशुओं के पालन करने वाले जीव के साथ वर्त्तमान से (मा) मुझ में (आविश) प्रवेश करता है (त्वा) उस (दोषावस्तः) रात्रि को अपने तेज से दूर करने वाले (अग्ने) विद्युद्रूप अग्नि को (दिवेदिवे) ज्ञान के प्रकाश होने के लिये प्रतिदिन (उपैमसि) समीप प्राप्त करते हैं॥२२॥
भावार्थ
मनुष्यों को ऐसा जानना चाहिये कि जिस ईश्वर ने सब जगह मूर्त्तिमान् द्रव्यों में बिजुलीरूप से परिपूर्ण सब रूपों का प्रकाश करने, चेष्टा आदि व्यवहारों का हेतु विचित्र गुण वाला अग्नि रचा है, उसी की उपासना नित्य करनी चाहिये॥२२॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी हे जाणले पाहिजे की, ज्या ईश्वराने मूर्तिमान पदार्थात सर्वत्र विद्युतरूपाने असणारा व सर्व रूप प्रकाशित करण्याचे कारण असणारा अग्नी निर्माण केलेला आहे. त्याचीच (परमेश्वराची) सदैव उपासना केली पाहिजे.
English (2)
Meaning
Oh universal vedic text, thou art full of vigour and valour, may we attain unto thee, the master of the yajna. O God, may we be in communion with Thee, everyday, morning and evening, bowing unto Thee through our intellect.
Meaning
Immanent in all the forms of existence, universal energy, come, inspire and bless me, as a protector and sustainer. Agni, dispeller of darkness of the night, we come to you for light day in and day out. With all our wealth of food and energy, mind and intelligence, in all humility and faith, we come to you.
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