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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    619

    उदी॑र्ष्वनार्य॒भि जी॑वलो॒कं ग॒तासु॑मे॒तमुप॑ शेष॒ एहि॑। ह॑स्तग्रा॒भस्य॑ दधि॒षोस्तवे॒दंपत्यु॑र्जनि॒त्वम॒भि सं ब॑भूथ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ई॒र्ष्व॒ । ना॒रि॒ । अ॒भि । जी॒व॒ऽलो॒कम् । ग॒तऽअ॑सुम् । ए॒तम् । उप॑ । शे॒षे॒ । आ । इ॒हि॒ । ह॒स्त॒ऽग्रा॒भस्य॑ । द॒धि॒षो: । तव॑ । इ॒दम् । पत्यु॑: । ज॒नि॒ऽत्वम् । अ॒भि । सम् । ब॒भू॒थ॒ ॥३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदीर्ष्वनार्यभि जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष एहि। हस्तग्राभस्य दधिषोस्तवेदंपत्युर्जनित्वमभि सं बभूथ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । ईर्ष्व । नारि । अभि । जीवऽलोकम् । गतऽअसुम् । एतम् । उप । शेषे । आ । इहि । हस्तऽग्राभस्य । दधिषो: । तव । इदम् । पत्यु: । जनिऽत्वम् । अभि । सम् । बभूथ ॥३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    नियोगविधान का उपदेश।

    पदार्थ

    (नारि) हे नारी ! (जीवलोकम् अभि) जीवते पुरुषों के समाज की ओर (उत) उठकर (ईर्ष्व) चल, (एतम्) इस (गतासुम्) गये प्राणवाले [मरे वा रोगी पति] को (उप) सराहती हुई (शेषे) तू पड़ीहै, (आ इहि)(दधिषोः) वीर्यदाता [नियुक्त पति] से (ते) अपने (हस्तग्राभस्य) [विवाह में] हाथ पकड़नेवाले (पत्युः) पति के (जनित्वम्) सन्तान को (इदम्) अब (अभि) सब प्रकार (सम्) यथावत् [शास्त्रानुसार] (बभूथ) तू प्राप्त हो ॥२॥

    भावार्थ

    विपत्ति काल मेंअर्थात् सन्तान न होने पर पति के बड़े रोगी होने वा मर जाने पर स्त्रीमृतस्त्रीक पुरुष से नियोग कर सन्तान उत्पन्न करके पति के वंश को चलावे। इसीप्रकार जिस पुरुष की स्त्री बड़ी रोगिनी हो वा मर गई हो, वह विधवा से नियोग करसन्तान उत्पन्न करके अपना वंश चलावे ॥२॥यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१०।१८।८, वहाँपर (दधिषोः) के स्थान पर (दिधिषोः) पद है और ऋग्वेदपाठ ही महर्षिदयानन्दकृतऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के और सत्यार्थप्रकाश चतुर्थ समुल्लास के नियोगविषयमें व्याख्यात है ॥मनुस्मृति अध्याय ९ श्लोक ५८ आदि में नियोगविषय का वर्णन है, यहाँ दो श्लोक लिखे जाते हैं−देवराद् वा सपिण्डाद् वा स्त्रिया सम्यङ्नियुक्तया। प्रजेप्सिताधिगन्तव्या सन्तानस्य परिक्षये ॥१॥ विधवायां नियोगार्थेनिर्वृत्ते तु यथाविधि। गुरुवच्च स्नुषावच्च वर्तेयातां परस्परम् ॥२॥मनुस्मृतिअध्याय ९ श्लोक ५९, ६२ ॥देवर [पति के छोटे वा बड़े भाई] से अथवा सपिण्ड से [पति की छह पीढ़ियों के भीतरवालेसे] यथाविधि [पति आदि बड़े लोगों द्वारा] नियुक्त की हुई स्त्री को सन्तान केसर्वथा नाश होने पर यथेष्ट सन्तान उत्पन्न करनी चाहिये ॥१॥ विधवा [आदि] मेंनियोग का प्रयोजन यथाविधि पूरा हो जाने पर दोनों [पुरुष और स्त्री] गुरु के समानऔर पुत्र वधू के समान आपस में बर्ताव करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(उत्) उत्थाय (ईर्ष्व) गच्छ (नारि) म० १। हे स्त्रि (अभि) अभिलक्ष्य (जीवलोकम्) जीवितानां समाजम् (गतासुम्)विगतप्राणम्। मृतं रोगिणं वा (एतम्) दृश्यमानम् (उप) पूजायाम्। उपगच्छन्ती।स्तुवाना (शेषे) शीङ् स्वप्ने। भूमौ वर्तसे (एहि) आगच्छ (हस्तग्राभस्य) ग्रहउपादाने-कर्मण्यण्, हस्य भः। विवाहे गृहीतहस्तस्य (दधिषोः) दधातेर्द्वित्वमित्वंषुक् च। उ० ३।९७। इति दर्शनात्। कुर्भ्रश्च। उ० १।२२। दधातेः कु, इत्वंषुगागमश्च। दधिषुरेव दिधिषुः। नियुक्तायां स्त्रियां गर्भस्थापकात् पुरुषात् (तव) स्वकीयायाः (इदम्) इदानीम् (पत्युः) स्वामिनः (जनित्वम्) सन्तानम् (अभि)सर्वतः (सम्) सम्यक्। यथाविधि (बभूथ) भू सत्तायां प्राप्तौ च। छन्दसिलुङ्लङ्लिटः। पा० ३।४।६। लोडर्थे लिट्। बभूविथ। प्राप्नुहि ॥

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    विषय

    स्वस्थ रहते हुए सन्तान का ध्यान करना

    पदार्थ

    १. हे (नारि) = गृह की उन्नति की कारणभूत पनि! तू (उदीर्ष्व) = ऊपर उठ और घर के कार्यों में लग [ईर गतौ] (जीवलोकम् अभि) = इस जीवित संसार का तू ध्यान कर । जो गये वे तो गये ही। अब तू (गतासुम्) = गतप्राण (एतम्) = इस पति के (उपशेषे) = समीप पड़ी है। इसप्रकार शोक में पड़े रहने का क्या लाभ? (एहि) = आ, घर की ओर चल। घर की सब क्रियाओं को ठीक से करनेवाली हो। २. (हस्तनाभस्य) = तेरे हाथ का ग्रहण करनेवाले (दधिषो:) = गर्भ में सन्तान को स्थापित करनेवाले (तव पत्यु:) = तेरे पति की (इदं जनित्वम्) = इस उत्पादित सन्तान को (अभि) = लक्ष्य करके (संबभूथ) = सम्यक्तया होनेवाली हो, अर्थात् तू अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यानकर, जिससे सन्तान के पालन-पोषण में किसी प्रकार से तू असमर्थ न हो जाए।

    भावार्थ

    यदि अकस्मात् पति मृत्यु का शिकार हो जाए तो पत्नी शोक न करती रहकर, पति के सन्तानों का ध्यान करती हुई अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए यत्नशील हो।

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    भाषार्थ

    (नारि) हे विधवे नारी ! (गतासुम्) गतप्राण अर्थात् मृत (एतम्) इस पति को छोड़कर (उद्दीर्ष्व) तू उठ, (जीवलोकम् अभि) और जीवित देवर अर्थात् द्वितीय वर पति को (एहि) प्राप्त कर, (उपशेषे) उसी के साथ सन्तानोत्पादनार्थ वर्ताव कर। (हस्तग्राभस्य पत्युः) विवाह में जिसने तेरा पाणि-ग्रहण किया था उस पति की, (दधिषोः) तेरा धारण-पोषण करने वाले इस नवीन पति की, तथा (तव) तू अपनी (इदम्) इस (जनित्वम्) सन्तान को (अभि) लक्ष्य कर (संबभूथ) सुख से संयुक्त हो।

    टिप्पणी

    [ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के नियोग-प्रकरण के आधार पर अर्थ।]

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    विषय

    स्त्री-पुरुषों के धर्म।

    भावार्थ

    हे (नारि) नारि ! तू (उत्-ईर्ष्व) उठ। तू (गतासुम्) प्राण रहित (एतम्) इस पुरुष के पास (उप शेषे) सो रही है। यह क्या करती है ? (अभि जीवलोकम्) जीवित प्राणिलोक को (आ इहि) प्राप्त हो। हे स्त्रि ! तू (हस्तग्राभस्य) हाथ को ग्रहण करने वाले (दधिषोः) धारण-पोषणकारी (तत्र पत्युः) तेरे अपने पति के लिये ही (अभि इदम्) इस (जनित्वम्) जनित्व=भार्यापन को (अभि) लक्ष्य करके (संबभूथ) नियुक्त पति से सहवास कर। अथवा—(हस्तग्राभस्य पत्युः कृते दधिषोः=दिधिषोः तव स्त्रियां इद जनित्व पुत्रोत्पादनं स्यात् अतः त्वं अभिसंबभूथ) पाणिग्रहण करने वाले पूर्व पति के लिये ही पुनः गर्भ धारण करना चाहने वाली तुझ स्त्री का यह पुत्रोत्पादन रूप कार्य हो। अतः तू पुनः नियुक्त पति से संगत हो सकती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमः मन्त्रोक्ताश्च बहवो देवताः। ५,६ आग्नेयौ। ५० भूमिः। ५४ इन्दुः । ५६ आपः। ४, ८, ११, २३ सतः पंक्तयः। ५ त्रिपदा निचृद गायत्री। ६,५६,६८,७०,७२ अनुष्टुभः। १८, २५, २९, ४४, ४६ जगत्यः। (१८ भुरिक्, २९ विराड्)। ३० पञ्चपदा अतिजगती। ३१ विराट् शक्वरी। ३२–३५, ४७, ४९, ५२ भुरिजः। ३६ एकावसाना आसुरी अनुष्टुप्। ३७ एकावसाना आसुरी गायत्री। ३९ परात्रिष्टुप् पंक्तिः। ५० प्रस्तारपंक्तिः। ५४ पुरोऽनुष्टुप्। ५८ विराट्। ६० त्र्यवसाना षट्पदा जगती। ६४ भुरिक् पथ्याः पंक्त्यार्षी। ६७ पथ्या बृहती। ६९,७१ उपरिष्टाद् बृहती, शेषास्त्रिष्टुमः। त्रिसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Rise, O woman, toward the world of the living, leave the dead where you lie, come and join the state of conjugality with this man who offers to hold your hand as your second husband and life partner.

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    Translation

    Go up, O woman, to the world of the living: thou liest by this one who is deceased: come to him who grasps thy hand thy second spouse thou hast now entered into the relation of wife to husband.

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    Translation

    Rise, O woman, why you lie by the side of this life less husband? You leaving all hopes from him (the dead husband) come to living world. This procreation of progeny shall be of your husband who is your Niyukta-husband and has grasped your hand.

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    Translation

    Rise, come unto the world of living, O woman, come, he is lifeless by whose side thou art sitting. Accept the offspring of thy dead husband, who took thy hand in marriage, and supported and protected thee.

    Footnote

    Accept: Look after nourish, rear.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(उत्) उत्थाय (ईर्ष्व) गच्छ (नारि) म० १। हे स्त्रि (अभि) अभिलक्ष्य (जीवलोकम्) जीवितानां समाजम् (गतासुम्)विगतप्राणम्। मृतं रोगिणं वा (एतम्) दृश्यमानम् (उप) पूजायाम्। उपगच्छन्ती।स्तुवाना (शेषे) शीङ् स्वप्ने। भूमौ वर्तसे (एहि) आगच्छ (हस्तग्राभस्य) ग्रहउपादाने-कर्मण्यण्, हस्य भः। विवाहे गृहीतहस्तस्य (दधिषोः) दधातेर्द्वित्वमित्वंषुक् च। उ० ३।९७। इति दर्शनात्। कुर्भ्रश्च। उ० १।२२। दधातेः कु, इत्वंषुगागमश्च। दधिषुरेव दिधिषुः। नियुक्तायां स्त्रियां गर्भस्थापकात् पुरुषात् (तव) स्वकीयायाः (इदम्) इदानीम् (पत्युः) स्वामिनः (जनित्वम्) सन्तानम् (अभि)सर्वतः (सम्) सम्यक्। यथाविधि (बभूथ) भू सत्तायां प्राप्तौ च। छन्दसिलुङ्लङ्लिटः। पा० ३।४।६। लोडर्थे लिट्। बभूविथ। प्राप्नुहि ॥

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